6 दिसंबर को शौर्य दिवस कहना बेहद चुभता है
कुछ लोगों को 6 दिसंबर को शौर्य दिवस कहना बेहद चुभता है, क्योंकि उनके अनुसार 6 दिसंबर को तो देश कलंकित हुआ था। 1992 में बाबरी ढांचा गिरने के बाद "सेकुलर" पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने ऐसा माहौल बना दिया कि देश कलंकित हो गया,और भविष्यवाणियां की कि भारत टुकड़े टुकड़े होकर बिखर जायेगा। कारसेवकों को "लुमपिन एलिमेंट्स" का सर्टिफिकेट बांटा न। लेकिन यही पत्रकार और बुद्धिजीवी तब खामोश रहे जब 2 साल पहले 30 अक्तूबर को मुलायम सिंह के दावे "बाबरी पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता" की चुनौती को धत्ता बताते हुए कारसेवकों ने ढांचे पर भगवा फहरा दिया। और सिर्फ भगवा फहराने के "अपराध" के कारण कोलकाता के कोठारी बंधुओं को सेकुलर सरकार की पुलिस ने "सेकुलरिज्म" की रक्षा करते हुए दो दिन बाद 2 नवंबर को अयोध्या की गलियों में ढूंढ कर कोठारी बंधुओं को पकड़ा और गोली मार दी। तब सर्टिफिकेट बांटने वाले किसी पत्रकार या बुद्धिजीवी ने नहीं कहा कि भारत कलंकित हुआ है। मेरे नजरिए से भगवा फहराने पर गोली मार देने वाला दिन ब्लैक डे है। और कारसेवकों के शौर्य को मैं शौर्य ही कहूंगा। सर्टिफिकेट बांटने वाले भले ही मुझसे पत्रकारिता का सर्टिफिकेट छीन कर मुझे कारसेवक का सर्टिफिकेट दें, ऐसे ट्रोलर मेरे ठेंगे पर।
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