नागरिकता संशोधन कानून का गलत प्रचार हो रहा है
भारत विभाजन के बाद पहले पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हुआ, फिर उससे अलग होकर बने बांग्लादेश में भी।
![नागरिकता संशोधन कानून का गलत प्रचार हो रहा है](https://bharatiya.news/uploads/images/202403/image_870x_65f6c9aa729b3.jpg)
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संविदान के मूल्यों का पालन: नागरिकता कानून को संविदानिक मूल्यों और न्याय के प्रिंसिपल्स के साथ अनुसारित किया जाना चाहिए। इसमें धर्म, जाति, लिंग, या किसी अन्य वर्ग के खिलाफ कोई भी भेदभाव नहीं होना चाहिए।
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समाज में सहयोग और सम्मेलन की भावना: नागरिकता कानून के प्रति समाज की सहयोगी भावना और सम्मेलन की भावना होनी चाहिए। सभी लोगों को न्याय और समानता के साथ नागरिकता के अधिकार मिलने चाहिए।
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जागरूकता और शिक्षा: समाज को नागरिकता कानून के महत्व को समझाने और समाज के सभी वर्गों को उसके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है।
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विवादों का समाधान: नागरिकता कानून से जुड़े विवादों का न्यायिक रूप से समाधान करना चाहिए, जिससे समाज में आपसी समझदारी बढ़े और न्याय की भावना मजबूत हो।
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संविदानिक मंडटरीज़: संविदानिक मंडटरीज़ के अनुसार नागरिकता कानून का पालन किया जाना चाहिए और किसी भी व्यक्ति या समूह को उससे अलग नहीं रखा जाना चाहिए।
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विधि का विरोध: कुछ लोगों का मानना है कि नागरिकता कानून में कुछ अवैध या अनुचित प्रावधान हो सकते हैं जो व्यक्तियों के अधिकारों को प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह के विरोध से सम्बंधित कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
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सामाजिक विवाद: कुछ समुदाय और समूह नागरिकता कानून को समाज में भेदभाव बढ़ाने का एक उपाय मानते हैं और इसके खिलाफ उनके धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं।
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व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य: कुछ व्यक्ति नागरिकता कानून को अपने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की उल्लंघन मान सकते हैं, जिससे वे इसके खिलाफ उत्तरदाताओं के साथ विवाद कर सकते हैं।
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राजनीतिक दलों का विरोध: कुछ राजनीतिक दल और संगठन नागरिकता कानून को अपने राजनीतिक आदान-प्रदान के खिलाफ भी देख सकते हैं और इसका विरोध कर सकते हैं।
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- CAA भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम है जिसका उद्देश्य भारत में आये हुए विशेष धर्मांतरित व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करना है।
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- CAA के द्वारा, भारत में आये हुए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, और ईसाई धर्मांतरित व्यक्तियों को नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग मिलता है।
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CAA किन-किन धर्मों के लिए है ?
- CAA हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, और ईसाई धर्मांतरित व्यक्तियों के लिए है।
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- CAA के विरोध में यह बात उठाई जाती है कि यह केवल विशेष धर्मों को ही लाभ प्रदान करता है और संविधान की समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।
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- CAA और NRC (National Register of Citizens) अलग-अलग हैं। CAA नागरिकता प्रदान करने के लिए है, जबकि NRC नागरिकता की प्रमाणिकरण करने के लिए है।
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CAA किसने पारित किया?
- CAA को भारतीय संसद ने 2019 में पारित किया था।
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CAA के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हुए?
- CAA के खिलाफ प्रदर्शन इसके धार्मिक और संविधानिक विवाद के कारण हुए हैं। विभिन्न समाज के लोग इसे संविधान की समानता के खिलाफ मानते हैं।
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- CAA के समर्थक इसे अपने पश्चिमी अधिकारों के पालन का एक उपाय मानते हैं और भारत में आये हुए धर्मांतरित व्यक्तियों को संरक्षा प्रदान करने की जरूरत को समझते हैं।
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https://bharatiya.news/Citizenship-Amendment-BillCAA और NRC के बीच क्या अंतर है?
- CAA नागरिकता प्रदान करने के लिए है, जबकि NRC नागरिकता की प्रमाणिकरण के लिए है। दोनों का कोई सीधा संबंध नहीं है।
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CAA का असर क्या है?
- CAA का असर यह है कि इसे लागू करने से भारत में आये हुए धर्मांतरित व्यक्तियों को नागरिकता प्राप्त करने में आसानी होगी, जो कुछ लोगों के अनुसार अवैध आवासीय विदेशियों की संख्या बढ़ा सकती है।
दिसंबर 2019 में संसद से पारितहुए नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के नियम तय होते ही उस पर अमल शुरू हो गया है। यह कानून भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए इन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है। इन तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को राहत देना एक तरह से विभाजन की त्रासद परिस्थितियों का निवारण करना है।
भारत विभाजन के बाद पहले पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हुआ, फिर उससे अलग होकर बने बांग्लादेश में भी। इसी तरह अफगानिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों के वर्चस्व के चलते हिंदुओं और सिखों का वहां रहना दूभर हो गया। देश विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान में नेहरू-लियाकत नामक जो समझौता हुआ, उसके तहत यह तय हुआ था कि दौनों देश अपने यहां के अल्पसंख्यकों का ध्यान रखेंगे। पाकिस्तान इस समझौते के पालन के प्रति कभी ईमानदार नहीं रहा। वहां अल्पसंख्यकों का जो उत्पीड़न शुरू हुआ, वह समय के साथ बढ़ता गया और आज भी जारी है। देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान में करीब 24 प्रतिशत हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी आदि थे। बांग्लादेश बनने के बाद उनकी और विशेष रूप से हिंदुओं की एक बड़ी आबादी वहां की नागरिक बन गईं।
आज पाकिस्तान में अल्पसंख्यक दो प्रतिशत करीब और बांग्लादेश में आठ प्रतिशत से भी कम बचे हैं। शेष 14 प्रतिशत या तो पलायन के लिए बाध्य हुए या फिर जबरन मतांतरण को मजबूर हुए। जो बचे हैं, वे भी खतरे में हैं। इनमें से तमाम भारत भाग आए, जिनमें अधिकांश अनुसूचित जाति के हैं। वे शरणार्थी के रूप में खराब हालत में रह रहे हैं। इनमें से जो 2014 तक भारत आ चुके हैं, उन्हें ही सीएए के जरिये नागरिकता मिलेगी। सीएए में समय-समय पर संशोधन हुए, लेकिन उसमें इन तीनों देशों में सताए गए अल्पसंख्यकों की सुध नहीं ली गई। आखिरकार 2019 में ऐसा किया गया। ऐसा करके भारत ने अपने नैतिक दायित्व को पूरा किया और इतिहास की भूल को सुधारा। सीएए में संशोधन के विरोध में 2020 में देश में हिंसक प्रदर्शन हुए। दिल्ली में तो शाहीन बाग में महीनों तक सड़क को बंदकर धरना दिया गया। इसके कारण दिल्ली में भीषण दंगे हुए, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए। सीएए पर अमल की घोषणा होते ही कई दलों ने उसका फिर से वैसा ही विरोध शुरू कर दिया है, जैसा चार साल पहले किया था। इस कानून से असहमति जताने के लिए लोगों को गुमराह करने और बरगलाने वाले हास्यास्पद बयान दिए जा रहे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि मोदी सरकार उक्त तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को बुलाकर उन्हें नौकरी देगी और उनके लिए घर बनाएगी। उन्होंने यह कहकर लोगों को डराने का भी काम किया कि यदि इन देशों के करोड़ों लोग भारत आ गए तो अपराध बढ़ जाएंगे और कानून एवं व्यवस्था के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। वह जानबूझकर इस तथ्य की अनदेखी कर रहे कि सीएए उक्त तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को बुलाकर नागरिकता देने का कानून नहीं है। यह तो केवल उनके लिए है, जो 2014 तक भारत आ चुके हैं। बंगाल, तमिलनाडु एवं केरल के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि वे इस कानून को अपने यहां लागू नहीं होने देंगे, जबकि नागरिकता देना केंद्र सरकार का अधिकार है,
किसी राज्य सरकार का नहीं। यह ध्यान रहे कि अतीत में बंगाल, केरल, राजस्थान और पंजाब की तत्कालीन सरकारें अपनी विधानसभाओं में सीएए के विरोध में प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं। जो भी नेता सीएए का विरोध कर रहे हैं, उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि अगर भारत पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की चिंता नहीं करेगा तो कौन करेगा? विभाजन के पहले तो ये भारत के ही वे नागरिक थे, जिन पर पाकिस्तान थोप दिया गया। यह संभव है कि लोकसभा चुनाव के पहले सीएए लागू होने के कारण राजनीतिक रूप से भाजपा को कुछ लाभ मिल सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इससे आशंकित होकर विपक्षी दल बेतुकी बातें करने लगें और जनता के बीच भ्रम फैलाएं। फिलहाल वे यही कर रहे हैं।
वे मुस्लिम समाज में यह भ्रम फैला रहे कि सीएए लागू होने के उपरांत एनआरसी को इस तरह लागू किया जाएगा कि उनकी नागरिकता चली जाएगी। यह निरा झूठ है, क्योंकि अभी तो एनआरसी की कोई बात ही नहीं है और यदि कभी एनआरसी लागू हुआ तो अवैध तरीके से बांग्लादेश से आए मुसलमानों पर असर तो पड़ सकता है, लेकिन किसी को तब तक नहीं निकाला जा सकता, जब तक संबंधित देश उसे लेने को तैयार न हों। एक भ्रम यह भी फैलाया जा रहा है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को नागरिकता देने के दरवाजे बंद किए जा रहे हैं। यह भी झूठ है, क्योंकि नागरिकता कानून में उनके लिए अलग से नियम है।
इस नियम के तहत इन देशों के प्रताड़ित मुस्लिम भारत की नागरिकता पाने का आवेदन कर सकते हैं। यह विडंबना है कि विपक्षी दल वोट बैंक की राजनीति के चलते अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए मुसलमानों को इन देशों के अल्पसंख्यकों के समकक्ष रखना चाह रहे हैं और इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि वे धार्मिक प्रताड़ना का शिकार नहीं। विपक्षी दल म्यांमार से आए रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भी मौन हैं, जबकि वे पूर्वोत्तर से घुसपैठ कर जम्मू और हैदराबाद तक जाकर बस गए हैं। भारत सदैव से शरण लेने आए दूसरे देशों के लोगों के प्रति उदार रहा है, लेकिन आज पहले जैसी स्थिति नहीं। अब शरणार्थी के रूप में आतंकी तत्वों के आने का खतरा बढ़ गया है। भारत ऐसी स्थिति में भी नहीं कि जो भी आना चाहे, उसे आने दे और उसे नागरिकता भी दे दे। भारत की आबादी इस समय विश्व में सबसे अधिक हो गई है। यदि भारत में दूसरे देशों के नागरिकों का अवैध आगमन जारी रहा तो स्थिति गंभीर हो सकती है। अन्य देशों की तरह भारत को यह तय करने का अधिकार है कि वह दूसरे देशों के किन लोगों को नागरिकता दे और किन्हें नहीं।
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