थाइलैंड को थाई मसाज देने वाले डॉक्टर शिवगो ने इसकी खोज कैसे की?

Thailand Thai Massage History: थाइलैंड अपनी तमाम खूबियों के साथ थाई मसाज के लिए भी जाना जाता है. थाइलैंड आने वाले पर्यटक थाई मसाज लेना नहीं भूलते. दिलचस्प बात है कि इसका इतिहास 2500 साल पुराना है. इस मसाज की जड़ें महात्मा बुद्ध के समय से जुड़ी हुई हैं. महात्मा बुद्ध के समकालीन रहे डॉक्टर जिवागा कुमार भच्छा को इसका जनक माना जाता है. जानिए, इसकी खोज कैसे हुई.

Aug 2, 2025 - 04:53
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थाइलैंड को थाई मसाज देने वाले डॉक्टर शिवगो ने इसकी खोज कैसे की?
थाइलैंड को थाई मसाज देने वाले डॉक्टर शिवगो ने इसकी खोज कैसे की?

थाईलैंड अपने मसाज के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. बैंकॉक समेत इस देश के दूसरे हिस्से की यात्रा करने वाले विदेशी पर्यटक भी इस मसाज का आनंद लिए बिना वापस नहीं आते हैं. अब तो यूनेस्को भी इस मसाज को मान्यता दे चुका है और यह विश्व विरासतों की सूची में शामिल है. इस मसाज के जनक का नाम डॉक्टर शिवगो बताया जाता है.

आइए जान लेते हैं कि कौन थे थाईलैंड को थाई मसाज देने वाले डॉक्टर शिवगो? कैसे हुआ थाई मसाज का जन्म और यह कैसे काम करता है? दुनिया के कितने देशों में इसका चलन है?

महात्मा बुद्ध के निजी चिकित्सक थे डॉक्टर शिवागो

पारंपरिक रूप से प्राचीन थाई मसाज हठ योग, एक्यूप्रेशर और रिफ्लेक्सोलॉजी का अनूठा संगम है. इसका इतिहास 2500 साल से भी पुराना है. इस मसाज की जड़ें महात्मा बुद्ध के समय से जुड़ी हुई हैं. महात्मा बुद्ध के समकालीन रहे डॉक्टर जिवागा कुमार भच्छा को इसका जनक माना जाता है.

बताया जाता है कि थाईलैंड को थाई मसाज देने वाले डॉक्टर जिवागा कुमार भच्छा या जिवाका कुमार बच्चा भगवान बुद्ध के निजी चिकित्सक और दोस्त थे. थाईलैंड में उनको डॉक्टर शिवागो कोमारपज के नाम से जाना जाता है. उन्होंने ही योग और आयुर्वेद का उपयोग कर इस मसाज की खास शैली विकसित की, जिसे बाद में बौद्ध भिक्षुओं ने भी अपनाया. धीरे-धीरे इसका अभ्यास बौद्ध मंदिरों में भी किया जाने लगा.

Jivaka Kumar Bhaccha

फादर ऑफ थाई मसाज कहलाने वाले डॉक्टर जिवागा कुमार भच्छा की प्रतिमा.

डॉ. शिवागो वास्तव में पांचवीं शताब्दी बीसी में राजा बिम्बसार के कार्यकाल और बाद में अजातशत्रु के समय में मगध की राजधानी में रहते थे. उन्हें पारंपरिक भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में महारथ हासिल थी. बौद्ध लेखों में तो उनके बारे में कम जानकारी उपलब्ध है पर उनकी कहानी एशिया और इसके आसपास संस्कृत, चीनी भाषा और तिब्बती अनुवादों और अन्य बौद्ध परंपराओं में अलग-अलग रूपों में पाई जाती है. डॉ. शिवागो खुद भी बौद्ध हो गए थे.

किसानों की थकान दूर करता था मसाज, बच्चें के जरिए आगे बढ़ी परंपरा

थाई मसाज की परंपरा को बरकरार रखने के लिए प्राचीन चिकित्सा पद्धति को पत्थरों पर उकेरा गया. ऐसे पत्थर आज भी बैंकॉक में स्थित वाट फो मंदिर (Wat Pho temple) की दीवारों पर पाए जाते हैं. वास्तव में थाईलैंड में बड़ी संख्या में किसान दिन भर खूब मेहनत करते थे, जिससे उनके शरीर की मांसपेशियां बेहद सख्त हो जाती थीं. इसको सही करने के लिए थाई मसाज का इस्तेमाल किया जाता था. इसलिए सभी किसान अपने बच्चों को इस मसाज का तरीका सिखाता थे और इस तरह से यह मौखिक रूप से भी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहा.

Wat Pho Temple

बैंकॉक में स्थित वाट फो मंदिर.

ऐसे होता रहा थाई मसाज का विकास

थाईलैंड के हर क्षेत्र में इस मसाज का अपना अनोखा अंदाज है. जब कभी अलग-अलग क्षेत्रों के लोग इकट्ठा होते हैं तो अपने क्षेत्र के मसाज की तकनीक एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं. इसी तरह से अन्य देशों भारत, चीन, म्यांमार और तिब्बत से भी आई मसाज की तकनीक इसमें समाहित की गई और इसका विकास होता रहा. पश्चिमी मसाज में जहां लगातार स्ट्रोक्स का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं थाई मसाज में प्वाइंट प्रेशर, मसल स्ट्रेचिंग और कंप्रेशन का इस्तेमाल किया जाता है.

हाथों के साथ ही पैरों का भी होता है इस्तेमाल

थाई मसाज में शरीर का तनाव दूर करने के लिए केवल हाथों का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि थेरेपिस्ट इसके लिए अपने पैरों, घुटनों और कोहनियों का भी इस्तेमाल करते हैं. यही नहीं, थाई मसाज की सबसे बड़ी खासियत है कि यह कभी भी दर्द नहीं देता. थाई मसाज फर्श पर एक मैट बिछाकर किया जाता है पूरी तरह से कपड़े पहनकर किया जाता है. इसमें तेल की जरूरत नहीं पड़ती है.

थाई मसाज को नुआद थाई के नाम से भी जाना जाता है. इसे साल 2019 में यूनेस्को की विश्व विरासतों की सूची में स्थान दिया गया था. पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा को यूनेस्को की सूची में स्थान मिलने के बाद इसे इस बात की मान्यता मिल गई कि इसे आगे की पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाएगा.

Thai Massage

थाई मसाज की परंपरा को बरकरार रखने के लिए प्राचीन चिकित्सा पद्धति को पत्थरों पर उकेरा गया था.

दुनिया भर में फैला थाई मसाज

थाई मसाज यानी नुआद थाई समय के साथ दुनिया भर के कई देशों में प्रसिद्ध हो चुका है. साल 1906 में एक ऐसा स्कूल खोला गया, जहां खास तौर से दुनिया भर के मसाज थेरेपिस्ट को यह तकनीक सिखाईजाने लगी. इससे यह तकनीक और भी लोकप्रिय हो गई. थाईलैंड के बैंकॉक और पटाया जैसे शहरों में तो थाई मसाज की सुविधा बृहद रूप से उपलब्ध है. इसके अलावा दुनिया भर के पर्यटकों को अपने यहां आकर्षित करने के लिए कई अन्य देशों में भी थाई मसाज पार्लर और स्पा खोले जा चुके हैं. भारत समेत एशिया ही नहीं, अब तो दुनिया भर के देशों में थाई मसाज का चलन है. यहां तक कि पश्चिमी देशों में भी अब आराम से थाई मसाज का आनंद लिया जा सकता है.

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