2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट – पीड़ितों को न्‍याय कब मिलेगा? गुनहगार कौन?

11 जुलाई 2006 का काला दिन, जब 189 लोगों ने अपने सुनहरे भविष्‍य की आशा के साथ सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद के बीच मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर किया था, उन्‍हें नहीं पता था कि आज का पूरा दिन भी उन्‍हें नसीब नहीं होने वाला, कुछ ही समय बाद इस दुनिया को […] The post 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट – पीड़ितों को न्‍याय कब मिलेगा? गुनहगार कौन? appeared first on VSK Bharat.

Jul 26, 2025 - 06:21
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11 जुलाई 2006 का काला दिन, जब 189 लोगों ने अपने सुनहरे भविष्‍य की आशा के साथ सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद के बीच मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर किया था, उन्‍हें नहीं पता था कि आज का पूरा दिन भी उन्‍हें नसीब नहीं होने वाला, कुछ ही समय बाद इस दुनिया को अलविदा कह देंगे। सिलसिलेवार सात बम धमाके…189 पैसेंजर मारे जाते हैं और 824 लोग बुरी तरह से घायल होते हैं। जिनमें से कई वर्षों बाद आज भी शरीर के अंग खोने एवं अन्‍य बीमारियों का कष्‍ट हर रोज झेल रहे हैं। अब किससे कहें और कौन उन्‍हें न्‍याय देगा?

न्‍याय के मंदिर में कौन सा निर्णय सही पहले या अब?

पहले ही जो बम ब्‍लास्‍ट के आरोपी पकड़े गए थे, उनमें से एक को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया था, शेष जिन 12 तत्‍कालीन गुनहगारों को सजा हुई, वे भी अब मुंबई उच्च न्यायालय के निर्णय में यह कहते हुए बरी कर दिए गए हैं कि उनके खिलाफ शासन कोई ठोस सबूत प्रस्‍तुत नहीं कर पाया है। इससे जुड़े अनेक प्रश्‍न हैं जो उन तमाम 189 मृत लोगों के परिजनों और जो जीवित रहे 824 लोग, उनके और उनके परिवारजनों के मन में कौंध रहे हैं कि आखिर पहले जो निर्णय कोर्ट का दिया गया था, वह सही था या अब सही निर्णय हुआ है!

सबूत तो पुराने ही हैं। हो सकता है, समय के साथ कुछ सबूतों में क्षीणता आई होगी, किंतु उसके बाद भी जो थ्‍योरी एवं तत्‍कालीन साक्ष्‍य न्‍यायालय में प्रस्‍तुत किए गए थे, उनके आधार पर विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत साज़िश रचने और देश के ख़िलाफ़ संगठित तरीके से अपराध करने का दोषी ठहराया था। लेकिन अब दोष मुक्‍त हैं।

सोचिए; हमारी न्‍याय प्रणाली और उसके संकटों को! न्‍यायालय की कार्यप्रणाली पर कोई व्‍यंग्‍य नहीं, कोई प्रश्‍न नहीं, देरी के लिए कुछ भी नहीं कहना, किसी जज से कोई शिकायत नहीं, किंतु देश के वे तमाम लोग आज न्‍याय चाहते हैं। अपने लिए, अपने देश के लिए और उस भारतीय लोकतंत्र के लिए जो यह घोषणा करता है कि किसी के साथ अन्‍याय नहीं होगा, भले ही न्‍याय मिलने में देरी हो। ऐसे में जो इस बम कांड से सीधे प्रभावित हुए हैं, उनके न्‍याय का क्‍या? क्‍या यह कोई छोटी घटना है? जहां एक व्‍यक्‍ति के जीवन का अ‍त्‍यधिक मूल्‍य हो, वहां इस घटना में तो 189 लोगों की जान गई!

मुंबई में सात उपनगरीय यात्री ट्रेनों में हुए बम विस्फोटों का करीब नौ साल तक केस चलने के बाद स्पेशल मकोका कोर्ट ने 11 सितंबर, 2015 को फैसला सुनाया था। जिस व्‍यक्‍ति को सबूतों के अभाव में सबसे पहले बरी किया गया था, वह अब्दुल वाहिद दीन मोहम्मद शेख (38) है। अब्दुल वाहिद पर पाकिस्तानी बागवानों को शरण देने का आरोप था। एक गवाह अपने बयान से पलट गया। सबूत कमज़ोर हो गया। अन्‍य जिन्‍हें दोषी ठहराया गया था उनमें कमाल अहमद मोहम्मद वकील अंसारी, डॉ. तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सोहेल महमूद शेख, जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख, नवीद हुसैन खान रशीद हुसैन खान और आसिफ खान शामिल रहे।

आरोपों के अनुसार, कमाल अंसारी, फैसल शेख, एहतेशाम सिद्दीकी, नवीद खान और आसिफ खान ने विस्फोटों में अहम भूमिका निभाई थी। इन लोगों को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र) के तहत और संगठित अपराध के लिए मकोका की धारा 3 (1) (i) के तहत दोषी ठहराया गया था। दोनों कानूनों में अधिकतम सजा मौत है। वहीं, दोषियों को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), विस्फोटक अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम और रेलवे अधिनियम की कई अन्य धाराओं के तहत दोषी पाया गया। कमाल अंसारी, मोहम्मद माजिद शफी और नवीद हुसैन को छोड़कर अन्य सभी को आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह का दोषी ठहराया गया था।

11 मिनट में हुए थे सात बम ब्‍लास्‍ट

मुंबई में 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की वेस्टर्न लाइन की लोकल ट्रेनों में शाम 6:24 से 6:35 बजे के बीच सात बम धमाके हुए थे। खार, बांद्रा, जोगेश्वरी, माहिम, बोरीवली, माटुंगा और मीरा-भायंदर रेलवे स्टेशनों के पास ब्लास्ट हुए। बम आरडीएक्स, अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल ऑयल और कीलों से बनाए गए थे, जिसे सात प्रेशर कुकर में रखकर टाइमर के जरिए उड़ाया गया था। सभी धमाके फर्स्ट क्लास कोच में हुए थे।

पुलिस की चार्जशीट में 30 आरोपी बनाए गए थे। इनमें से 13 की पहचान पाकिस्तानी नागरिकों के तौर पर हुई। एटीएस ने 13 संदिग्धों को गिरफ्तार किया, अन्य फरार बताए गए। एटीएस ने दावा किया कि धमाकों की साजिश लश्कर-ए-तैयबा के आजम चीमा ने पाकिस्तान के बहावलपुर में रची थी। 20 किलोग्राम आरडीएक्स गुजरात के रास्ते भारत लाया गया और उक्‍त घटना को अंजाम दिया गया।

तत्‍कालीन समय में जब स्‍पेशल कोर्ट ने दोषियों को सजा सुनाई, तब न्‍यायालय के बाहर का दृष्‍य देखने लायक था। एटीएस टीम प्रसन्न थी। उस समय के एटीएस प्रमुख विवेक फणसलकर ने कहा था – “पूरे मामले को एक साथ जोड़ने के लिए सबूत इकट्ठा करने और बयान दर्ज करने में 135 अधिकारियों ने दिन-रात मेहनत की। इस फैसले से बहुत संतुष्टि मिली है।”

पीड़‍ित परिवार अचंभित और दुखी

सोचें; यह दिन उन 189 पीड़ितों के परिवारों के लिए कितना अधिक भावुक दिन रहा होगा! नंदिनी 27 साल की थी, 11 जुलाई 2006 को बोरीवली स्टेशन पर हुए धमाके में मारी गई, उसके पिता रमेश नाइक ने न्‍याय के लिए लगातार लड़ाई लड़ी। पहले जब निर्णय आया था, तब परिवार खुश था कि चलो बेटी को इंसाफ मिला, पर आज इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाला ये परिवार अपने को टूटा महसूस कर रहा है।

हेमलता दिल्लौद के पिता की मीरा रोड और भयंदर के बीच ट्रेन में बम विस्‍फोट से मृत्यु हो गई थी, तब वे 18 साल की थीं। उन्हें सरकार ने पश्चिम रेलवे में मलाड स्टेशन पर चपरासी की नौकरी दे दी जो निर्णय आने वाले दिन तक भयंदर में बुकिंग क्लर्क हो गई थीं, जैसे ही उन्‍हें न्‍यायालय के फैसले की जानकारी लगी वह फूट-फूट कर रो रही थी, इनका कहना रहा कि “इन लोगों को फाँसी होनी चाहिए थी। मैंने अपने पिता को सिर्फ़ 40 साल की उम्र में खो दिया था। उनके परिवारों को भी उनकी कमी खलनी चाहिए।”

हेमलता दिल्लौद और रमेश नाइक की तरह हर किसी पीड़ित परिवार की अपनी दुख भरी कहानी है। ये सभी परिवार न्‍याय की वेदी पर अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। कई इस नए निर्णय आने के बाद रो पड़े हैं। वास्‍तव में ये दर्द सिर्फ एक परिवार का नहीं है। ये पीड़ा उन सभी परिवारों की है, जो किसी न किसी रूप में इस आतंकी घटना से प्रभावित हुए।

एक निर्णय ने बदल दिए सभी मायने!

अब नया फैसला घटना के 19 साल बाद आया है, जिसने एक झटके में जैसा कि एटीएस का दावा था कि 135 अधिकारियों ने दिन-रात मेहनत के बाद आरोप सिद्ध हो पाए और दोषियों को सजा हुई, आज वह मेहनत सब बेकार हो चुकी है। मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रॉसीक्यूशन यानी सरकारी वकील आरोपियों के खिलाफ केस साबित करने में नाकाम रहे हैं। यह मानना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया है, इसलिए उन्हें बरी किया जाता है। अगर वे किसी दूसरे मामले में वांटेड नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा किया जाए। और फिर क्‍या था, कोर्ट के आदेश की तामील सोमवार 21 जुलाई की शाम से शुरू हो गई है।

ये कोई छोटी घटना नहीं है। आज देश जानना चाहता है कि ये सभी दोषी नहीं तो कौन उन बम ब्‍लास्‍ट का गुनहगार है? क्‍या जिम्‍मेदारी कभी किसी की तय होगी? कोई तो गुनहगार होगा उन बम धमाकों का? पहले स्पेशल कोर्ट ने पांच आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी और सात अन्य आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब ये फैलाया जा रहा है कि आरोपियों को फंसाया गया, एजेंसियों ने उनके खिलाफ साजिश की। यानी कि आप अपनी ही जांच एजेंसियों पर भरोसा नहीं कर रहे! लेकिन उन जजों के लिए क्‍या कहेंगे? जिन्‍होंने तत्‍कालीन साक्ष्‍यों के आधार पर माना कि उक्‍त सभी आरोपी दोषी हैं और इसलिए उन्‍हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। जिस एक आरोपी को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया था, फिर तो मजहब के नाम पर उसे भी स्पेशल कोर्ट को दोषी ठहरा देना था? लेकिन ऐसा नहीं है, न्‍यायालय ने दोषी उन्‍हें ही माना, जिनके खिलाफ पुख्‍ता सबूत थे।

देखा जाए तो आज इस मुंबई लोकल सीरियल ब्लास्ट में आरोपियों का छूटना सिर्फ घटना से प्रभावित परिवारों का दर्द नहीं है, यह हमारे पूरे सिस्‍टम पर करारा तमाचा है। ये सवाल बार-बार पूछा जाता रहेगा कि इस पूरी घटना में 187 लोगों के हत्यारे कौन हैं? आखिर हत्यारे कोर्ट से छूट कैसे जाते हैं? क्‍योंकि यह पहली बार नहीं हो रहा।

वर्ष 1993 का सूरत ब्लास्ट, जिसमें सभी 11 आरोपियों को उच्‍चतम न्‍यायालय से दोषमुक्‍त कर दिया था, जबकि टाडा कोर्ट ने आरोपियों को बीस साल तक की सजा सुनाई थी। वर्ष 2006 में महाराष्ट्र के नांदेड में हुए बम धमाके में यही देखने को मिला, जब नौ आरोपियों को न्‍यायालय से दोषमुक्‍त कर दिया था। 13 मई 2008- जयपुर में सीरियल बम धमाकों को भी इसलिए याद किया जाता रहेगा क्‍योंकि जिंदा बम मिलने के बाद जिन्‍हें दोषी माना गया, उन्‍हें कोर्ट ने बरी कर दिया था। इस तरह के अन्‍य कई प्रकरण देखने को मिलते हैं, जिनमें जिन्‍हें पहले दोषी ठहराया गया, वे आगे दोषमुक्‍त हो गए और जो उक्‍त घटना के पीड़‍ित थे, वे आज भी अपने साथ न्‍याय होने का इंतजार कर रहे हैं।

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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