हिंदी और गांधी के सपनों पर ग्रहण

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विवि से जुड़े की गई थी। अकादमिक परिषद और कार्य,

Mar 3, 2024 - 23:33
Mar 4, 2024 - 12:07
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हिंदी और गांधी के सपनों पर ग्रहण

हिंदी और गांधी के सपनों पर ग्रहण

क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का सम्यक विकास करने एवं उसे वैश्विक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए सुसंगत प्रयास करने के उद्देश्य से वर्ष 1997 में संसद में पारित एक अधिनियम के माध्यम से महाराष्ट्र के वर्धा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। परंतु कुछ समय से यहां पूर्णकालिक कुलपति नहीं होने के कारण इसका कामकाज उचित तरीके से नहीं हो रहाहै, कुछ निर्णय वाट्सएप पर लिये जा रहे हैं, जिन पर सवाल खड़े हो रहे हैं

महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी

विश्वविद्यालय को हिंदी को रोजगार की भाषा बनाने के लिए प्रयत्न करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। संसद के पारित अधिनियम के आलोक में कांग्रेस समर्थक अधिकारी अशोक वाजपेयी को विश्वविद्यालय का पहला कुलपति बनाया गया। वह लगभग चार वर्षों तक विवि को दिल्ली से ही चलाते रहे। कभी कभार वर्धा चले जाते थे। उनके कार्यकाल में कुछ विवाद भी हुए। उनके बाद कई कुलपति नियुक्त हुए, लेकिन विवि अपने उद्देश्यों की तरफ बहुत धीरे-धीरे बढ़ पाया। वर्धा स्थित यह विवि कभी छोटे तो कभी बड़े विवाद में घिरा रहा। कभी नियुक्तियों को लेकर तो कभी निर्माण को लेकर। पिछले वर्ष 14 अगस्त को अप्रिय परिस्थितियों में कुलपति रजनीश कुमार शुक्ल ने कुलपति के पद से इस्तीफा दे दिया। रजनीश शुक्ल का कार्यकाल भी विवादित रहा। जब उन्होंने पद छोड़ा तो विवि के वरिष्ठतम प्रोफेसर एल. कारूण्यकरा को कुलपति का प्रभार दिया। लगभग दो माह तक रजनीश शुक्ल का इस्तीफा स्वीकृत नहीं हुआ और प्रोफेसर कारूण्यकरा विवि चलाते रहे। शिक्षा मंत्रालय ने जब रजनीश शुक्ल का इस्तीफा स्वीकृत किया तो साथ ही नागपुर के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट (आइआइएम) के निदेशक को विवि के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार साँप दिया। इसके बाद प्रोफेसर कारूण्यकरा अदालत चले गए जहां मामला लंबित है। अतिरिक्त प्रभार के रूप में नागपुर आइआइएम के निदेशक विवि चला रहे

हैं। नए कुलपति की नियुक्ति के लिए

शिक्षा मंत्रालय ने विज्ञापन दे दिया है। इस क्रोनोलाजी को बताने का उद्देश्य यह है कि किस तरह से महात्मा गांधी और हिंदी के नाम पर बना यह केंद्रीय विवि निरंतर विवादों में रहा। इन विवादों का असर इसके कामकाज पर पड़ रहा है। स्थायी कुलपति के त्यागपत्र के छह नियुक्ति नहीं होने के कारण विवि के सामने जो बड़े उद्देश्य थे, उन पर ब्रेक लग गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा के भारतीयकरण के लक्ष्य को पाना चाह रहे हैं। इसके लिए वह स्वयं बहुत सक्रिय रहे हैं, अब भी हैं। भारतीय भाषा भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्राथमिकता में है। भारतीय भाषा को रोजगार से जोड़ने के लिए भी बड़े स्तर पर कार्य हो रहे हैं। पाठ्यक्रम से लेकर पाठ्य सामग्री तक तैयार करने के लिए पिछले दो वर्षों से हर स्तर पर श्रम हो रहा है। लेकिन जब हिंदी के इस विवि की स्थिति ऐसी लचर हो तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लक्ष्य को समग्रता में पाने में कठिनाई हो सकती है। इस समय जब महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि के माध्यम से हिंदी को शक्ति देने का उपक्रम जोर शोर से चलाया जाना चाहिए था, तब विवि मुकदमों में उलझा हुआ है। जिनके पास विवि का अतिरिक्त प्रभार है, वे अतिरिक्त दायित्व की तरह ही निर्वाह भी कर रहे हैं। विवि शिक्षक संघ ने अभी हाल ही में कुलपति को एक पत्र लिखने की बात कही है जिसमें वे यह मांग करेंगे कि प्रशासन विवि की स्थिति पर एक

श्वेत पत्र जारी करे। शिक्षकों को संबोधित

उसी पत्र में शिक्षक संघ ने आरोप लगाया कर निर्णय लिए जा रहे हैं। कर्मचारियों और शिक्षकों को परेशान किया जा रहा है। ये आरोप हैं और इनकी जांच तभी सच्चाई का पता चल पाएगा। तभी सच्चाई का पता चल पाएगा। इस विवि से जुड़ी है, वह यह कि इसके रोजमर्रा के निर्णय वाट्सएप पर हो रहे हैं। चाहे वह शिक्षकों के अवकाश की स्वीकृति का मामला हो, चाहे खाते से पैसे निकालने की अनुमति का संदर्भ हो या किसी शिक्षक को किसी कार्यक्रम आदि में भाग लेने की अनुमति का मामला हो। अधिकतर मामलों में कुलपति का अप्रूवल वाट्सएप पर हो रहा है। इस प्रवृत्ति के कारण विवि में यह चर्चा होने लगी है कि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि अब वाट्सएप यूनिवर्सिटी बन गया है। अभी तक विमर्श या चर्चा के दौरान जब काल्पनिक बातों को तथ्य बनाकर पेश किया जाता था तो कहा जाता था कि वाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान मत दो। वाट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रयोग हल्के-फुल्के अंदाज में होता था, जिसे कुछ लोग अपनी यूनिवर्सिटी का मजाक बनाने के लिए प्रयोग करने लगे हैं। यह ऐसी स्थिति है जिसकी कभी कल्पना नहीं

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विवि से जुड़े की गई थी। अकादमिक परिषद और कार्य

परिषद की लंबे समय से बैठक नहीं होने के कारण बड़े निर्णय नहीं लिए जा रहे हैं।

वाट्सएप पर जितने निर्णय हो सकते हैं वे हो रहे हैं। वाट्सएप के स्क्रीन शाट के प्रिंट लेकर फाइलों में लगा दिए जाते हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि एक स्वप्न था। एस ऐसा स्वप्न जिसे 1975 में नागपुर में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान देखा गया था। उस सम्मेलन के दौरान प्रस्ताव पारित किया गया था कि वर्धा में हिंदी के एक विवि की स्थापना हो। वर्ष 1993 में मारीशस में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान एक अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि की आवश्यकता पर चर्चा हुई थी। तब यह भी कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए भी एक ऐसे विवि की आवश्यकता है। महात्मा गांधी के हिंदी प्रेम को भी इस विवि की स्थापना की आवश्यकता से जोड़ा गया था। तब जाकर 1997 में संसद ने ऐसे विवि की स्थापना को स्वीकृति दी थी। आज इस विवि के दो मान्यता प्राप्त केंद्र कोलकाता और प्रयागराज में चल रहे हैं। महाराष्ट्र के अमरावती जिले में भी एक केंद्र कार्यरत है जिसे यूजीसी से मान्यता मिलना शेष है। गुवाहाटी में चौथा केंद्र खोलने की कवायद हो रही थी। कोलकाता का केंद्र काफी समय से किराये के मकान में चल रहा है। वहां बहुत कम जगह है। आरोप है कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन किसी को प्रताड़ित या दंडित करना चाहता है तो उसका तबादला कोलकाता केंद्र में कर दिया जाता है। प्रयागराज में विश्वविद्यालय का अपना परिसर है, लेकिन वह भी आधारभूत सुविधाओं की बाट जोह रहा है। यह शोध का विषय हो सकता है कि इस केंद्र में जितने कर्मचारी या अध्यापक हैं उस अनुपात में विद्यार्थी हैं या नहीं। अमरावती जिले के केंद्र को जब मान्यता ही प्राप्त नहीं है तो उसकी चर्चा व्यर्थ है। हिंदी के नाम पर बने इस विवि पर केंद्र सरकार को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर ऐसा हो पाता है तो इसको एक ऐसे केंद्र के रूप विकसित किया जाए जो हिंदी पठन पाठन के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित हो सके। विश्व के अन्य देशों के विवि में हिंदी शिक्षण के समन्वयक के रूप में काम कर सके। वहां के लिए पाठ्यक्रम तैयार कर सके, शिक्षक तैयार कर सके। इस विश्वविद्यालय को उच्च शिक्षा के एक ऐसे वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना होगा जहां विश्व की अन्य भाषाओं में चल रही गतिविधियों पर विमर्श हो सके, शोध हो सके। अगर ऐसा हो पाता है तो प्रधानमंत्री के विकसित भारत के सोच को भी शक्ति मिल सकती है। अन्यथा वाट्सएप यूनिवर्सिटी तो चलती ही रहेगी।

महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय अनेक कारणों से पिछले लंबे समय से है विवादों में।

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