भारतीय सभ्यता की जड़ें जनजातीय समुदायों की परंपराओं, रीति-रिवाजों में निहित हैं

जनजातीय गौरव वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन नई दिल्ली। भगवान बिरसा मुंडा भवन (ट्राइबल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर) में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने श्याम लाल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के सहयोग से जनजातीय गौरव वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में विशेष […] The post भारतीय सभ्यता की जड़ें जनजातीय समुदायों की परंपराओं, रीति-रिवाजों में निहित हैं appeared first on VSK Bharat.

Dec 1, 2025 - 08:38
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भारतीय सभ्यता की जड़ें जनजातीय समुदायों की परंपराओं, रीति-रिवाजों में निहित हैं

जनजातीय गौरव वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन

नई दिल्ली। भगवान बिरसा मुंडा भवन (ट्राइबल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर) में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने श्याम लाल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के सहयोग से जनजातीय गौरव वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में विशेष व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया। दो सत्रों में आयोजित कार्यक्रम में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान, पराक्रम और बलिदान को याद किया गया। कार्यक्रम में शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों और जनजातीय कल्याण से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन से हुई। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय संयुक्त महामंत्री विष्णुकांत जी ने व्याख्यान श्रृंखला के विषय का परिचय कराया और भगवान बिरसा मुंडा भवन (ट्राइबल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर), नई दिल्ली के उद्देश्यों तथा आगामी योजनाओं की जानकारी दी।

पहला सत्र: जनजातीय स्वतंत्रता आंदोलनों के नए दृष्टिकोण

पहले सत्र में डॉ. आनंद बुरधन, वरिष्ठ प्राध्यापक, डॉ. बी. आर. आंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। विष्णु प्रकाश त्रिपाठी, कार्यकारी संपादक, दैनिक जागरण समूह ने सत्र की अध्यक्षता की।

डॉ. आनन्द बुरधन ने रेखांकित किया कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध जनजातीय प्रतिरोध आंदोलनों को नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इन संघर्षों को केवल भूमि और संसाधनों तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि ये अपनी सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक उपासना पद्धतियों और भारतीयता पर आधारित जीवन पद्धति की रक्षा के लिए लड़े गए व्यापक सभ्यतागत संघर्ष थे। जनजातीय आंदोलनों पर शोध केवल औपनिवेशिक अभिलेखागार तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके लिए जमीनी स्तर पर विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है।

सत्राध्यक्ष विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि भारत के जनजातीय समुदायों ने आज भी अपने मूल जीवन-मूल्यों और सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित रखा है। उन्होंने कहा कि मुख्यधारा मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह इन परंपराओं को व्यापक समुदाय तक पहुँचाए, क्योंकि मीडिया की सामग्री समाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

दूसरा सत्र: भारतीय सभ्यता और सुरक्षा में जनजातीय योगदान

दूसरे सत्र में सत्येन्द्र सिंह जी, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) ध्रुव सी. काटोच, निदेशक, इंडिया फाउंडेशन सत्र के अध्यक्ष रहे।

सत्येन्द्र सिंह जी ने देशभर के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के अविस्मरणीय योगदान को स्मरण किया। उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता की जड़ें जनजातीय समुदायों की परंपराओं, रीति-रिवाजों और उपासना पद्धतियों में निहित हैं, इसलिए उनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।

मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) ध्रुव सी. काटोच ने कहा कि जनजातीय समुदाय भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना का अभिन्न अंग हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि जनजातीय समुदायों ने समय-समय पर आक्रमणकारियों के विरुद्ध साहसपूर्वक लड़ाइयाँ लड़ीं और आज भी वे भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनके योगदान का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान होना चाहिए।

कार्यक्रम का समापन इस आह्वान के साथ हुआ कि जनजातीय इतिहास पर और गहन शोध किया जाए, मीडिया में जनजातीय संस्कृति की सकारात्मक प्रस्तुति को बढ़ावा दिया जाए और भगवान बिरसा मुंडा एवं अन्य जनजातीय नायकों की विरासत को संरक्षित रखा जाए।

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