सीख देती है विभाजनकालीन भारत के साक्षी पुस्तक : होसबाले
पुस्तक ने राष्ट्र भक्ति की मिसाल देश के विभाजन के साक्षी रहे लोगों के संस्मरण व चित्र को एकत्र किया गया।
सीख देती है विभाजनकालीन भारत के साक्षी पुस्तक : होसबाले
देश के विभाजन के साक्षी रहे लोगों के संस्मरण व चित्र को एकत्र किया गया।
देश के विभाजन के साक्षी रहे लोगों के संस्मरण व चित्र को एकत्र करके तथ्यों के साथ संजोने का कार्य विभाजनकालीन भारत के साक्षी खंड तीन व चार पुस्तक में किया गया है। उस समय हिदू समाज के साथ हुए अत्याचार के साक्षी रहे 350 लोगों का साक्षात्कार कर विस्तृत वर्णन सभी खंड में दिया गया है। पुस्तक विभाजन के दर्द को समझने में संदर्भ का काम करेगी। यह बातें शुक्रवार को सेक्टर-12 स्थित भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मंदिर में जागृति प्रकाशन की ओर से आयोजित पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कही।
उन्होंने कहा कि विभाजन के साक्षी रहे लोग राष्ट्रीयता के लिए मार्गदर्शन और पाथेय हैं। हिदू बाहुल्य रहने तक ही देश भारत लोकतांत्रिक रहेगा। पुस्तक में इतिहास में अंधकार में रहे भाग पर प्रकाश डाला गया है। भारत एक संस्कृति एक राष्ट्र और एक जन है। 16 अगस्त 1946 के बाद मुस्लिम लीग की तरफ से शुरू हुए डायरेक्ट एक्शन ने दिखाया कि मानवता कितनी नीचे जा सकती है। आज भी विश्व के कई भागों में कट्टरपंथी, जिहादी मानसिकता हिसात्मक कार्य करने के लिए कार्य कर रही हैं, इसलिए इतिहास को समझकर आगे कार्य करने की जरूरत है।
पुस्तक ने राष्ट्र भक्ति की मिसाल को युवाओं तक पहुंचाया है। इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। देश को विभाजन के साक्षी रहे परिवारों का कृत्घ्न रहना चाहिए व आगे आने वाली पीढि़यों को भयावह सत्य के बारे में बताना चाहिए। भारत में भी पाकिस्तान परस्त मानसिकता बनाने का कार्य हुआ है। जहां हिदू घट जाता है, वहां भारत विरोधी मानसिकता जन्म लेती है। भारत की राष्ट्रीयता युगों-युगों से चल रही परंपरा से आती है। अखंड भारत का संकल्प हमने संजोया है। मैं भविष्य देख रहा हूं, जब भारत अखंड होगा।
पुस्तक के लेखक कृष्णा नंद सागर ने बताया कि खंड एक व दो के विमोचन पर आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि मातृभूमि का विभाजन कभी न मिटने वाली वेदना है। विभाजन के समय हुए अत्याचार मुस्लिम लीग ने नहीं किया, बल्कि मुस्लिम समाज ने किया था। मुस्लिम लीग ने उसका नेतृत्व किया था। विभाजन के समय उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार व बंगाल सहित अन्य राज्यों के मुस्लिमों की भूमिका के बारे में वर्णन किया गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार जोशी ने कहा कि देश में 70 प्रतिशत समस्या विभाजन के कारण सामने आई है। विश्व हिदू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि हिदुओं के मतांतरण को लेकर डा. आंबेडकर ने भी आगाह किया था कि यह सही नहीं है। महात्मा गांधी भी संघ की शाखा में आए थे, हालांकि उनकी डायरी गायब कर दी गई थी। हिदू दर्शन के पास ही दुनिया में सुख, शांति, वैभव व समरसता का मार्ग है। इस मौके पर आरएसएस के विभाग संचालक मधुसूदन दादू, गौतमबुद्ध नगर के सांसद डा. महेश शर्मा आदि मौजूद रहे।
लोगों का किया गया सम्मान :
इस दौरान विभाजन के साक्षी रहे दिलजीत वधावन, राजकुमार चावला, अमरनाथ आनंद, कर्नल कृष्ण पाल शर्मा, राम मूर्ति बब्बर, गोपेश गोस्वामी, चरण सिंह, परमहंस लाल मेहता, मदन लाल खन्ना, कर्नल मोहकम सिंह, रामशरण गौड़, हरिशनंद्र, रघुवीर सिंह सैनी, स्वदेश पाल सच्चिदानंद शर्मा, कमांडर कैलाश प्रसाद व रमेश को सम्मानित किया गया।
1958 मे आर्म्ड स्ट्रगल फॉर फ्रीडम १८५९ टू सुभाष के यशस्वी लेखक श्री बालशास्त्री हरदास ने विभाजन काल के वास्तविक इतिहास को लिकने का बीडा उठाया था। उस हेतु उन्होंने पंजाब का दौरा भी किया था। उसी दौरान मेरी भी भेंट उनसे अमृतसर मे हुई थी। उन्होंने जब उस काल के विभिन्न लोगो से उनके संघर्षो के वृतांत तथा शौरा गाथाये भी सुनी थो वे दंग रह गए। उन्होंने विचार किया की स्थान स्थान पर मुस्लिम आक्रमणोंको को निरस्त करने वाले उन शूरवीरो के नाम सामने आने पर हमारी अपनी ही सरकार उन्हें गौरवान्तित करनी के बजाय उन पर हत्या के मुक़दमे ठोक कर उन्हें जेल मे डाल देगी। अतः उन्होंने अपने काम को वही पर छोड़ दिया।
इसके ३५ वर्ष बाद १६६३ में भारतीय इतिहास संकलन योजना के अध्यक्ष ठाकुर रामसिंगजी जो की स्वयं भी विभाजन काल के योद्धा थे ने मुझे इस काम को हाथ में लेने का निर्देश दिया। लेकिन अपनी व्यक्तिगत कठिनायों के कारण मैंने तब अपने असमर्थता व्यथ कर दी थी। उसके बाद वर्ष २००० मे उन्होंने फिर मुझे बुलाया और कहा की इस काम को कोई दूसरा करने वाला नहीं ,तुम भी अगर नहीं करोगे तो विभाजन का यह अध्याय भारतीय इतिहास में से हमेशा के लिए लुप्त हो जायेगा। यधपि मै स्वान्तः सुखाया यह काम पहले से ही कुछ तो कर ही रहा था ,किंतु ठाकुरजी के आदेश को शिरोदार्य करते हुए तब से उसे विधिवत करने लगा।
इतिहास लेखन के लिए आवश्यक होती है मौलिक आधार सामाग्री। उसी का यहाँ अभाव था। अतः मैंने मौलिक आधार सामाग्री ही एककत्रित करने का विचार किया। जो लोग उस कालखंड के आज भी विद्यमान है उनसे प्रत्यक्ष भेंट करके उनकी साक्षीय ली जाये। वे उस समय जहा भी थे वह की सामाजिक , धार्मिक,शैक्षिक व राजनीतिक स्थिति क्या थी ?
उनके परिव्वर गली मोहल्ले बाजार की स्थिति क्या थी ? आस पास के गावो का वातावरण कैसा था ? मुस्लिम समाज की क्या स्थिति थी ? हिन्दू समाज की क्या स्थिति थी? आत्मा रक्षा के लिए कुछ तैयारी करनी चाहिए यह भाव हिन्दुओ में कब और कैसे आया। नहीं आया थो क्यों नहीं आया ? उनके परिवार ,मोहल्ले या ग्राम नगर मे ऐसा क्या हुआ की उनको होना अपना घर गांव छोड़ने का निर्णय करना पड़ा। गांव छोड़ते समय क्या हुआ था ? रास्ते में क्या हुआ ? आदि प्रश्नो के उत्तर प्रत्यक्ष वार्तालाप करके ही लिए जा सकते थे.
इस हेतु मै विभिन्न स्थानों के लोगो से मिला और उनका साक्षात्कार किया। प्रत्येक व्यक्ति से वार्तालाप मे कम से कम ३-४ घंटे लगते थे। कुछ लोगो से थो कई कई बार मिलना पड़ा। इस प्रकार पिछले २० वर्षो में ३४० लोगो का मैंने साक्षात्कार किया।
भारत का विभाजन कोई अकस्मात् नहीं हो गया था। उससे कई वर्ष पूर्व की घटनाओ ने उसकी भूमिका तैयार की थी। इसी प्रकार विभाजन हो जाने के कई वर्ष बाद तक विभाजन के दुष्प्रभावों से लोड त्रस्त रहे थे। इसलिए साक्षात्कारों में मैंने केवल १९४६-४७ तक सीमित नहीं था।
हिन्दू समाज मानसिक रूप से इस युद्ध के लिए पहले से तैयार नहीं था। इसलिए उसे काफी हानि उठानी पड़ी। बीस लाखो से अधिक लोगो के प्राण गए। हज़ारो महिलाओ का अपहरण हुआ , उनका सत्तीत्व बंग हुआ। हज़ारो मंदिरो गुरुद्वारों को अपवित्र किया गया , उन्हें जला दिया गया , उनका विध्वंस हुआ। अरबो खरबो की सम्पत्ति चीन ली गयी अतवा जला दी गयी। जोरदार संघर्ष हुए और बहुत काम हिन्दू मारे गए। किन्तु जहा जहा के हिन्दुओ ने कांग्रेस नेताओ पर विश्वास करके संघर्ष की तैयारी नहीं की वहा वहा सर्वनाश हो गया।
इस युद्ध काल को दो भागो में बाटा जा सकता है-प्रथम १५ अगस्त १९४७ से पूर्व का काल और द्वितीय १५ अगस्त १९४७ के बाद का काल। १५ अगस्त से पूर्व कलकत्ता से लेके कोहाट तक हिन्दू लुटते रहे ,पीटते रहे,मरते रहे. १५ अगस्त के बाद हिन्दू समाज का भी स्वाभिमान जागा और इसमें प्रतिशोद कि ज्वाला धधक उठी इस ज्वाला मे पूर्वी पंजाब ,हिमाचल प्रदेश,हरयाणा,पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तर पूर्वी राजस्थान का मुस्लिम समाज स्वाहा होने लगा। ये वे क्षेत्र थे जिन क्षेत्रो को वहा के मुसलमानो ने जबरदस्ती पाकिस्तान मे मिलाने की तैयारी की थी और लड़ के लेंगे हिंदुस्तान को साकार करने वाले थे।
आशर्य की बात तो यह है की पाकिस्थानो क्षेत्रो मे हिन्दुओ की रक्षा से मुँह मोड लेने वाले नेतागण अब इन क्षेत्रो में मुसलमानो की रक्षा के लिए उन्होंने पुलिस भी लगा दी और सेना भी। सब प्रकार की विपरीत परिस्थितों में अपनी जान हथेली पर रख कर बर्बर आक्रमणकारियों का मुकाबला करते हुए लाखो हिन्दुओ को सुरक्षित निकल कर हिन्दुस्थान ले आना यह संघ के स्वयंसेवको का असामान्य कर्तुत्व था। अपने इस कर्त्तव्य का निर्वाह करते हुए अनगिनत स्वयंसेवक बलिदान भी हुए।
क्या इतिहासकारो की दृष्टि इस ओर गयी ?नहीं क्यों नहीं क्योंकि उन्हें इससे सम्बन्धित कोई समाग्री प्राप्त ही नही हुई है।
विभाजन का काल विभिन्न अवस्थाओं से गुजरा हैं। इन सभी अवस्थाओं का ज्ञान आज की पीड़ी को होना ही चाहिए। यह ज्ञान उन बुजर्गो के पास ही था जो उस काल के साक्षी थे। उन्होंने अपने साक्षियों के द्वारे ही यहाँ ज्ञान देने का प्रयत्न किया हैं -विभाजनकालीन भारत के साक्षी ग्रन्थ में। यह ग्रन्थ अत्यंत जानकारी पूर्ण थो हैं ही साथ साथ रोचक भी है।
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