हिमाचल पर बजट आकार से दोगुना कर्ज:लोन 1 लाख करोड़ पार; पैदा होने वाले हर बच्चे को विरासत में 1.17 लाख का ऋण

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू का आज अपना तीसरा बजट पेश करेंगे। इसे सदन में टेबल करने के बाद इस पर चर्चा होगी। 26 मार्च को इसे पारित कराया जाएगा। संभव है कि इस बार के बजट का आकार लगभग 60 हजार करोड़ के आसपास रहेगा। चिंता इस बात की है कि जितना ज्यादा बजट का आकार है, उससे लगभग डबल हिमाचल पर कर्ज चढ़ गया है। इस वजह से राज्य के प्रत्येक व्यक्ति सहित जन्म लेने वाले हर बच्चे को विरासत में 1.17 लाख रुपए का कर्ज मिल रहा है। इससे हिमाचल देश में प्रति व्यक्ति कर्ज लेने वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर आ गया है। 1970 में 80.18 करोड़ का पहला बजट संसद में दिसंबर 1970 को हिमाचल राज्य अधिनियम पास हुआ। इसके अनुसार 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश देश का 18वां राज्य बना। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद तब वित्त वर्ष 1971-72 में प्रदेश का पहला बजट 80.18 करोड़ रुपए का पेश किया गया। हिमाचल गठन के 52वें साल में इस बजट का आकार बढ़कर 58 हजार 444 करोड़ हो गया, लेकिन करंट फाइनेंशियल ईयर में एक्चुअल खर्च 17 हजार करोड़ ज्यादा हो गया। इसी वजह से बीते 11 मार्च को सरकार ने सप्लिमेंटरी बजट पारित किया है। यानी बजट 700 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है। 1 लाख हजार करोड़ के कर्ज तले दबा हिमाचल छोटे से राज्य हिमाचल पर 1 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का कर्ज हो गया है। लगभग 10 हजार करोड़ रुपए की कर्मचारी-पेंशनर की देनदारी बकाया है। "आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया' होने की वजह से प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस सरकार लगभग 25 महीने में 30 हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज ले चुकी है। हालात इतने खराब हैं कि पुराना कर्ज चुकाने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है। हालांकि मई 2023 में केंद्र ने हिमाचल की लोन लेने की सीमा 5 प्रतिशत से घटाकर 3.5 प्रतिशत कर दी है। ऐसा करने से हिमाचल हर साल लगभग 5500 करोड़ रुपए कम लोन ले पाएगा। कर्ज लेकर घी पीने वाले हिमाचल के लिए यह बड़ा झटका है। केंद्र के दिए झटके से बढ़ी परेशानी लोन लिमिट के अलावा केंद्र ने हिमाचल को और भी झटके दिए हैं। केंद्र सरकार ने जून 2022 में GST प्रतिपूर्ति राशि बंद कर दी, जो देश में GST लागू करने के बाद से केंद्र सरकार हर साल दे रही थी। GTS प्रतिपूर्ति राशि के बंद होने से राज्य को हर साल केंद्र से मिलने वाली लगभग 3000 करोड़ की ग्रांट बंद हो गई है। दूसरी और कर्ज अदायगी की रकम बढ़कर लगभग 5300 करोड़ सालाना हो गई है। इससे भी बड़ा झटका रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (RDG) ने लगा है। दरअसल, 2020-21 तक केंद्र से हिमाचल को 10 हजार करोड़ से ज्यादा की RDG मिल रही थी जो कि 2025-26 में घटकर 3257 करोड़ रह जाएगी। नया वेतनमान देने से बढ़ीं मुश्किलें पूर्व भाजपा सरकार ने दिसंबर 2021 में कर्मचारियों एवं पेंशनरों को छठे वेतनमान के लाभ तो दे दिए। मगर जनवरी 2016 से पेंशन और सैलरी का एरियर नहीं दिया। एरियर की एक किश्त कर्मचारियों को जरूर दी गई, लेकिन लगभग 10 हजार करोड़ रुपए कर्मचारियों और पेंशनरों के सरकार के पास बकाया हैं। वर्तमान में लगभग 17 हजार करोड़ रुपए वेतन और लगभग 10 हजार करोड़ रुपए पेंशन पर खर्च हो रहा है। 100 रुपए में से 26 वेतन पर हो रहा खर्च राज्य सरकार को विभिन्न माध्यमों से होने वाली आय और केंद्र से विभिन्न स्कीमों के तहत मिलने वाली राशि का 73 प्रतिशत से ज्यादा बजट वेतन, पेंशन, बैंकों का कर्ज लौटाने व ब्याज चुकता करने में ही खर्च हो रहा है। डेवलपमेंट वर्क के लिए लगभग 26 प्रतिशत बजट बच पाता है। आसान शब्दों में समझें तो प्रत्येक 100 रुपए में से 26 रुपए वेतन, 17 रुपए पेंशन पर, 11 रुपए ब्याज, 10 रुपए कर्ज को चुकाने, 9 रुपए ऑटोनोमस बॉडी को ग्रांट देने तथा 100 में से लगभग 26 रुपए विकास कार्य व दूसरी गतिविधियों पर खर्च हो रहे थे। आज प्रस्तुत होने वाले बजट में विकास कार्य के लिए बजट और भी कम हो सकता है, क्योंकि नए वेतनमान व पेंशन से अर्थव्यवस्था दबाव में है।

Mar 17, 2025 - 08:42
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हिमाचल पर बजट आकार से दोगुना कर्ज:लोन 1 लाख करोड़ पार; पैदा होने वाले हर बच्चे को विरासत में 1.17 लाख का ऋण
हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू का आज अपना तीसरा बजट पेश करेंगे। इसे सदन में टेबल करने के बाद इस पर चर्चा होगी। 26 मार्च को इसे पारित कराया जाएगा। संभव है कि इस बार के बजट का आकार लगभग 60 हजार करोड़ के आसपास रहेगा। चिंता इस बात की है कि जितना ज्यादा बजट का आकार है, उससे लगभग डबल हिमाचल पर कर्ज चढ़ गया है। इस वजह से राज्य के प्रत्येक व्यक्ति सहित जन्म लेने वाले हर बच्चे को विरासत में 1.17 लाख रुपए का कर्ज मिल रहा है। इससे हिमाचल देश में प्रति व्यक्ति कर्ज लेने वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर आ गया है। 1970 में 80.18 करोड़ का पहला बजट संसद में दिसंबर 1970 को हिमाचल राज्य अधिनियम पास हुआ। इसके अनुसार 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश देश का 18वां राज्य बना। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद तब वित्त वर्ष 1971-72 में प्रदेश का पहला बजट 80.18 करोड़ रुपए का पेश किया गया। हिमाचल गठन के 52वें साल में इस बजट का आकार बढ़कर 58 हजार 444 करोड़ हो गया, लेकिन करंट फाइनेंशियल ईयर में एक्चुअल खर्च 17 हजार करोड़ ज्यादा हो गया। इसी वजह से बीते 11 मार्च को सरकार ने सप्लिमेंटरी बजट पारित किया है। यानी बजट 700 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है। 1 लाख हजार करोड़ के कर्ज तले दबा हिमाचल छोटे से राज्य हिमाचल पर 1 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का कर्ज हो गया है। लगभग 10 हजार करोड़ रुपए की कर्मचारी-पेंशनर की देनदारी बकाया है। "आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया' होने की वजह से प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस सरकार लगभग 25 महीने में 30 हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज ले चुकी है। हालात इतने खराब हैं कि पुराना कर्ज चुकाने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है। हालांकि मई 2023 में केंद्र ने हिमाचल की लोन लेने की सीमा 5 प्रतिशत से घटाकर 3.5 प्रतिशत कर दी है। ऐसा करने से हिमाचल हर साल लगभग 5500 करोड़ रुपए कम लोन ले पाएगा। कर्ज लेकर घी पीने वाले हिमाचल के लिए यह बड़ा झटका है। केंद्र के दिए झटके से बढ़ी परेशानी लोन लिमिट के अलावा केंद्र ने हिमाचल को और भी झटके दिए हैं। केंद्र सरकार ने जून 2022 में GST प्रतिपूर्ति राशि बंद कर दी, जो देश में GST लागू करने के बाद से केंद्र सरकार हर साल दे रही थी। GTS प्रतिपूर्ति राशि के बंद होने से राज्य को हर साल केंद्र से मिलने वाली लगभग 3000 करोड़ की ग्रांट बंद हो गई है। दूसरी और कर्ज अदायगी की रकम बढ़कर लगभग 5300 करोड़ सालाना हो गई है। इससे भी बड़ा झटका रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (RDG) ने लगा है। दरअसल, 2020-21 तक केंद्र से हिमाचल को 10 हजार करोड़ से ज्यादा की RDG मिल रही थी जो कि 2025-26 में घटकर 3257 करोड़ रह जाएगी। नया वेतनमान देने से बढ़ीं मुश्किलें पूर्व भाजपा सरकार ने दिसंबर 2021 में कर्मचारियों एवं पेंशनरों को छठे वेतनमान के लाभ तो दे दिए। मगर जनवरी 2016 से पेंशन और सैलरी का एरियर नहीं दिया। एरियर की एक किश्त कर्मचारियों को जरूर दी गई, लेकिन लगभग 10 हजार करोड़ रुपए कर्मचारियों और पेंशनरों के सरकार के पास बकाया हैं। वर्तमान में लगभग 17 हजार करोड़ रुपए वेतन और लगभग 10 हजार करोड़ रुपए पेंशन पर खर्च हो रहा है। 100 रुपए में से 26 वेतन पर हो रहा खर्च राज्य सरकार को विभिन्न माध्यमों से होने वाली आय और केंद्र से विभिन्न स्कीमों के तहत मिलने वाली राशि का 73 प्रतिशत से ज्यादा बजट वेतन, पेंशन, बैंकों का कर्ज लौटाने व ब्याज चुकता करने में ही खर्च हो रहा है। डेवलपमेंट वर्क के लिए लगभग 26 प्रतिशत बजट बच पाता है। आसान शब्दों में समझें तो प्रत्येक 100 रुपए में से 26 रुपए वेतन, 17 रुपए पेंशन पर, 11 रुपए ब्याज, 10 रुपए कर्ज को चुकाने, 9 रुपए ऑटोनोमस बॉडी को ग्रांट देने तथा 100 में से लगभग 26 रुपए विकास कार्य व दूसरी गतिविधियों पर खर्च हो रहे थे। आज प्रस्तुत होने वाले बजट में विकास कार्य के लिए बजट और भी कम हो सकता है, क्योंकि नए वेतनमान व पेंशन से अर्थव्यवस्था दबाव में है।

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