वंदे मातरम् केवल गीत नहीं, राष्ट्रभक्ति का जयघोष मंत्र है

रवि कुमार स्वतंत्रता अमूल्य है और यह हमें अनथक प्रयासों के कारण मिली है। हमारी स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है। पूरे-पूरे परिवार इस ईश्वरीय कार्य में लग गए, ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। स्वतंत्रता के लिए बहुमुखी प्रयास अपने भारत में हुआ। ऐसा ही एक प्रयास जिसने देश के […] The post वंदे मातरम् केवल गीत नहीं, राष्ट्रभक्ति का जयघोष मंत्र है appeared first on VSK Bharat.

Nov 10, 2025 - 18:37
 0
वंदे मातरम् केवल गीत नहीं, राष्ट्रभक्ति का जयघोष मंत्र है

रवि कुमार

स्वतंत्रता अमूल्य है और यह हमें अनथक प्रयासों के कारण मिली है। हमारी स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है। पूरे-पूरे परिवार इस ईश्वरीय कार्य में लग गए, ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। स्वतंत्रता के लिए बहुमुखी प्रयास अपने भारत में हुआ। ऐसा ही एक प्रयास जिसने देश के युवाओं व क्रांतिकारियों में नए जोश व उत्साह का संचार किया, वो प्रयास है – वंदे मातरम् की रचना। मातृभू की अर्चना के लिए एक काव्य गीत बना जो स्वतंत्रता सेनानियों का जयघोष मंत्र बन गया।

स्वतंत्रता संग्राम में जिन साहित्यकारों ने जनजागरण में अपना सहयोग दिया, उनमें बंकिमचन्द्र का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाता है। 07 नवम्बर 1875 (कार्तिक शुक्ल नवमी/अक्षया नवमी – जगधात्री पूजा दिवस) को उन्होंने वन्देमातरम काव्य गीत की रचना की। परंतु उस समय यह गीत सभी के सामने नहीं आया। कुछ लोगों ने इस गीत को प्रकाशित करने के लिए बंकिमचन्द्र से विशेष आग्रह किया। 1880 में क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के की आत्मकथा का भाषा रूपांतरण व प्रकाशन बांग्ला भाषा में हुआ। इस आत्मकथा का बंकिमचन्द्र के मानस पटल पर विशेष प्रभाव पड़ा। बंगाल व बिहार में (1762-1774) राष्ट्र रक्षा हेतु संन्यासी विद्रोह हुआ था। इस संन्यासी विद्रोह के घटनाक्रम का लेखन ‘आनन्द मठ’ नाम के ग्रन्थ में बंकिमचंद्र की लेखनी ने किया। डॉ. बिमनबिहारी मजुमदार कहते है – “It is just possible that the fight described by Vasudev Balwant (against the British) might have given inspiration for writing Anand math.”

आनन्द मठ ग्रन्थ ‘बंग दर्शन’ नाम की पत्रिका में 1880 से 1882 के मध्य कड़ी के रूप में प्रकाशित हुआ। यह ग्रन्थ एक पुस्तक के रूप में 1883 में प्रकाशित होकर समाज के सामने आया। इस आनन्द मठ पुस्तक में वंदे मातरम् काव्य गीत को जोड़ा गया। इस पुस्तक में प्रकाशन के कारण वंदे मातरम् सभी देशवासियों के सामने आया।

प्रसिद्ध लेखक हेमचंद्र कानूनगो ने कहा था – “तब हम इस बात को समझ नहीं पाए थे कि वंदे मातरम् गीत में इतनी शक्ति और भाव छिपा है।” श्री अरविंद ने कलकत्ता से प्रकाशित ‘वंदे मातरम्’ नाम के अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र में (1906) वंदे मातरम् को मंत्र कहा। इस विषय में लिखा – “The mantra had been given and not in a single day, a whole people had been converted to the religion of patriotism.” “सम्पूर्ण देशवासियों का धर्म देशभक्ति हो गया था। यह मंत्र भारत में ही नहीं सारे विश्व में फैल गया था।” वे इस समाचार पत्र के सम्पादक थे।

1896 के कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को अपने कंठ से सर्वप्रथम गाया। 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया। यह निर्णय अंग्रेजों द्वारा 17 जुलाई को लिया गया, जो 16 अगस्त 1905 से लागू होना था। यह विभाजन करने का उद्देश्य बंगाल में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए तेजी से चल रही गतिविधियों को धीमा करना था। परंतु अंग्रेजों को क्या पता था कि उनका यह कार्य स्वतंत्रता आंदोलन में ज्वार लाएगा।

कलकत्ता के टाउन हॉल में 07 अगस्त 1905 को बंग-भंग के निर्णय के विरुद्ध हजारों लोग एकत्र हुए और सभी के कंठ बोल रहे थे वंदे मातरम्। बंग-भंग आंदोलन से वंदे मातरम् जन-जन का जयघोष बन गया। और यह जयघोष केवल बंगाल ही नहीं, भारत व भारत से बाहर सभी के लिए जयघोष मंत्र बना। स्वतंत्रता आंदोलन की प्रत्येक छोटी बड़ी सभा में वंदे मातरम् गीत व जयघोष के रूप में गूंजता था। क्रांतिकारियों का आपसी अभिवादन वंदे मातरम् से होने लगा।

बंग-भंग आंदोलन के समय श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के मुख से वाक्य निकला – “Your inner most feeling should be in perfect harmony with the Raga and Bhav of Vande Matram.”

1907 में नेशनल कॉलेज कलकत्ता के छात्र सुशील सेन ने पुलिस सार्जेंट ह्यू को एक घूसा जड़ दिया, इस पर अत्याचारी न्यायाधीश किंग्सफोर्ड ने सुशील को पंद्रह बेंत मारने की सजा दी। अगले दिन स्टेटमेन समाचार पत्र ने लिखा – “Every stock of whip was resounded with a cry of Vande Matram.” (प्रत्येक बेंत की मार पर वंदे मातरम् की गूंज प्रतिध्वनित होती थी।)

इस पर काली प्रसन्न कवि ने लिखा –

“बेंत मेरे कि मां भुलाबि, आमरा कि माएर सेई छेले।

मोदेर जीवन जाय जेन चले, वंदे मातरम् बले।”

(बेंत मारकर क्या मां को भुलाएगा, हम क्या मां की ऐसी संतान है? वंदे मातरम् बोलते हुए हमारा जीवन भले ही चला जाए।)

अंग्रेज वंदे मातरम् से इतने क्रोधित थे कि उन्होंने इस गीत व जयघोष पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध के बावजूद वंदे मातरम् का गायन रुका नहीं, बल्कि और अधिक तीव्र गति से बढ़ने लगा। सर्वसामान्य तक यह मंत्र पहुंचा तो अलग-अलग भारतीय भाषाओं में इस गीत का प्रकाशन होने लगा। लाला लाजपतराय ने वंदे मातरम् के नाम से पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। बंग-भंग आंदोलन से निकले स्वदेशी आंदोलन ने पूरे देश में व्यापक रूप ले लिया। आंध्र प्रदेश में इस आंदोलन का नाम ‘वंदे मातरम् आंदोलन’ ही कर दिया गया। विद्यालयों-महाविद्यालयों में वंदे मातरम् गीत व जयघोष का नाद होने लगा। चूंकि इस पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा रखा था तो ऐसा करने पर विद्यार्थियों को दंड मिलता था। केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में इंस्पेक्टर के आने पर छात्रों ने वंदे मातरम् का जयघोष किया। जिसके कारण बालक केशव को विद्यालय से निकाल दिया गया।

स्वतंत्र भारत में वंदे मातरम् (प्रथम दो चरण) को राष्ट्रीय गीत के रूप में अंगीकृत किया गया है। आज भी इस गीत को सम्पूर्ण गाते हैं तो उन हुतात्माओं का स्मरण हो आता है, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी। यह गीत भाव रूप में उन सभी घटनाओं को समेटे हुए है जो वंदे मातरम् जयघोष के साथ घटित हुईं। यह केवल गीत नहीं, राष्ट्रभक्ति का जयघोष मंत्र है।

The post वंदे मातरम् केवल गीत नहीं, राष्ट्रभक्ति का जयघोष मंत्र है appeared first on VSK Bharat.

UP HAED सामचार हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें।