महात्मा गाँधी का वीर सावरकर से बहुत पुराना रिश्ता

सावरकर को लेकर गाँधी लिखते हैं, "सत्यप्रेमी तथा सत्य के लिए प्राण तक न्योछावर कर सकने वाले व्यक्ति के रूप में आपके लिए मेरे मन में कितना आदर है।

May 28, 2024 - 16:53
May 28, 2024 - 16:58
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महात्मा गाँधी का वीर सावरकर से बहुत पुराना रिश्ता
महात्मा गाँधी का वीर सावरकर
भारत को सावरकर के त्याग और देशभक्ति का बहुत जल्दी फायदा मिलेगा

महात्मा गाँधी का वीर सावरकर से बहुत पुराना रिश्ता था। वे एक-दूसरे से वर्ष 1909 में विजयादशमी के दिन लन्दन में पहली बार मिले थे। गाँधी ने उस दिन वहां एक भाषण दिया और कहा कि "उन्हें सावरकर के साथ बैठने का सम्मान मिलने पर बहुत गर्व है। भारत को सावरकर के त्याग और देशभक्ति का बहुत जल्दी फायदा मिलेगा।"

सावरकर को लेकर गाँधी लिखते हैं, "सत्यप्रेमी तथा सत्य के लिए प्राण तक न्योछावर कर सकने वाले व्यक्ति के रूप में आपके लिए मेरे मन में कितना आदर है। इसके अतिरिक्त अंततः हम दोनों का ध्येय भी एक है और मैं चाहूँगा कि उन सभी बातों के सम्बन्ध में आप मुझसे पत्र-व्यवहार करें जिनमें आपका मुझसे मतभेद है, और दूसरी बातों के बारे में भी लिखें। मैं जानता हूँ कि आप रत्नागिरी से बाहर नहीं जा सकते, इसलिए यदि जरूरी हो तो इन बातों पर भी जी भरकर बातचीत करने के लिए मुझे दो-तीन दिन का समय निकालकर आपके पास आकर रहना भी नहीं अखरेगा।"
सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार, सावरकर माने तिलमिलाहट, सावरकर माने तितिक्षा, सावरकर माने तीखापन।
- अटल बिहारी वाजपेयी
कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी वीर सावरकर पर आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने अंग्रेजों की प्रशंसा की थी, किन्तु उनके परनाना मोतीलाल नेहरू ने भी ब्रिटिश राजवंश का गुणगान किया था। गोपाल कृष्ण गोखले ने भी ब्रिटिश अधिकारी की प्रशंसा की थी। क्या ऐसा करने से स्वाधीनता संग्राम में उन दोनों के योगदान को कम किया जा सकता है? स्पष्ट है कदापि नहीं, तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों में सभी नेता एवं क्रांतिकारी अपने-अपने विचारों के अनुसार स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया के ए. के. गोपालन और एच. एन. मुखर्जी जैसे वरिष्ठ संसद सदस्य हमेशा वीर सावरकर के पक्ष में खड़े रहते थे। जब फरवरी 1966 में वीर सावरकर का निधन हुआ तो एच. एन. मुखर्जी ने ही सबसे पहले संसद द्वारा एक शोक सन्देश जारी करने का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा, "वीर सावरकर का निधन राष्ट्रीय महत्त्व का विषय है, संसद सदस्यों को उनकी संवेदनाएं पेश करने देना चाहिए। मगर ऐसा नहीं होने दिया, जो कि अनसुना एवं अकल्पनीय है।" प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने भी उनकी बातों का समर्थन किया।
वीर सावरकर को लेकर अकसर टिप्पणी की जाती है कि उन्होंने अंग्रेजों को सजा माफी के लिए पत्र लिखा था, किन्तु शायद ही लोगों को यह जानकारी होगी कि उस समय के राजनैतिक रूप से बंदी बनाये गये लोगों के लिए बंदीगृह से बाहर आने हेतु ऐसा करना एक कानूनी प्रक्रिया थी और यह याचिका तैयार करने का परामर्श स्वयं महात्मा गाँधी ने सावरकर बंधुओं को दिया था। महात्मा गांधी भी उनकी रिहाई के लिए प्रयासरत थे।
सावरकर बंधुओं की राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब दोनों भाइयों को कालापानी की सजा हो गयी थी तब गांधी जी ने लिखा था, "सावरकर बंधुओं की प्रतिभा का उपयोग जन-कल्याण के लिए होना चाहिए। अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र सदा के लिए हाथ से चले जायेंगे। एक सावरकर भाई को मैं अच्छे से जानता हूँ। मुझे लन्दन में उनसे भेंट का सौभाग्य मिला था। वे बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं। वे क्रांतिकारी हैं और इसे छुपाते नहीं हैं। मौजूदा शासन प्रणाली की बुराई का सबसे भीषण रूप उन्होंने बहुत पहले, मुझ से काफी पहले, देख लिया था। आज भारत को, अपने देश को, दिलोजान से प्यार करने के अपराध में कालापानी भोग रहे हैं। अगर सच्ची और न्यायी सरकार होती तो वे किसी ऊंचे शासकीय पद को सुशोभित कर रहे होते। मुझे उनके और उनके भाई के लिए बड़ा दुःख है।
सावरकर के 'वीर' उद्बोधन पर टिप्पणी करने वाली कांग्रेस यह भूल जाती है कि 1947 में स्वतंत्रता के बाद, अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक समिति का गठन किया था, जिसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या, डॉ. एस. राधाकृष्णन, जय प्रकाश नारायण और विजयलक्ष्मी पंडित जैसे नाम शामिल थे। इन सभी को भारत के स्वाधीनता आन्दोलन पर एक पुस्तक - 'To The Gates of Liberty' के प्रकाशन की जिम्मेदारी दी गयी थी। पुस्तक की प्रस्तावना प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी और सावरकर के भी दो लेखों - 'ideology of the War Independence' और 'The Rani of Jhansi' को भी इसमें प्रकाशित किया गया था। इस पुस्तक की एक और विशेष बात यह थी कि इस समिति ने सावरकर के नाम के आगे 'वीर' लगाया था।
Savarkar's intellect had no boundaries. He penned down poetry, biographies, dramas, rationalistic essays and books, social issues like untouchability and purification/reconversion (shuddhikaran), philosophical foundation for Hindutva and also introduced new words for Hindi and Marathi
A police report in London says that Savarkar dellvers lectures In the daytime but is in contact with those, who were able to prepare bombs and other ammunition. The report further says that Savarkar was also Involved In distribution of pamphlets in India. Report further says that Savarkar was always in touch with revolutionarles In Russla, Ireland, Egypt, Turkestan and China.
Savarkar tried to build the network of Abhinav Bharat (A revolutionary group). He struck with an Idea to go to London so that he could meet other revolutionarles there. Shyamji Krishna Varma offered him Shivaji Scholarship because of which he could go to London to undertake education In Barrister In 1906.
Motivated by Savarkar, a number of youths Jolned revolutionary work. They Included Khudiram Bose, Madanial Dhingra, Anant Kanhere, Karve and Deshpande, Bal Mukund, Avadh Biharl, Amirchand, Vasant Vishwas, Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru and Udham Singh. A few of them were hanged to death and they sacrificed their Ilves for the motherland.
Bhagat Singh had laid down three conditions for youths to join his Indian Revolutionary Army. One of the conditions was reading Savarkar's biography.
Corzon Waylee, who was responsible for the Jallianwala Bag Incident, was assassinated by Madanlal Dhingra in London, Anant Kanhere killed Collector Jackson In Nashik. The British government suspected that Savarkar was Involved In both the cases and was arrested. Savarkar, however, Jumped out from a ship In France. This created a huge legal problem for British rule. The British government was forced to fight the case In International court because of this. As a result, the International community came to know how Britishers were treating Indians.
Manvendranath Roy, who is considered as the founder of Marxism in India, was also deeply impressed by Savarkar. Roy was one of the members of the reception committee, which was formed to welcome Savarkar in 1937. Roy was given the responsibility to introduce Savarkar in the function. Roy described in his speech that he was influenced by Savarkar since his childhood, Roy even demonstrated his respect for Savarkar by touching his feet
 

 
- महात्मा गाँधी, साल 1909, विजयादशमी दिवस
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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार