अब घुमंतू भी होंगे घर वाले
आज भी भारत में ऐसे लाखों लोग हैं, जिनके पास घर बनाने के लिए जमीन नहीं है। इसलिए ये लोग चाहकर भी कहीं घर नहीं बनवा पाते। ऐसे लोगों में घुमंतू, अर्द्धघुमंतू जनजातियां शामिल हैं। ये लोग सैकड़ों वर्ष से खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं। इनके नाम से कहीं कोई भूमि नहीं है। यही […]
आज भी भारत में ऐसे लाखों लोग हैं, जिनके पास घर बनाने के लिए जमीन नहीं है। इसलिए ये लोग चाहकर भी कहीं घर नहीं बनवा पाते। ऐसे लोगों में घुमंतू, अर्द्धघुमंतू जनजातियां शामिल हैं। ये लोग सैकड़ों वर्ष से खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं। इनके नाम से कहीं कोई भूमि नहीं है। यही कारण है कि इन लोगों को घर बनाने के लिए सरकारी सहायता नहीं मिल पाती। इसे देखते हुए राजस्थान की भाजपा सरकार ने घुमंतू जनजातियों को जमीन उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। गत 2 अक्तूबर को ऐसे 20,721 घुमंतू परिवारों को जमीन का पट्टा भी दे दिया गया।
जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने जब जमीन के पट्टे दिए, तो अनेक लोग भावुक हो गए। अभी राजस्थान के सभी 33 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुछ घुमंतू जनजातियों को जमीन के पट्टे मिले हैं। इसके अंतर्गत हर परिवार को 300 गज जमीन दी गई है। जमीन का न्यूनतम क्षेत्रफल 100 वर्ग गज तथा अधिकतम क्षेत्रफल 300 वर्ग गज है। जो घुमंतू परिवार 1,000 से कम जनसंख्या वाले गांवों में रहते हैं, उनसे 2 रु., जो परिवार 1000-2000 तक की आबादी वाले गांवों में रह रहे हैं, उनसे 5 रु. और जो 2,000 से अधिक आबादी वाली जगह पर रह रहे हैं, उनसे 10 रु. प्रति वर्ग गज शुल्क लिया जाएगा। आज जमीन की जो कीमत है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इन परिवारों को जमीन नि:शुल्क ही मिल रही है।
वास्तव में इन घुमंतू परिवारों को उन कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से जमीन मिली है, जो दिन-रात इनके विकास और उत्थान में लगे हैं। बता दें कि घुमंतू जनजातियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने एक संगठन बनाया है, जिसका नाम है- अखिल भारतीय घुमंतू कार्य। उसके प्रमुख हैं वरिष्ठ प्रचारक श्री दुर्गादास। इनके नेतृत्व में देश के अनेक राज्यों में कार्यकर्ता घुमंतू जनजातियों के बच्चों की शिक्षा, रोजगार आदि के लिए कार्य करते हैं। कार्यकर्ताओं ने यह कार्य करते हुए महसूस किया कि बदलते दौर में घुमंतू परिवार एक स्थान पर बसना चाहते हैं, लेकिन अपनी जमीन नहीं होने के कारण इन्हें बड़ी दिक्कत हो रही है। प्रशासन कई बार इन लोगों को उजाड़ देता है।
जयपुर में अक्सर ऐसा होता है। इसे देखते हुए वहां के कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार से कहा कि इन लोगों को स्थाई रूप से बसाया जाना चाहिए। घुमंतू कार्य (जयपुर महानगर) के संयोजक राकेश कुमार शर्मा ने बताया, ‘‘हम लोगों ने इस वर्ष जनवरी महीने में राजस्थान सरकार के समाज कल्याण विभाग को पत्र लिखा कि घुमंतू जनजातियों के लिए आवास, जमीन आदि की व्यवस्था की जाए। अच्छी बात यह हुई कि बहुत ही शीघ्रता के साथ समाज कल्याण विभाग ने सभी संबंधित विभागों को पत्र लिखकर इस पर कार्रवाई करने को कहा। इसके बाद पंचायती राज विभाग के मंत्री मदन दिलावर ने भी इस कार्य के प्रति विशेष रुचि दिखाई। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर कहा कि घुमंतू परिवारों को 300 गज जमीन दी जाए।’’
राजस्थान में 1,23,757 घुमंतू परिवार
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में 1,23,757 घुमंतू परिवार हैं। इनमें से 49,950 परिवारों के पास पहले से ही जमीन के पट्टे हैं। 51,088 परिवार ऐसे हैं, जिनके पास मकान के लिए भी जमीन नहीं है। अब तक 33,350 परिवारों ने घर की जमीन के लिए सरकार को आवेदन दिए हैं। इनमें से 20,721 परिवारों को जमीन मिल गई है। शेष लोगों को भी जमीन देने की प्रक्रिया चल रही है।
श्री शर्मा ने यह भी बताया, ‘‘इसके बाद पूरे राज्य में संबंधित विभागों ने इन घुमंतू जनजातियों का सर्वेक्षण कर 1,24,000 परिवारों को चिह्नित किया। अभी केवल ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों की पहचान की गई है। इनमें से जिनके पास आधार कार्ड या अन्य कोई सरकारी पहचानपत्र है, उन्हें जमीन दे दी गई है। बाकी परिवारों के लिए सरकारी पहचानपत्र बनवाने का कार्य चल रहा है। इसके बाद उन्हें भी जनवरी, 2025 तक जमीन मिल सकती है।’’ बता दें कि भारत सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा 24 फरवरी, 1964 को जारी एक पत्र के अनुसार राजस्थान में 32 घुमंतू जनजातियां रहती हैं। इनमें से एक है गाड़िया लोहार। राजस्थान में गाड़िया लोहारों की बड़ी संख्या है।
घुमंतू जनजातियों पर शोध करने वाले शैलेंद्र विक्रम कहते हैं, ‘‘गाड़िया लोहारों के पूर्वज महाराणा प्रताप की सेना के लिए कार्य करते थे। जब महाराणा प्रताप का मुगलों के साथ युद्ध हुआ, उस समय यह समाज उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चला। बाद में इस समाज के लोगों ने प्रण लिया था कि जब तक वे महाराणा को राज्य वापस नहीं दिला देंगे तब तक स्थाई रूप से कहीं नहीं रहेंगे। ये लोग तभी से बेघर हैं। कहीं किसी सड़क के किनारे रहते हैं और लोहे का सामान बनाकर बेचने का काम करते हैं। अब चूंकि समय बदल गया है ऐसे में इस समाज के लोग भी कहीं स्थाई रूप से रहकर अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके।’’
घुमंतू परिवारों के बच्चों को शिक्षा और संस्कार दिलाने के लिए राजस्थान सरकार कई योजनाएं चला रही है। एक विशेष अभियान चलाकर ऐसे बच्चों का किसी सरकारी विद्यालय में नामांकन कराया जाता है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में राजस्थान में इन परिवारों के 3,160 बच्चों का नामांकन कराया गया है। ऐसे ही हर बालक-बालिका को आंगनबाड़ी केंद्रों से भी जोड़ा जा रहा है।
सरकार का यह भी प्रयास रहता है कि ऐसे बच्चे बीच में पढ़ाई न छोड़ें। कह सकते हैं कि राजस्थान सरकार और कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने मिलकर एक ऐसा कार्य किया है, जिसे बहुत पहले ही कर दिया जाना चाहिए था। खैर, जो बीत गई सो बात गई। अभी भी देर नहीं हुई है। आशा की जानी चाहिए कि अन्य राज्य सरकारें भी राजस्थान सरकार के इस कार्य का अनुसरण करेंगी, ताकि इस देश में कोई बेघर न रहे।
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