हर मुद्दे पर केंद्र से टकराव, क्या विपक्ष का नया नेता बनने की कोशिश कर रहे स्टालिन? समझिए पूरी बात

तमिलनाडु विधानसभा ने केंद्र सरकार से वक्फ संशोधन विधेयक को वापस लेने की मांग की है। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला बताया। स्टालिन का मानना है कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर करता है और सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाता है।

Mar 27, 2025 - 18:44
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हर मुद्दे पर केंद्र से टकराव, क्या विपक्ष का नया नेता बनने की कोशिश कर रहे स्टालिन? समझिए पूरी बात
नई दिल्ली: तमिलनाडु विधानसभा ने गुरुवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से वक्फ संशोधन बिल को वापस लेने की मांग की। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों पर सीधा हमला करार दिया। प्रस्ताव पेश करते हुए स्टालिन ने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर अल्पसंख्यकों और गैर-बीजेपी शासित राज्यों के खिलाफ व्यवस्थित भेदभाव का आरोप लगाया। स्टालिन वक्फ बिल से पहले भी कई मुद्दों पर केंद्र के खिलाफ बोलते रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या स्टालिन विपक्ष के नए चेहरे के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं?

वक्फ संशोधन विधेयक पर स्टालिन का रुख

स्टालिन ने विधानसभा में कहा कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर करता है और सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाता है। उन्होंने दावा किया कि विधेयक में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने और गैर-मुस्लिमों द्वारा बनाए गए वक्फ को अवैध ठहराने जैसे प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं। स्टालिन ने इसे बीजेपी की विभाजनकारी नीति का हिस्सा बताया और कहा, "यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यवस्थित भेदभाव का एक और उदाहरण है।" उन्होंने जोर दिया कि यह विधेयक मुस्लिम भावनाओं को आहत करता है और धार्मिक सौहार्द को खतरे में डालता है।इस दौरान बीजेपी विधायकों ने वॉकआउट किया, जबकि डीएमके की सहयोगी पार्टियां और विपक्षी एआईएडीएमके ने प्रस्ताव का समर्थन किया।

क्या विपक्ष का नया चेहरा बनना चाहते हैं स्टालिन?

एम. के. स्टालिन डीएमके के अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं। हाल के वर्षों में स्टालिन केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर रहे हैं। उनकी यह रणनीति न केवल तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता को मजबूत करने की ओर भी इशारा करती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में डीएमके के शानदार प्रदर्शन (तमिलनाडु की 39 में से 39 सीटों पर INDIA गठबंधन की जीत) के बाद स्टालिन की स्थिति मजबूत हुई है। क्या वे कांग्रेस के कमजोर पड़ते प्रभाव के बीच विपक्ष के नए नेता बनने की राह पर हैं? इसके लिए हमें उनके हाल के केंद्र-विरोधी बयानों और मुद्दों को देखना होगा।

स्टालिन के केंद्र के खिलाफ हाल के प्रमुख मुद्दे

➤ सीएए का भी किया था विरोधस्टालिन ने सीएए को मुस्लिमों और श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया था। 2020 में डीएमके ने इसके खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किए और इसे संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ करार दिया। स्टालिन ने कहा कि यह कानून अल्पसंख्यकों को बाहर करने की साजिश है।➤ हिंदी थोपने का आरोपस्टालिन ने केंद्र पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की हिंदी को बढ़ावा देने वाली सिफारिशों के खिलाफ डीएमके ने विरोध जताया। स्टालिन ने इसे भाषाई साम्राज्यवाद कहा और तमिल संस्कृति की रक्षा का वादा किया। हाल ही में 27 मार्च 2025 को वक्फ विधेयक पर बहस में भी उन्होंने हिंदी थोपने का जिक्र किया।➤ गैर-बीजेपी राज्यों के साथ वित्तीय भेदभाव का लगाया आरोपस्टालिन ने केंद्र पर गैर-बीजेपी शासित राज्यों को वित्तीय रूप से कमजोर करने का आरोप लगाया। 2023 में उन्होंने दावा किया कि तमिलनाडु को GST मुआवजे और केंद्रीय योजनाओं में उसका उचित हिस्सा नहीं मिल रहा। फरवरी 2024 में उन्होंने दिल्ली में धन के लिए दक्षिण प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जिसमें केरल और कर्नाटक जैसे राज्य भी शामिल हुए।➤ NEET और राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर ये था रुझानस्टालिन NEET मुद्दे पर भी प्रखर रहे। 2021 में तमिलनाडु विधानसभा ने NEET को खत्म करने का प्रस्ताव पारित किया, जिसे स्टालिन ने सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। NEP को भी उन्होंने "केंद्र सरकार की एकतरफा नीति" कहा, जो राज्यों के शिक्षा अधिकारों का हनन करती है।➤ मणिपुर हिंसा पर केंद्र की चुप्पी को लेकर साधा निशानानवंबर 2024 में डीएमके की उच्च-स्तरीय बैठक में स्टालिन ने मणिपुर हिंसा पर केंद्र की निष्क्रियता की आलोचना की। उन्होंने इसे बीजेपी की असफल शासन नीति का उदाहरण बताया और विपक्षी दलों से एकजुट होने की अपील की।➤ वन नेशन, वन इलेक्शन का किया विरोधस्टालिन ने 'एक देश एक चुनाव' के प्रस्ताव को राज्यों की स्वायत्तता पर हमला बताया। 2024 में उन्होंने कहा कि यह संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए चुनौती पैदा करेगा।

स्टालिन की राजनीतिक ताकत क्या है?

स्टालिन ने INDIA गठबंधन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। 2023 में उन्होंने विपक्षी नेताओं की बैठक की मेजबानी की और 2024 चुनाव में सफलता हासिल की। उनकी रणनीति क्षेत्रीय मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठाने की रही है। इसके अलावा वक्फ विधेयक, CAA और NEET जैसे मुद्दों पर स्टालिन ने अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों के हितों को उठाया, जिससे उनकी छवि एक समावेशी नेता के रूप में उभरी है।

क्या स्टालिन विपक्ष के नए नेता बन सकते हैं?

स्टालिन के पास मजबूत क्षेत्रीय आधार, संगठनात्मक कौशल और विपक्षी एकता को बढ़ावा देने का अनुभव है। उनकी डीएमके तमिलनाडु में कांग्रेस से अधिक सीटें जीतकर INDIA गठबंधन की रीढ़ रही है। उनकी मुखरता और केंद्र के खिलाफ लगातार स्टैंड उन्हें राष्ट्रीय चेहरा बना सकता है। लेकिन विपक्ष में पहले से राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेता हैं। स्टालिन की तमिल-केंद्रित छवि और हिंदी भाषी क्षेत्रों में सीमित प्रभाव उनकी राह में चुनौती हैं। साथ ही, डीएमके का राष्ट्रीय विस्तार सीमित है।

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