पर्यावरण को लेकर राजनीतिक सोच से आगे बढ़ें विकसित देश- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पर्यावरणीय नैतिकता और सतत विकास पर जोर दिया. उन्होंने विकसित देशों से राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर आगे बढ़ने का आह्नान किया. भारत की प्राचीन परंपराओं में प्रकृति के प्रति सम्मान की बात करते हुए उन्होंने मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया.

Mar 30, 2025 - 20:46
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पर्यावरण को लेकर राजनीतिक सोच से आगे बढ़ें विकसित देश- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
पर्यावरण को लेकर राजनीतिक सोच से आगे बढ़ें विकसित देश- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि विकसित देशों को पर्यावरण संबंधी सोच में राजनीतिक सीमाओं को पार करना चाहिए. ऐसे मॉडल अपनाना चाहिए, जहां ग्रह स्वास्थ्य, मानव समृद्धि और कल्याण का आधार बन जाए. रविवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पर्यावरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन- 2025 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि सस्टेनेबिलिटी वैश्विक चर्चा का विषय बनने से बहुत पहले भारत ने सदियों तक इसे जिया है, जहां हर बरगद का पेड़ एक मंदिर था, हर नदी एक देवी थी और एक सभ्यता में सबसे अच्छी अवधारणा धर्मनिरपेक्षता की पूजा करती थी. हमारा वैदिक साहित्य धरती माता के पोषण और मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए सोने की खान है.

भोपाल गैस त्रासदी से नहीं सीखा सबक

1984 की भोपाल गैस त्रासदी को याद करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि 1984 में भोपाल गैस त्रासदी का सबक अभी भी नहीं सीखा गया है. यूनियन कार्बाइड रिसाव का रिसाब एक बड़ी पर्यावरणीय लापरवाही थी. चार दशक बाद भी, परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी, आनुवंशिक विकारों और भूजल प्रदूषण से पीड़ित हैं.

उन्होंने कहा कि जरा सोचिए जागरूकता की कितनी कमी थी. हमारे पास एनजीटी जैसी संस्था नहीं थी. हमारे पास कोई नियामक व्यवस्था नहीं थी जो इस मुद्दे को हल कर सके. अगर उस समय मौजूदा स्तर की नियामक व्यवस्था होती तो चीजें बहुत अलग होतीं.

उन्होंने कहा कि हमें यह समझना होगा कि ग्रह केवल हमारे लिए नहीं है. हम इसके मालिक नहीं हैं. वनस्पतियों और जीवों को साथ-साथ पनपना चाहिए और सभी अन्य जीवित प्राणियों को भी. ऐसी स्थिति में, मनुष्य को प्रकृति और अन्य जीवित प्राणियों के साथ सद्भाव में रहना सीखना होगा.

एनजीटी को लेकर उपराष्ट्रपति ने कही ये बात

उन्होंने कहा कि प्रकृति के संसाधनों के इष्टतम उपयोग पर व्यक्तिगत ध्यान देना होगा. यह हमारी आदत होनी चाहिए. हमारी राजकोषीय शक्ति, हमारी राजकोषीय क्षमता प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को निर्धारित नहीं कर सकती. उपभोग इष्टतम होना चाहिए.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि वह एनजीटी को जिस तरह से देखते हैं, उसमें एन का मतलब पोषण, जी का मतलब हरियाली और टी का मतलब कल है. मेरे लिए एनजीटी का मतलब कल के लिए हरियाली का पोषण है.

उन्होंने कहा कियह केवल शब्दों का खेल नहीं है. यह एक ऐसी संस्था का विजन है जो कानून, विज्ञान और नैतिकता को जोड़कर प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को बदल देती है. आइए हम अपनी जड़ों से आगे बढ़ें, अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करें और अटूट संकल्प के साथ जलवायु न्याय को बनाए रखें.

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