15 साल, 1000 वैज्ञानिक.. आकाश के प्रोजेक्ट डायरेक्टर प्रह्लाद रामराव ने बताई इस अचूक शस्त्र की कहानी

Akash Missile Inside Story: डीआरडीओ ने आकाश मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित की। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसका पहला युद्धक्षेत्र परीक्षण हुआ। इस मिसाइल के डेवलपमेंट में अहम रोल निभाने वाले प्रहलाद रामाराव ने बताया कि आकाश ने ड्रोन और मिसाइल हमलों को सफलतापूर्वक विफल किया। इस परियोजना पर 1994 में काम शुरू हुआ था।

May 13, 2025 - 07:22
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15 साल, 1000 वैज्ञानिक.. आकाश के प्रोजेक्ट डायरेक्टर प्रह्लाद रामराव ने बताई इस अचूक शस्त्र की कहानी
नई दिल्ली: '' के बाद ऐसा लगा जैसे भारत और पाकिस्तान जंग की ओर बढ़ रहे। ये स्थिति उस समय आई जब पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन और मिसाइलों से अटैक किए। हालांकि, भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने पड़ोसी मुल्क की हर नापाक हरकत को फेल कर दिया। इस एक्शन में सिस्टम ने अहम रोल निभाया, जिससे दुनियाभर में इस प्रणाली ने सुर्खियां बटोरी। अब आकाश मिसाइल को डेवलप करने वाली टीम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे वैज्ञानिक प्रह्लाद रामाराव ने इस अचूक शस्त्र पर खुलकर अपनी बात रखी है। उन्होंने बताया कि जब यह मिसाइल सही तरीके से काम कर गई, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए।डीआरडीओ के पूर्व प्रोजेक्ट निदेशक प्रह्लाद रामाराव ने आकाश मिसाइल रक्षा प्रणाली की सफलता पर खुशी जताई। आकाश ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुश्मन के ड्रोन और मिसाइल हमलों को नाकाम किया। इस प्रणाली को बनाने में 15 साल लगे और इसमें हजारों वैज्ञानिकों ने काम किया। रामाराव ने बताया कि 8 और 9 मई की रात को आकाश ने एस400 ट्रिम्फ और बराक-8 जैसे अन्य सिस्टम के साथ मिलकर पाकिस्तान के हमलों को विफल कर दिया।प्रहलाद रामाराव ने आकाश मिसाइल की सफलता पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा, 'मेरी आंखों में आंसू आ गए जब मेरे बच्चे ने इतना अच्छा काम किया। यह मेरे जीवन का सबसे खुशी का दिन है।' रामाराव को भारत के 'मिसाइल मैन' एपीजे अब्दुल कलाम ने 35 साल की उम्र में आकाश प्रोग्राम का प्रमुख बनाया था। वे सबसे कम उम्र के परियोजना निदेशक थे। कलाम उस समय हैदराबाद में डीआरडीओ की रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला के प्रमुख थे।रामाराव ने बताया कि इस परियोजना पर काम 1994 में शुरू हुआ था। तब इसका बजट 300 करोड़ रुपये था। उन्होंने कहा कि जब आप कुछ नया बनाते हैं, तो कई बार असफल होते हैं। वे भी असफल हुए, लेकिन उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा। सबसे बड़ी चुनौती राजेंद्र को विकसित करना था। यह एक जटिल मल्टी-फंक्शन इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्कैन किया गया फेज्ड एरे रडार है। लेकिन उन्होंने इस चुनौती को पार कर लिया। बाद में, परियोजना का बजट बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया गया।रामाराव ने दावा किया कि दुनिया में कहीं भी सिर्फ 500 करोड़ रुपये में मिसाइल रक्षा प्रणाली नहीं बनाई जा सकती थी। आकाश सबसे सस्ती लेकिन प्रभावी मिसाइल शील्ड है। यह 70 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन की मिसाइल का पता लगा सकता है और 30 किलोमीटर की दूरी पर उसे मार सकता है। 2009 में विकास के बाद, आकाश में लगातार सुधार हुआ है। इसके कई रूप विकसित किए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।रामाराव ने कहा कि मैंने आपको गारंटी दी है, दुनिया में कहीं भी सिर्फ 500 करोड़ रुपये में मिसाइल रक्षा प्रणाली का आविष्कार नहीं किया जा सकता था। आकाश सबसे सस्ता लेकिन प्रभावी मिसाइल शील्ड है। यह 70 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन की मिसाइल का पता लगा सकता है और 30 किलोमीटर की दूरी पर उसे मार सकता है।डीआरडीओ के इस अनुभवी वैज्ञानिक को पद्म पुरस्कार भी मिल चुका है। अब उनकी उम्र 78 साल है। उन्होंने आकाश मिसाइल की सफलता को अपने जीवन का सबसे खुशी का दिन बताया। आकाश मिसाइल रक्षा प्रणाली भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह देश की सुरक्षा को मजबूत करने में मदद करती है।

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