डिजिटल भविष्य की ओर बढ़ता भारत
लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में है। प्रक्रिया में देश को इस बार अभूतपूर्व सामर्थ्य हासिल होने जा रहा है। समावेशी डिजिटलाइजेशन क्रांति की और भारत ने स्वयं को बहुत मजबूत किया है।
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डिजिटल भविष्य की ओर बढ़ता भारत
देश में आम चुनाव की प्रक्रिया जारी है। सातवें और अंतिम चरण का मतदान शनिवार को होगा। वैसे इस बार कम मतदान प्रतिशत भी भारतीय लोकतंत्र के लिए एक नई चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। हालांकि देश के अनेक हिस्सों में पड़ रही प्रचंड गर्मी को भी इसका कारण माना जा रहा है, फिर भी मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किए जाने की संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए। डिजिटल तकनीक में वह सामर्थ्य है, जिसकी क्षमताओं का लाभ चुनावों में भी उठाया जाना चाहिए
लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में है। प्रक्रिया में देश को इस बार अभूतपूर्व सामर्थ्य हासिल होने जा रहा है। समावेशी डिजिटलाइजेशन क्रांति की और भारत ने स्वयं को बहुत मजबूत किया है। भारत के शीर्ष नेतृत्व ने सक्षम भारत बनाने के क्रम में यह नवोन्मेषी कदम उठाया है। डिजिटल प्रारूप में आचारभूत बदलाव लाने की दिशा में हमारा देश प्रतिबद्ध दिख रहा है।
चुनावों में एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का उपयोग के करने लिए पुरजोर कोशिश चल रही है। इसके लिए नई डिजिटल साक्षरता पर बल दिया जा रहा है। यह प्रयास युवा भारत के युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बनने जा रहा है। आने वाले समय में मतदाता एआइ के माध्यम से मतदान में प्रतिभागी बन सकेंगे। चुनाव संपन्न करने वाली हमारी युवा टीम इसी माध्यम से चुनाव में किए जाने वाले समस्त क्रियाकलापों पर निगरानी रखेगी और कम समय में अधिक मतदान संभव कराना सुनिश्चित करेगी। समावेशी डिजिटलीकरण का सबसे महत्वपूर्ण सहयोग यह मिलने जा रहा है कि जो मतदाता चुनाव में हिस्सेदारी से बचते थे, वे भी रुचि लेने की स्थिति में चुनाव में प्रतिभागी बन सकेंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा समावेशी डिजिटलीकरण पहले एक स्वप्न था, लेकिन भारत में अब इसे एक मजबूत टूल्स के रूप में देखा जा रहा है। डिजिटल विश्व तेजी से एक सत्तावादी जगह बनने की और अग्रसर है। बहुत सारी लोकतांत्रिक सरकारे एकाधिकारवादी शासन की तरह काम कर रही हैं। इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता की रक्षा करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में दुनिया की सरकारें जागरूक हुई हैं। वे ऐसे टूल्स को तैयार कर रही हैं जिनसे गोपनीयता भी बनी रहे और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अन्य साइबर लीगेसी को भी बनाए
रखा जाए। भारत सरकार ने बहुत ही सूक्ष्म अध्ययन एवं शोध के माध्यम से डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को मजबूत बनाने में कामयाबी हासिल की है। यह व्यवस्था न्याय प्रणाली और मतदान प्रणाली में पूर्णतया लागू हो जाए तो भारत की डिजिटल क्रांति विश्व में व्यापक पहचान हासिल कर लेगी। लेकिन इसके लिए भारत के प्रत्येक नागरिक खासकर युवाओं को व्यापक शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा। सरकार अगले कुछ वर्षों में यदि इच्छित लक्ष्य को हासिल कर पाई तो भारत में डिजिटल चुनाव प्रक्रिया इससे एक बड़ा लाभ भारतीय लोकतंत्र की यह होगा कि अधिकतम मतदान सुनिश्चित किया जा सकेगा।
डिजिटल विश्व में कारपोरेट की भूमिका महत्वपूर्ण है। विकेंद्रीकृत नेटवर्क जहां संचार सेवाओं का एकाधिकार होने के बजाय स्थानीयकृत होने की मांग कर रहा है, वहां यह जरूरी है कि कारपोरेट जगत डिजिटल भारत में अपना निवेश करके डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा देना चाहती हैं, तो वे बढ़-चढ़कर इसमें भाग लें और भारतीय साइबर कानून का गंभीरता से पालन करके गोपनीयता एवं सुरक्षा पर बल दें। भारत सरकार इसके लिए जो अनुबंध बनाए, वह भारत की प्राथमिकताओं और स्थानीयकृत व्यवस्थाओं का ध्यान रखे और निवेश में सेवा को प्राथमिकता दे, लाभ को नहीं। भारतीय गतिशीलता में यह महत्त्वपूर्ण कदम है और इससे डिजिटल समावेशीकरण के लिए जो भारत सरकार ने लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं, उसे भी बेहतर ढंग से प्राप्त किया जा सकेगा।
है।
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुसंगत भारतीय
दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है जिससे वह आने वाले समय में डिजिटल क्रांति की दिशा में बहुत से नए मापदंड बनाते हुए आगे जाने के लिए तैयार है। दुनिया के बहुत से देश जी गरीबी, भुखमरी और दूसरी कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने वाले कारक को चिह्नित नहीं कर पाए हैं, वे डिजिटल विकास की यात्रा कर ही नहीं सकते। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने इकोनमिक डिजिटलीकरण पर ज्यादा फोकस किया है जिससे डिजिटल साक्षरता बढ़ी है। इसका फायदा यह हुआ है कि जो डिजिटल प्लेटफार्म को नहीं भी यूज कर रहे थे, वे अब इसका भरपूर उपयोग करने लगे हैं। भारत का सही मायने में देखा जाए तो डिजिटलीकरण साक्षरता डर कौविड के बाद मुद्रा योजना, डिजिटल पेमेंट आदि के माध्यम से बढ़ी है। युवा तो डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर ही रहे हैं, सेल्फ हेल्प ग्रुप्स, वृद्धजन आदि भी इस प्लेटफार्म का उपयोग कर रहे हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत डिजिटल क्रांति के लिए तैयार है।
नेतृत्व को भी यह पता है कि भारत के लिए क्या उपयुक्त है और कैसे भारत को दुनिया की प्रतिस्पर्धा में सम्मिलित किया जा सकता है। हमारे उद्देश्य भी स्पष्ट हैं। ऐतिहासिक रूप से जो परिवर्तन भारत में विगत कुछ वर्षों में हुआ है वह उसकी नीति और नियति दोनों साफ होने के कारण हुआ है। समावेशी डिजिटलीकरण भारत इसलिए भी कर रहा है, क्योंकि वह दुनिया में भारतीय छवि को मजबूत करना चाहता है। इसके माध्यम से भारत संयुक्त राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होगा
डीपफेक से निपटने की मुश्किल चुनौती
वैष्णव डीपफेक की चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। वस्तुतः किसी भी वीडियो में किसी व्यक्ति के चेहरे या शरीर को डिजिटल रूप से बदलने को 'डीपफेक' कहते हैं। डीपफेक वीडियो और आडियो दोनों ही रूप में हो सकता है। इसे एक स्पेशल मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके बनाया जाता है, जिसे 'डीप लर्निंग' कहा जाता है। डीप लर्निंग में कंप्यूटर को दो वीडियो या फोटो दिए जाते हैं, जिन्हें देखकर वह स्वयं ही दोनों वीडियो या फोटो को एक जैसा बनाता है यानी एडिटेड वीडियो में किसी अन्य के चेहरे को किसी अन्य के चेहरे से बदल दिया जाता है। इस तरह के फोटो तथा वीडियो में कुछ छिपी हुई लेयर्स होती हैं, जिन्हें केवल पडिटिंग साफ्टवेयर की मदद से ही देखा जा सकता है। ये वीडियो इतने सटीक होते हैं कि आप इन्हें आसानी से नहीं पहचान सकते।
यह भी भारत जानता है। खैर, इन सबके बावजूद भी यदि भारत की डिजिटल नीति देखेंगे तो वह डिजिटल जस्टिस का एक सच्चा नमूना है जिसे भारत बहुत गर्व के साथ आज दुनिया के समक्ष भी रख रहा है। अब तो कई देश इस बात को उद्धृत करने लगे हैं कि भारत डिजिटल प्रारूप में आ चुका है और वह विश्व में अच्छा डिजिटल प्रदर्शन कर रहा है। भारत की तस्वीरों और वीडियो को पहचानना आसान तो नहीं होता, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। तकनीक के जानकारों के मुताबिक इन्हें पहचानने के लिए वीडियो को बहुत बारीकी से देखते हुए खासतौर पर चेहरे के भाव, आंखों की हलचल और शारीरिक शैली पर ध्यान देना होगा। डीपफेक वीडियो का प्रसार रोकने के लिए लोगों में जागरूकता बहुत जरूरी है। भारत में डीपफेक से मुकाबले का कानूनी हथियार मौजूद है, लेकिन इस अधिकार की जानकारी भी हर किसी को होना जरूरी है। आइटी एक्ट 2000 किसी भी व्यक्ति को उसकी गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करता है, ऐसे में यदि कोई डीपफेक वीडियो या तस्वीर किसी की मर्जी के बिना बनाकर कानून तोड़ता है तो उसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है। धारा 66डी के तहत ऐसे
मामले में दोषी पाए जाने पर उसे तीन वर्ष तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। साइबर सुरक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार भारत के लिए हितकारी साबित होने वाला है। इससे विश्व में जो ग्लोबल डिजिटल कांपैक्ट बन रहा है उसमें भारत की महत्वपूर्ण मानी जाएगी।
परिवर्तन की यह बयार भारत के लिए बहुत ही सुखद है और डिजिटली महत्त्वाकांक्षी है। इसके लिए येन-केन- प्रकारेण कमर कस कर अधिकतम निवेश वीडियो को पकड़ना आसान हो सकता है, क्योंकि ये इंटरनेट पर र मौजूद असली वीडियो से ही बनाए जाते हैं, लेकिन भारत में ऐसे वीडियो को लेकर चिंता की सबसे बड़ी बात यही है कि हमारे यहां इसके लिए जिस धैर्य की जरूरत है, वह इंटरनेट यूजर्स में नहीं दिखती। लोग बिना कुछ सोचे-समझे किसी भी संदेश को एक-दूसरे को अग्रेषित करते रहते हैं। डिजिटल साक्षरता कम होने के कारण ऐसे वीडियो समस्या को गंभीर बना सकते हैं। एआइ के आगमन से आर्थिक और सामाजिक विकास को लेकर उम्मीदें बढ़ी थी, यह भी माना जा रहा था कि इससे फेक न्यूज और गलत सूचनाओं के प्रसार कर्को रोकने का प्रभावी तरीका मिल जाएगा, लेकिन इसका उपयोग बढ़ने के साथ-साथ इसका दुरुपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जिससे फेक न्यूज में वृद्धि हो रही है। अब यह चरित्र हनन करने के मामले में भी एक शक्तिशाली औजार के रूप में उभर रहा है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)
भारत सरकार करेगी। इसमें कोई दी मत नहीं है। देश की यह समावेशी एवं सार्वभौमिक डिजिटल कोशिश नई रंगल लाएगी और भारत की जो प्रतिष्ठा अब है उसमें भी अभिवृद्धि करेगी। अच्छी बात यह है कि भारतीय डिजिटल क्रांति को रेखांकित करने वाले कुछ देश जो डिजिटल निवेश नहीं कर सकते वे अपने देशों में भारत की सहायता भी लेंगे।
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