मोहन भागवत जी का राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सम्बोधन

आज अयोध्या  में रामलला के साथ भारत का स्व लौट के आया है

Jan 23, 2024 - 12:53
Jan 24, 2024 - 07:01
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मोहन भागवत जी का राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में  सम्बोधन

आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का स्व लौट के आया है

आज का आनंद शब्दों में वर्णन है और इसका वर्णन करने का प्रयास इसके पहले के वक्तव्य में अच्छा हो यह भी बता दिया गया है और हम जानते भी हैं कि आज अयोध्या  में रामलला के साथ भारत का स्व लौट के आया है और संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा इसका प्रतीक आज का कार्यक्रम बन गया है ऐसे समय में आपके उत्साह का आपके आनंद का वर्ण कोई नहीं कर सकता हम यहां पर अनुभव कर रहे पूर्ण देश में यही वातावरण है छोटे-छोटे मंदिर के सामने दूरदर्शन पर इस कार्यक्रम को सुनने वाले हमारे समाज के करोड़ों बंधु वहां पहुंच ना पाए ऐसे घर-घर के हमारे नागरिक सज्जन माता भगिनी सब भाव विभोर है सब में आनंद है

सब में उत्साह और ऐसे समय में जोश की बातों में थोड़ी सी होश की बात करने का काम मुझे ही दिया जाता है आज हमने सुना कि इस प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में पधारने के पूर्व प्रधानमंत्री जी ने कठोर व्रत रखा जितना कठोर व्रत रखने को कहा था उससे कई गुना अधिक कठोर व्रता चरण उन्होने किया मेरे पुराना उनसे परिचय है मैं जानताहूं वह तपस्वी है ही परंतु वह अकेले तप कर रहे हैं हम क्या करेंगे अयोध्या में रामलला आए अयोध्या से बाहर क्यों गए थे रामायण में क्यों गए बाहर तो अयोध्या में कलह हुआ अयोध्या उस पुरी का नाम है जिसमें कोई द्वंद नहीं जिसमें कोई कला नहीं जिसमें कोई दुविधा नहीं वह हुआ 14 वर्ष वनवास में गए वह सब ठीक होने के बाद दुनिया के कलह को मिटा केर वापस आए आज रामलला वापस फिर से आए हैं 500 साल के बाद जिनके त्याग तपस्या प्रयासों से यह सोने का दिन आज हम देख रहे सुवर्ण दिवस देख रहे हैं उनका स्मरण प्राण प्रतिष्ठा के संकल्प में हम लोगों ने कहा आपने सुना होगा स्मरण किया उनकी तपस्या को उनके त्याग को उनके परिश्रम को शत बार सहस्त्र बार कोटि बार नमन है रामलला के यहां इस युग में आज के दिन फिर वापस आने का इतिहास जो जो श्रवण करेगा वह राष्ट्र के लिए कर्म प्रवण होगा और उसके राष्ट्र का सब दुख दैन्य हरण होगा ऐसे इस इतिहास का सामर्थ्य है परंतु उसमें हमारे लिए कर्तव्य का आदेश भी है प्रधानमंत्री जी ने तब किया अब हमको भी तप करना है

राम राज्य आने वाला है वो कैसा था दैहिक दैविक भौतिक तापा राम राज नहीं कहु वपा सब नर करही परस्पर प्रीति चल  स्वधर्म निरत श्रुति नीति सब निर्द धर्म रत पुनि नर अरु नारी चतुर सब गुनी सब गुणज पंडित सब ज्ञानी सब कृतज्ञ नहीं कपट सयानी राम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन है हम भी इस गौरवम भारतवर्ष की संताने  हैं कोटि कोटि कंठ  सका जयगा करने वाले हमारे हैं हमको इस प्रकार के व्यवहार को रखने का तप आचरण करना  पड़ेगा हमको भी सारे कलह को विदाई देनी पड़ेगी  छोटे-छोटे परस्पर मत रहते हैं छोटे-छोटे विवाद रहते हैं उसको लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी  पड़ेगी आखिर है क्या यह बात बताई वह  सामान्य नागरिक कैसे थे

निर्द प्रामाणिकता से आचरण करने वाले केवल बातें करने वाले नहीं और बातें करके उसका अहंकार  लने वाले नहीं थे काम करते थे  आचरण करते थे और अहंकार नहीं था ऐसे वह थे और धर्म रत थे याने क्या थे इस पर कठिन भाषा में प्रवचन बहुत लंबा  हो सकता है लेकिन थोड़े में धर्म के जो चार मूल्य जिनकी चौखट पर धर्म है ऐसा श्रीमद् भागवत में बताया है सत्य करुणा सुचिता तपस उसका आज हमारे लिए युगा अकू आचरण क्या  है तो सत्य कहता है कि सब घटो में राम है ब्रह्म सत्य है वही सर्वत्र है तो हमको यह जानकर आपस में समन्वय से चलना होगा क्योंकि हम चलते हैं सबके लिए चलते हैं सब हमारे हैं इसलिए हम चल पाते हैं और इसलिए आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना यह धर्म का पहला जो पहरे सत्य उसका आचरण है करुणा दूसरा कदम है उसका आचरण है सेवा और परोपकार सरकार की कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही सब हो रहा है लेकिन हमारा भी कर्तव्य है यह सब समाज बांधव हमारे अपने बंधु है तो जहां हमको दुख दिखता है पीड़ा  दिखती है वहां हम दौड़ जाए सेवा करें दोनों हाथों से क अपने लिए न्यूनतम आवश्यक रखकर बाकी सारा वापस दे सेवा और परोपकार के माध्यम से यह करुणा का अर्थ आज है

सुचिता पर चलना है यानी पवित्रता होनी चाहिए पवित्रता के लिए संयम चाहिए अपने को रोकना है सब अपनी इच्छा है सब अपने मत सब अपनी बातें ठीक होंगी ही ऐसा नहीं और होगी तो भी अन्यों के भी मत है अन्यों की भी इच्छाएं हैं और इसलिए अपने आप को संयम में रखते हैं तो सारी पृथ्वी सब मानवों को जीवित रखेगी गांधी जी कहते थे अर्थ ज इनफ फॉर एवरीवन नीड बट इट कैन नॉट सेटिस्फाई एवरीवन ग्रीड तो लोभ नहीं करना संयम में रहना और अनुशासन का पालन करना अपने जीवन में अनुशासित रहना अपने कुटुंब में अनुशासन रहना अपने समाज में अनुशासन  रहना सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना भगिनी निवेदिता कहती थी कि स्वतंत्र देश में नागरिक संवेदना रखना और नागरिक अनुशासन का पालन करना यही देशभक्ति का रूप है इससे जीवन में पवित्र आती है और तपस का तो मूर्तिमान उदाहरण आपके सामने आज दिया गया व्यक्तिगत तपस तो हम करेंगे सामूहिक तपस क्या है संग दवम सं वदम संव मनाम सी जानता हम साथ चलेंगे बोलेंगे आपस में उसमें से एक सहमति का संवाद निकालेंगे एक कही भाषा बोलेंगे वो वाणी मन मचन कर्म समन्वित होगा और मिलकर चलेंगे अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे यह तपस हम सबको करना है 500 वर्षों तक अनेक पीढ़ियों ने लगकर परिश्रम करके प्राणों का बलिदान दे कर  खून पसीना बहाने बकर आज यह आनंद का दिन सारे राष्ट्र को उपलब्ध करा दिया उन सबके प्रति हमारे मन में कृतज्ञ का है

मैं यहां बैठता हूं तो मेरे मन में विचार आता है कि मुझे बिठा मैंने क्या किया वह तो जो उन्होंने किया उसका प्रतिनिधि भी मुझे बनाया गया है उस प्रतिनिधि के नाते मैं यह अवदान स्वीकार करता हूं और उन्हीं को अर्पण करता हूं परंतु उनका यह व्रत हमको आगे लेकर जाना है जिस धर्म स्थापना विश्व में करने के लिए राम का अवतार हुआ था उस धर्म स्थापना को अनुकूल स्थिति अपने आचरण में अपने देश में उत्पन्न करना यह अपना कर्तव्य बनता है राम लला आए हैं हमारे मन को अलाद करने के लिए उत्साही करने के लिए प्रेरणा देने के लिए साथ-साथ इस कर्तव्य की याद दिलाकर उसमें कृति प्रवण करने के लिए आए हैं उनका आदेश सर पर लेकर हम यहां से जाए सब लोग तो यहां आ नहीं सके लेकिन वो सुन रहे हैं देख रहे हैं अभी इसी क्षण से इस व्रत का पालन हम करेंगे तो मंदिर निर्माण पूरे होते होते विश्व गुरु भारत का निर्माण भी पूरा हो जाएगा इतनी क्षमता हम सबकी है इसका मैं एक बार स्मरण देता हूं आप सबको धन्यवाद देता हूं और मेरे चार शब्द समाप्त करता हूं

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