देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देने वाला गीत ‘वंदे मातरम्’

सोमेश्वर बराल ‘‘वंदे मातरम्’’ – जिसका अर्थ है, माँ मैं तुम्हें नमन करता हूं। साहित्य सम्राट बंकिमचंद्र चटर्जी ने इस गीत के माध्यम से भारत माता के दिव्य सार को अभिव्यक्त किया था। तब से, इस गीत के पहले दो शब्द ‘‘वंदे मातरम्’’ मन्त्र की तरह गाए जाते हैं। ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत सर्वप्रथम 1876 में […] The post देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देने वाला गीत ‘वंदे मातरम्’ appeared first on VSK Bharat.

Nov 10, 2025 - 18:37
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देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देने वाला गीत ‘वंदे मातरम्’

सोमेश्वर बराल

‘‘वंदे मातरम्’’ – जिसका अर्थ है, माँ मैं तुम्हें नमन करता हूं। साहित्य सम्राट बंकिमचंद्र चटर्जी ने इस गीत के माध्यम से भारत माता के दिव्य सार को अभिव्यक्त किया था। तब से, इस गीत के पहले दो शब्द ‘‘वंदे मातरम्’’ मन्त्र की तरह गाए जाते हैं।

‘‘वंदे मातरम्’’ गीत सर्वप्रथम 1876 में बंग दर्शन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। 1882 में इस गीत को बंकिमचंद्र के उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया। अपने प्रकाशन के बाद से, ‘‘वंदे मातरम्’’ देशभक्त भारतीयों की आत्मा का मंत्र बन गया। स्वयं ऋषि बंकिमचंद्र ने वंदे मातरम गीत के बारे में कहा था – अभी आपको इस गीत का अर्थ समझ में नहीं आएगा, लेकिन 25 या 30 वर्षों के बाद, आप देखेंगे कि पूरा देश इससे भावविभोर हो गया है। ‘‘वंदे मातरम्’’ पूरे देश में देशभक्ति की अग्नि प्रज्वलित करेगा। अक्तूबर, 1916 को रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने पुत्र रथींद्रनाथ को लिखे एक पत्र में लिखा था – हमारा ‘‘वंदे मातरम्’’ मंत्र बांग्लादेश की पूजा का मंत्र नहीं है, यह धरती माता की पूजा है, यदि हम आज उस पूजा गीत का जाप करें, तो आने वाले युग में, यह मंत्र एक-एक करके सभी देशों में सुनाई देगा। क्रांतिकारी हेमचंद्र गुहा के शब्दों में – उस समय कोई भी ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत में निहित शक्ति और भावना को नहीं समझ सका।

1896 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में रबींद्रनाथ टैगोर ने स्वयं अपनी धुन में ‘‘वंदे मातरम्’’ गाया था। 1905 में, बंगाल विभाजन आंदोलन के अशांत दिनों में, कई अन्य गीतों के साथ ‘‘वंदे मातरम्’’ को भी हृदय-मंत्र के रूप में गाया गया था। 07 अगस्त, 1905 को बंगाल विभाजन के विरोध में कोलकाता के टाउन हॉल में आयोजित बहिष्कार सभा में, रवींद्रनाथ टैगोर ने ओजस्वी स्वर में ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत गाया था।

1896 से 1922 तक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी अधिवेशनों में ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत गाया जाता था। लेकिन 1922 के कांकिनारा कांग्रेस अधिवेशन में लय टूट गई। मौलाना मुहम्मद अली वहां अध्यक्ष थे। जब महान गायक विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत गाना शुरू किया, तो सत्र अध्यक्ष ने स्वयं आपत्ति जताई। लेकिन दृढ़ पलुस्कर ने उस आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया और पूरा गीत गाया। मुहम्मद अली की आपत्ति का कारण यह था कि इस गीत में हिन्दू धार्मिक भावना बहुत अधिक थी। इसलिए, मुसलमानों के लिए यह गीत गाना संभव नहीं था। कांग्रेस ने मौलाना मुहम्मद अली की राय को पूरे मुस्लिम समुदाय की राय मानना शुरू कर दिया। 1937 में, कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत के ‘आपत्तिजनक हिस्से’ को हटा दिया गया था। उस दिन, रामानंद चट्टोपाध्याय ने चेतावनी दी – यदि यह गीत विभाजित होता है, तो देश भी विभाजित हो जाएगा। लेकिन विभाजित भारत की आजादी के बाद भी, गीत – ‘‘वंदे मातरम्’’ – के महत्व को कम करने का प्रयास जारी रहा।

1946 में, भारतीय संविधान सभा का उद्घाटन श्रीमति सुचेता कृपलानी द्वारा गाए गए ‘‘वंदे मातरम्’’ गीत के साथ हुआ। लेकिन 1947 में, नए साल में, संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भारत के राष्ट्रगान के रूप में संगीत वाद्ययंत्र पर जन-गण-मन बजाया गया। इस बीच, उस समय संविधान सभा का सत्र चल रहा था – इस पर गरमागरम बहस हुई। 25 अगस्त 1948 को, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में एक बयान दिया और कहा – यह उपाय करना पड़ा क्योंकि संगीत वाद्ययंत्र पर कोई अन्य संगीत नहीं था। फिर 1949 में भारतीय संविधान सभा द्वारा गठित राष्ट्रगान चयन समिति ने राय व्यक्त की कि अब से ‘‘वंदे मातरम्’’ और जन-गण-मन दोनों को राष्ट्रगान माना जाएगा। लेकिन 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के समापन सत्र में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के वक्तव्य से पता चला कि वंदे मातरम दूसरे स्थान पर आ गया है।

उस दिन राजेंद्र प्रसाद ने कहा था – The composition consisting of the words and music known as Jana Gana Mana is the national Anthem of India, subject to such altercations in the words as the Government may authorise as occasion arises; and the song Vande Mataram which played a historic part in the struggle for Indian freedom, shall be honoured with Jana Gana Mana and shall have equal status with it. I hope this will satisfy the members.

जब यह बंग दर्शन में प्रकाशित हुआ था, तब ‘‘वंदे मातरम्’’ की धुन मल्ल द्वारा बनाई गई थी और लय कव्वाली द्वारा। बाद में इसे मेघ मल्ल द्वारा आनंदमठ में शामिल किया गया। ‘‘वंदे मातरम्’’ के पहले संगीतकार प्रसिद्ध गायक जदुनाथ भट्टाचार्य थे। बाद में, रवींद्रनाथ टैगोर, सरलादेवी चौधुरानी, श्रीमती सुभोलक्ष्मी, तिमिरवरन, दिलीप कुमार सहित कई लोगों ने इसमें धुनें जोड़ीं।

हमें ‘‘वंदे मातरम्’’ गाना नहीं भूलना चाहिए। हमें नई पीढ़ी के कलाकारों को खंडित नहीं, बल्कि संपूर्ण ‘‘वंदे मातरम्’’ गाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बंकिमचंद्र ने ‘‘वंदे मातरम्’’ का संगीत रचकर इस देश को माता के रूप में देखने के प्राचीन विचार को पुनर्जीवित किया।

 

जानकारी का स्रोत-

‘‘वंदे मातरम्’’ – शीतांगशुदेव चट्टोपाध्याय

पश्चिम बंगाल – बंकिम-सांख्य, 1402

आत्म-परिचय – रवीन्द्रनाथ टैगोर

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