'महावीर प्रसाद ने समाज को दी दिशा

'महावीर प्रसाद ने समाज को दी दिशा, रायबरेली,

May 9, 2025 - 14:23
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'महावीर प्रसाद ने समाज को दी दिशा
जंयती पर विशेष

'महावीर प्रसाद ने समाज को दी दिशा

जंयती पर विशेष

 
रायबरेली : सरेनी के दौलतपुर गांव के रहने वाले युग प्रवर्तक साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने केवल खड़ी बोली हिंदी का परिमार्जन ही नहीं किया, बल्कि समाज को एक नई दिशा भी दी। उनका कृतित्व जितना बड़ा था, व्यक्तित्व उससे भी अधिक विराट। उनकी दिनचर्या बंधी हुई थी। एक बार ऐसा मौका भी आया जब अपने दौलतपुर स्थित घर आने वाले मेहमान के जूते भी साफ कर दिए।


आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ऐसे समय में हिंदी की पतवार संभाली, जब भाषा व्याकरण सम्मत नहीं थी। साहित्य में आमजनों की रुचि नहीं थी। भाषा का सुधार और साहित्य में रुझान बढ़ाने के लिए सरस्वती ही उनका अवलंब बनी। 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी की पढ़ाई और आचार्य द्विवेदी पर प्रथम शोध करने वाले डा उदयभानु सिंह का मत है कि महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती और सरस्वती ने द्विवेदी को चमका दिया।


दौलतपुर के सरपंच और आनरेरी मुंसिफ पद पर रहते हुए ग्राम स्वराज्य की कल्पना को उन्होंने तब साकार किया जब ग्राम स्वराज्य की चर्चा तक शुरू नहीं हुई थी। वे गांव में सार्वजनिक स्थान पर कूड़ा फेंकने पर जुर्माना लगा देते थे, लेकिन गरीब के मामले में अपने पास से जुर्माने की राशि दे भी देते थे। 1903 में सरस्वती मासिक पत्रिका का संपादन संभालने वाले द्विवेदी ने कवियों की नई पीढ़ी का निर्माण किया। संपादन के प्रथम वर्ष में सरस्वती में 109 लेख विभिन्न विषयों पर प्रकाशित हुए थे। इनमें 70 लेख द्विवेदी द्वारा ही लिखे गए। उनके बाद पंडित गिरजा दत्त बाजपेयी के लेख अधिक थे। उनकी रचनाओं में किसी निश्चित रीति या शैली का उपयोग नहीं दिखाई देता। समय-समय पर अनेक सवाल उनकी लेखन शैली पर उठाए गए।

पूछा गया कि इन लेखों में उनका व्यक्तित्व कहां है? लेकिन कहा जा सकता है कि उनकी रचनाओं में किसी रीति या शैली का न होना ही उनकी भाषा की विशेषता है। प्रथम शोध ग्रंथ के अनुसार उनकी विशेषता उनकी पूजा और भाव है, उन्हें जहां कहीं से भी जो अच्छा मिला हिंदी और समाज हित में उन्होंने भक्ति भाव से हिंदी मंदिर में चढ़ा दिया। आचार्य द्विवेदी के नाम पर द्विवेदी युग को लेकर भी मतभिन्नता सामने आती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने संवत 1960 से संवत 1975 तक को द्विवेदी युग माना है। एक लेख में श्रीनाथ सिंह सारंग ने सन 1896 से सन 1938 तक के समय को द्विवेदी युग कहा है।

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