संघ शाखा अर्थात् सेवा यज्ञ

यदि कोई आध्यात्मिक उन्नति की सीढ़ी चढ़ना चाहता है तो उसका पहला पायदान होता है सेवा। सेवा भाव प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही होता है। जो व्यक्ति सेवा करता है, उसकी तुलना मां से की जाती है। यदि कोई भी कार्य मां की सेवा मानकर किया जाए तो कार्य में उत्कृष्टता प्राप्त होती है। […]

May 7, 2025 - 05:16
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संघ शाखा अर्थात् सेवा यज्ञ

यदि कोई आध्यात्मिक उन्नति की सीढ़ी चढ़ना चाहता है तो उसका पहला पायदान होता है सेवा। सेवा भाव प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही होता है। जो व्यक्ति सेवा करता है, उसकी तुलना मां से की जाती है। यदि कोई भी कार्य मां की सेवा मानकर किया जाए तो कार्य में उत्कृष्टता प्राप्त होती है। यदि किसी भी कार्य को भगवान की सेवा समझें तो सेवा करने वाले को उस कार्य में न केवल उत्तमता प्राप्त होगी बल्कि ऐसी खुशी भी मिलेगी जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। ऐसा करते हुए अहंकार उसे छू भी नहीं पाता। प्रत्येक कार्य को ईश्वरीय कार्य मानकर करें तो हमारी मनोदशा भी वैसी ही बनेगी जैसी संत ज्ञानेश्वर महाराज ने इस ‘अभंग’ में बताई है-

परि हे मिया केले।
की हे माझेनि सिद्धी गेले।
ऐसे नाही ठेविले। वासनेमाजी।

 

मधुभाई कुलकर्णी
वरिष्ठ प्रचारक, रा.स्व.संघ

हमें अपने चारों ओर ऐसे अनेक महान व्यक्ति दिखेंगे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सेवा कार्य के लिए समर्पित कर दिया। जैसे, बंगाल के रवींद्रनाथ ठाकुर, जिन्होंने शांति निकेतन के नाम से शिक्षा का आदर्श आलय स्थापित किया। बाबा आमटे, जिन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए एक प्रसिद्ध सेवा केंद्र ‘आनंदवन’ की स्थापना की। पूज्य नारायण गुरु, जिन्होंने शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य जैसे विभिन्न आयामों के माध्यम से दलितों, पीड़ितों और वंचितों के उत्थान के लिए कार्य किया। डॉ. भीमराव गस्ती, जिन्होंने कर्नाटक के बेलगावी में एक केंद्र की स्थापना करके बेरड समाज के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

गुजरात के जलाराम बापू एक दूरदर्शी संत हुए। उनके यहां अखंड भंडारा चलता रहता है। राष्ट्र के प्रत्येक कोने में ऐसे आदर्श हमें दिखाई देंगे। एक बार व्यक्ति के मन में सहानुभूति विकसित हो जाए तो वह हजार तरीकों से समाज की सेवा कर सकता है। कोई भी दिव्यांग, मंदबुद्धि, परित्यक्ता, नेत्रहीन, अनाथ आदि किसी को अपनी सेवा के लिए स्वयं नहीं बुलाते। उनके लिए आज हजारों संस्थाएं काम करती दिखाई देती हैं। भोजन दान को पुण्य कार्य मानकर विद्या अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को मधुकरी देने वाले हैं, बिना किसी भेदभाव हर एक को भोजन मिल सके, इसके लिए पीढ़ियों से भंडारा चलाने वाले धार्मिक स्थल भी हैं। गुरुद्वारे लंगर के लिए प्रसिद्ध हैं। छात्रावास, बाल संस्कार केंद्र, वृद्धाश्रम, धर्मार्थ चिकित्सालय आदि चलाए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरणा लेकर वनवासी कल्याण आश्रम ने अपना कार्य क्षेत्र जनजातीय समाज को चुना है। इसने हजारों सेवा कार्यों की श्रृंखला खड़ी की है। विश्व हिंदू परिषद भी ऐसी ही सेवा कार्य करने वाली संस्था है। छोटे-छोटे सुदूर गांवों में एक शिक्षक वाले स्कूल हजारों की संख्या में चलाए जाते हैं।

रा.स्व. संघ ने डॉ. हेडगेवार जन्म शताब्दी वर्ष अर्थात 1989 से एक स्वतंत्र सेवा विभाग की शुरुआत की थी। इसमें अखिल भारतीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक के सेवा संयोजकों की नियुक्ति की गई है। स्वयंसेवकों के द्वारा चलाये जाने वाले सभी सेवा कार्य सेवा भारती के अंतर्गत आते हैं। दुखियों का दुख दूर करने के प्रयत्न करना एक बहुत ही आवश्यक सेवा कार्य है। संत तुकाराम ने एक ‘अभंग’ में लिखा है-

जे का रंजले गांजले।
त्यासि म्हणजे जो आपुले।
तोचि साधू ओळखावा।
देव तेथेचि जाणावा।

सज्जनता या नम्रता मानवता की प्रतीक है। ऐसे सेवा कार्य के लिए आर्थिक सहायता सतत मिलती जाती है। अखंड भंडारा या अन्नक्षेत्र चलाने वाली धार्मिक संस्थाओं को अनाज की कभी कमी नहीं होती। इस तरह के सेवा कार्य विशेष होते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने लिए एक अलग बुनियादी सेवा कार्य तय किया है। केवल संगठित समाज ही अपनी सारी समस्याएं सफलतापूर्वक सुलझा सकता है इसीलिए संघ ने हिंदू समाज को संगठित करने का निर्णय लिया है। हिंदू संगठन की बात करने पर कुछ लोगों के भौहें टेढ़ी हो जाती हैं। तो फिर मुसलमानों का क्या, ऐसा विचार उनके मन में आता है। मानो मुसलमानों के बिना हिंदू संगठन का कोई अर्थ ही न हो। ऐसे लोग नहीं समझते कि ‘हिंदू संगठन’ शब्दों की गहराई और दायरा बहुत बड़ा है। ‘हिंदू संगठन’ माने-(क) आपसी भाईचारे और स्नेह पर आधारित सामंजस्यपूर्ण समाज। (ख) हर तरह के भेदभाव से मुक्त समाज। (ग) अनैतिकता तथा अस्पृश्यता से मुक्त समाज। (घ) भ्रष्टाचार से मुक्त चरित्रवान समाज। (ड.) समाज को ही परमेश्वर मानकर एवं मानव सेवा को ही ईश्वर सेवा मानने वाला समाज। (च) भारत माता को परम आराध्य मानकर मानव सेवा में रत समाज।

इसमें संदेह नहीं है कि हिंदू संगठन का विचार समय के साथ विस्तारित होता रहेगा। हिंदू समाज को भारत और विश्व में गौरव का स्थान मिलना ही चाहिए। आदरणीय प.पू. सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार व द्वितीय सरसंघचालक प.पू. गुरुजी द्वारा व्यक्त किए गए कुछ विचार देखें तो समझ में आता है कि संघ द्वारा अपने लिए तय किया गया बुनियादी सेवाकार्य अर्थात ‘हिंदू संगठन’ के कार्य का दायरा कितना विशाल और गहराई कितनी अधिक है।

डाॅ. साहब कहते थे कि ‘कोई राष्ट्र कितना महान है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस राष्ट्र का औसत व्यक्ति कितना महान है। संपूर्ण राष्ट्र की जीवन शक्ति इसी बात पर निर्भर होती है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति के मन में सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए रुचि, जुनून और इच्छा पैदा करना ही हमारा ध्येय है, यही हमारी विशेषता है और यही हमारी सफलता की कुंजी है।’

प.पू. गुरुजी का कहना था कि समाज की जीवंतता को नष्ट करने वाले सभी मतभेदों और संघर्षों को दूर करके एक सामंजस्यपूर्ण और एकजुट समाज का निर्माण करना हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है। एक सुव्यवस्थित समाज ही अज्ञानता और दरिद्रता का समाधान करने में सक्षम है। इसीलिए हम ऐसे लोग, जो प्रेम भावना से भरे हों, एक दूसरे के सुख-दुःख को समझते हों, सभी के साथ स्नेह और आत्मीयता की भावना से चलते हो और एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हो, ऐसे लोगों को सुनिश्चित करना हमारा कार्य और कर्तव्य है। हमारे लिए इस भूमि से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है। इस भूमि की धूल का हर कण, हर चेतन-अचेतन वस्तु, हर पत्थर, हर काष्ठ, हर वृक्ष और नदी हमारे लिए पवित्र है। इस भूमि के प्रत्येक व्यक्ति के मन में उत्कट भक्ति हमेशा जाग्रत रहे, ऐसा संघ का प्रयास है। वे कहते थे कि, आइए, हम अपनी जीवनशैली का मार्ग केवल हमारे प्राचीन लोगों द्वारा खोजे गए तथा बुद्धि, अनुभव और इतिहास द्वारा परखे गए शाश्वत सिद्धांतों के आधार पर निर्धारित करें।

संघ शाखा हमेशा यही प्रयत्न करती है कि विचार केवल विचार न रहें, उनके अनुसार आचरण भी किया जाए। संघ शाखा चलाना एक स्वतंत्र श्रेष्ठ सेवा कार्य है। यह बाकी सभी सेवा कार्यों का आधारभूत सेवा कार्य है, अपने में एक व्यापक रचनात्मक कार्य है। संघ मानता है कि मुख्य शिक्षक का कौशल प्राप्त कर रोज तीन-चार घंटे का समय देकर, एक उत्कृष्ट संघ शाखा खड़ी करना बहुत बड़ी देश सेवा है। यह शांतिपूर्वक लगातार किया जाने वाला कार्य है। इसमें विज्ञापन करने जैसा कुछ भी नहीं है। भारत में हिन्दू समाज में हमारा जन्म हुआ, यह हमारा साैभाग्य है। हिंदू समाज निर्दोष, संगठित, पूरी तरह समर्थ, वैभव संपन्न हो, इसके लिए प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है। इसी भावना से मुख्य शिक्षक और उनके सहकर्मी काम करते हैं। कोई फूलों का हार नहीं, कोई पुरस्कार नहीं, बस यज्ञ की आहुति की तरह बलिदान। इस समय देशभर में 80 हजार संघ शाखाएं हैं। इस कार्य को खड़ा करने के लिए अनगिनत कार्यकर्ताओं ने अपने समय की आहुति दी होगी!

अगस्त 2024 में वायनाड (केरल) में आई प्राकृतिक आपदा के बाद राहत कार्य में जुटे संघ के स्वयंसेवक

डॉ. हेडगेवार ने संघ की शाखा स्थापित करने के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया। वे बच्चों के घर जाते थे। यदि कोई उनसे पूछता था कि ‘डॉक्टर, कहां गए थे?’ तो वह कहते थे, ‘मैं ईश्वर के दर्शन करने गया था।’ संघस्थान साफ करना, उस पर रेखांकन करना, यह ईश्वर का कार्य है। 1940 के संघ शिक्षा वर्ग में डॉ. हेडगेवार का समापन भाषण उनका अंतिम भाषण था। उसमें उन्होंने कहा था, “मैं नागपुर में रहकर भी बीमार होने के कारण आपकी कोई सेवा नहीं कर सका। पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में प्रत्येक स्वयंसेवक से मेरा परिचय हुआ। परिचय करना भी समाज रूपी परमेश्वर की सेवा ही है।’’

नागपुर के मोहिते का बाड़ा संघ स्थान पर लगने वाली संघ शाखा डॉ. हेडगेवार ने 1925-26 में शुरू की थी। आज 2025 चल रहा है। पिछले 100 वर्ष में शाखाओं को खड़ा करने में कितने मुख्य शिक्षकों ने अपना पसीना बहाया होगा, इसे किसी ने दर्ज नहीं किया। संघ शाखा का अर्थ ही है, लगातार चलने वाला सेवा यज्ञ। ‘सेवा है यज्ञ कुंड, समिधा सम हम जलें’। कविता की यह पंक्ति गुनगुनाते स्वयंसेवक पूरे देश में मिलेंगे।

डॉ. हेडगेवार संघ शाखा की तुलना ‘पावर हाउस’ से करते हैं। लगातार विद्युत की आपूर्ति बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है। ‘पावर हाउस’ चलाने वाले लोग अपना काम छोड़कर कहीं जा नहीं सकते। संघ प्रारंभ होने के बाद डॉ. साहब ने अन्य सभी काम छोड़ दिए थे। श्रीगुरुजी संघ शाखा को कल्पवृक्ष कहते थे। वह कहते थे, ‘उसकी छाया में बैठो, सब कुछ मिलेगा। देश के कोने-कोने तक संघ की शाखाओं को पहुंचाओ, सफलता ही सफलता दिखेगी’।

तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहेब देवरस संघ शाखा का वर्णन इस प्रकार करते हैं, ‘संघ शाखा केवल खेलने या व्यायाम करने का स्थान नहीं है। यह सज्जनों की सुरक्षा का वादा है। युवाओं को नशा मुक्त रखने का अनुष्ठान है। समाज पर अचानक आने वाले संकट के समय बिना शर्त सहायता प्रदान करने वाला आशा केंद्र है। महिलाओं के लिए निडरता और सभ्य आचरण का वादा है। दुष्ट और राष्ट्र विरोधी शक्तियों के लिए भय निर्माण करने वाली शक्ति है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ऐसा विश्वविद्यालय है जो सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योग्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करता है।’

प.पू. श्रीगुरुजी कहा करते थे, ‘राष्ट्रभक्ति की विशुद्ध भावना के आधार पर, भेदभाव को भुलाकर संगठित, तेजस्वी तथा प्रभावशाली समाज जीवन निर्माण करने का महान कार्य हम लोगों ने हाथ में लिया है। राष्ट्र क्या है? इसका ज्ञान हुए बिना राष्ट्रभक्ति पैदा नहीं होती। राष्ट्रभक्ति की भावना के बिना स्वार्थ को तिलांजलि देकर, राष्ट्र के लिए परिश्रम करना संभव नहीं है। इसीलिए विशुद्ध राष्ट्र भावना से परिपूर्ण, श्रद्धायुक्त तथा परिश्रमी लोगों को एक सूत्र में बांधना, एक प्रवृत्ति के लोगों की परंपरा निर्माण करने वाला संगठन खड़ा करना तथा इस संगठन के बल पर राष्ट्रीय जीवन के सारे दोष समाप्त करने का प्रयत्न करना एक बुनियादी और महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम अपनी सैकड़ों दैनिक समस्याओं को कैसे सुलझाते हैं? समाज के सभी भेदों को समाप्त कर राष्ट्र भावना से प्रेरित एकरस समाज जीवन निर्माण किया जाए तो अनेक दैनिक और तात्कालिक समस्याएं सरलता से हल हो सकती हैं।’ स्पष्ट है कि यह कल्पना ऐसी नहीं है जो कुछ दिन अथवा कुछ वर्ष में साकार की जा सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सैकड़ों, हजारों जीवन चाहिए, जो शांति के साथ अनथक प्रयास करते चले जाएं।

शताब्दी सोपान (8)  एक मंत्र से संचारित तंत्र 

 

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