पाकिस्तान का टूटता मुगालता
भारतवंशियों, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के दिलों को भी जीत लिया है। वैसे तो खाड़ी क्षेत्र में कई अन्य हिंदू मंदिर भी हैं। जैसे दो मंदिर ओमान में, दो मंदिर और एक गुरुद्वारा दुबई और एक मंदिर बहरीन में भी है
पाकिस्तान का टूटता मुगालता
यह किसी से छिपा नहीं कि आम य पाकिस्तानी को रोजान हिंदू और भारत विरोध की घुट्टी पिलाई जाती है। उन्हें यह देखकर हैरानी होती है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के लिए अन्य देशों के साथ साथ अरब जगत लाल कालीन बिछाए हुए है। चूंकि पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों एवं पवित्र स्थलों को क्षति पहुंचाने एवं उन्हें लूटने का एक लंबा सिलसिला रहा है तो पाकिस्तानियों को समझ नहीं आ रहा कि अरब राष्ट्र अपने यहां हिंदू उपासना स्थलों के निर्माण में इस प्रकार की मदद कैसे कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व अबूधाबी में पहले हिंदू मंदिर के उद्घाटन समारोह के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद जायेद अल नाह्यान के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया कि उन्होंने अबूधाबी में मंदिर निर्माण के लिए हरसंभव मदद उपलब्ध कराई। मंदिर के उद्घाटन अवसर को मानवता के इतिहास में एक 'स्वर्णिम अध्याय' करार देते हुए मोदी ने कहा कि शेख अल नाह्यान ने न केवल खाड़ी देशों में रह रहे
भारतवंशियों, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के दिलों को भी जीत लिया है। वैसे तो खाड़ी क्षेत्र में कई अन्य हिंदू मंदिर भी हैं। जैसे दो मंदिर ओमान में, दो मंदिर और एक गुरुद्वारा दुबई और एक मंदिर बहरीन में भी है, लेकिन अपने वास्तु, डिजाइन और आकार के हिसाब से अबूधाबी के मंदिर की भव्यता विशिष्टता लिए हुए है।
अरब जगत ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने कई विशिष्ट सम्मानों से भी सम्मानित किया है। किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री को अरब में इतना सम्मान नहीं मिला। इन सम्मानों में यूपई के सर्वोच्च नागरिक सम्मान आर्डर आफ जायेद सऊदी अरब के अब्दुल अजीज साश अवार्ड, बहरीन के किंग हमाद आर्डर आप द रेनेसां, अफगानिस्तान द्वारा अमीर अमानुल्लाह खान अवार्ड और फलस्तीन और मालदीव के सर्वोच्च नागरिक सम्मान शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि ये सभी मुस्लिम देश हैं। इन सभी अवसरों पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ये किसी एक व्यक्ति का सम्मान नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों का सम्मान है।
पाकिस्तानियों को यह सब पच नहीं रहा, क्योंकि उनकी परवरिश ही इस तरह होती है कि हिंदू काफिर होते हैं, जो केवल नरक की आग में जलने के लिए बने हैं और ऐसे हिंदू भारतीय प्रधानमंत्री के लिए अरब देश पलक-पांवड़े बिछाए हुए हैं। हाल के दिनों में कई पाकिस्तानी विश्लेषकों ने अपनी जनता को इस वास्तविकता से परिचित कराने का प्रयास किया है। ये विश्लेषक बता रहे हैं कि पाकिस्तान की घरेलू एवं विदेश नीतियां कितनी नकारा साचित हुई हैं तो दूसरी और मोदी के नेतृत्व में भारत अंतरराष्ट्रीय पटल पर पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ता जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर टिप्पणी करने वाले पाकिस्तानी विश्लेषक डा. साजिद तरार का कहना है कि पाकिस्तान के लोग इस पहलू को समझें कि मोदी ने देशों के साथ बहुत बनाए हैं और इससे पाकिस्तान की वे उम्मीदें चकनाचूर हो गई कि इस्लाम के भरोसे ही सब भला हो जाएगा। उनके हिसाब से 'उम्मा' की अवधारणा अब प्रभावी नहीं रही। इसका अर्थ है कि पंथ मजहब ही अब जोड़ने वाली इकलौती कड़ी नहीं रह गई। ऐसे में पाकिस्तान को उस मुगालते से बाहर आना चाहिए कि यह पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए एक मानक होग। इन मुस्लिम देशों ने न केवल मोदे को सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है, बल्कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्ष परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन भी कर रहे हैं। डा. तरार के कहने का सार यही है कि भारत से बहुत आवश्यकता है। मुस्लिम देशों के नेताओं से मोदी के प्रगाढ़ संबंधों के अलावा इन देशों में भारतीय प्रधानमंत्री की लोकप्रियता भी पाकिस्तानियों को गहरे अचंभे में डाल रही है। अबूधाबी में मंदिर उद्घाटन से इतर 'अहलान मोदी' नाम से आयोजित एक कार्यक्रम में स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था।
उसमें मोदी ने भारत और यूएई के बीच प्रगढ़ संबंधों का उद्घोष किया। उन्होंने शेख अल नाह्यान को अपना 'भाई' बताते हुए याद दिलाया कि 2015 में उनके यूएई दौरे से पहले तीन दशकों तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस देश का दौरा नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि तब उनकी अगवानी के लिए मोहम्मद जायेद अल नाह्यान अपने पांच भाइयों के साथ एयरपोर्ट आए थे और उन्हें भी भारत में चार बार शेख का स्वागत करने का अवसर मिला। शेख के पिछले दौरे पर तमाम लोग उनके स्वागत के लिए सड़कों पर उमड़े थे।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंधों में इस अप्रत्याशित सुधार के भारत की आर्थिक वृद्धि और खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीयों भारतीयों की दृष्टि से भी गहरे निहितार्थ हैं। ही भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीक संतुलन के लिहाज से भी ये संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन संबंधों को आकार देने में मोदी ने एक कुशल शिल्पकार की भूमिका निभाई है। उनके प्रयासों से सऊदी अरब के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी संभव हुई। गत वर्ष नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद भारत-सऊदी अरब रणनीतिक साझेदारी परिषद की बैठक में मोदी ने सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के साथ गहन मंत्रणा की थी। इससे पहले जी-20 सम्मेलन में भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे की महत्वाकांक्षी घोषणा हुई थी, जिसमें सऊदी अरब एक प्रमुख अंशभागी है। सऊदी अरब के युवराज की गतिविधियों पर पूरी दुनिया की नजर रहती है।
एमबीएस के उपनाम से लोकप्रिय सऊदी युवराज इस्लामिक परंपराओं में सुधार के लिए बड़े कदम उठा रहे हैं। इस पहल को चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआइ परियोजना का जवाब माना जा रहा है। बीआरआइ के चलते कई देश चीनी कर्ज के जाल में फंस गए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे सभी रुझान पाकिस्तान के लिए बड़े झटके हैं जो हमेशा यही सेचता आया है कि मजहबी पहचान उसे अरब जगत के साथ जोड़े स्खेगी और इससे वह सभी मोचौँ पर भारत को चुनौती देने में सक्षम हो सकेगा। हालांकि जिन्ना के पाकिस्तान ने यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन इस परिदृश्य पर नरेन्द्र होगा कि एक दिन इस परिदृश्य पर नरेन्द्र मजहबी कट्टरता और नफरत कभी नहीं
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