जिन्ना के कंगाल देश में भूखों मरने को मजबूर किए जा रहे ​शिक्षक, मार्च से नहीं मिला वेतन

शिक्षकों का यह प्रदर्शन खैबर पख्तूनख्वाह सूबे में हुआ। सड़क पर उतरकर सरकार के कानों तक अपनी पीड़ा पहुंचाने की कोशिश में लगे इन शिक्षकों के प्रदर्शन के बाद भी फिलहाल उनका वेतन जारी किए जाने की कोई हलचल नजर नहीं आ रही है। लड़कियों के सरकारी स्कूलों के शिक्षक सवाल कर रहे हैं कि […]

Nov 6, 2024 - 13:48
Nov 6, 2024 - 15:05
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जिन्ना के कंगाल देश में भूखों मरने को मजबूर किए जा रहे ​शिक्षक, मार्च से नहीं मिला वेतन

शिक्षकों का यह प्रदर्शन खैबर पख्तूनख्वाह सूबे में हुआ। सड़क पर उतरकर सरकार के कानों तक अपनी पीड़ा पहुंचाने की कोशिश में लगे इन शिक्षकों के प्रदर्शन के बाद भी फिलहाल उनका वेतन जारी किए जाने की कोई हलचल नजर नहीं आ रही है। लड़कियों के सरकारी स्कूलों के शिक्षक सवाल कर रहे हैं कि आखिर छात्राओं को पढ़ाने वालों को दोयम दर्जे का शिक्षक क्यों माना जा रहा है!


पड़ोसी इस्लामी देश की हालत बद से बदतर होती जा रही है। न ​सरकारी कारखाने चल पा रहे हैं, न सरकारी कामगारों को पगार ही मिल पा रही है। लड़कियों के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की हालत इतनी खराब हो चली है कि इस साल मार्च से उन्हें वेतन ही नहीं मिला है। कई घरों में तो खाने के लाले पड़ने की नौबत आ चुकी है।

हालत ऐसे हो गए हैं वे गरीब शिक्षक सड़कों पर उतरकर हायतौबा मचा रहे हैं। वे कंगाल सरकार को कोस रहे इन प्रदर्शनकारी शिक्षकों की पीड़ा यही है कि पहले तो वेतन इतना कम है कि गुजर मुश्किल से हो पा रही है। और दो, उन्हें पिछले आठ महीने से वेतन के नाम पर एक पाई नहीं मिली है।

अब तो उनके पास स्कूल जाने के लिए किराये—भाड़े तक की तंगी हो चली है। उनके नातेदार भी उन्हें बार बार कर्जा देकर तंग आ चुके हैं। प्रदर्शन कर रहे है अनेक शिक्षक आपबीती बताते हुए ​पत्रकारों के सामने ही आंसुओं से रोते दिखे।

शिक्षकों का यह प्रदर्शन खैबर पख्तूनख्वाह सूबे में हुआ। सड़क पर उतरकर सरकार के कानों तक अपनी पीड़ा पहुंचाने की कोशिश में लगे इन शिक्षकों के प्रदर्शन के बाद भी फिलहाल उनका वेतन जारी किए जाने की कोई हलचल नजर नहीं आ रही है। लड़कियों के सरकारी स्कूलों के शिक्षक सवाल कर रहे हैं कि आखिर छात्राओं को पढ़ाने वालों को दोयम दर्जे का शिक्षक क्यों माना जा रहा है!

आठ महीने से वेतन की प्रतीक्षा कर रहे इन शिक्षकों के विरोध प्रदर्शनों में उतरने से कई ​बार तो स्कूलों में छात्राओं को कोई पढ़ाना वाला नहीं होता। इससे पढ़ाई चौपट हुई पड़ी है। पाकिस्तान की आर्थिक सेहत सच में नाजुक हो चली है। पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले रोज नीचे गिरता जा रहा है। बेरोजगारी और महंगाई की दोहरी मार तो पहले से पड़ ही रही है।

इस मुद्दे पर पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार द डॉन की रिपोर्ट कहती है कि बड़ी संख्या में शिक्षकों को पगार नहीं मिली है। ऐसे अनेक शिक्षकों को अब अगल स्कूलों में भेजा गया है। इसके लिए छात्राओं के 2,200 स्कूल, 541 बेसिक शिक्षा केंद्रों के स्कूल तथा राष्ट्रीय मानव विकास आयोग के 275 स्कूल चिन्हित किए गए हैं। पाकिस्तान में ​स्कूली शिक्षकों की आमतौर पर पगार 21,000 रुपए प्रति माह ही है। लेकिन ये भी गत आठ महीने से नहीं मिली है।

इनमें से अधिकांश स्कूल प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा फाउंडेशन के अंतर्गत काम कर रहे हैं, प्रदर्शन करने वाले ज्यादातर शिक्षक इन्हीं स्कूलों से हैं। फाउंडेशन का कहना है कि सरकार से ही उसके पास अनुदान नहीं आस रहा है, तो ऐसे में शिक्षकों के वेतन कैसे दिए जाएं। स्कूली शिक्षकों को पूरी पगार देने ​के लिए दो अरब रुपयों की जरूरत बताई जा रही है।

दिलचस्प बात है कि फाउंडेशन के पास स्कूल की इमारत का किराया चुकाने के लायक भी पैसे नहीं हैं। कई महीनों से किराए के पैसे भी शिक्षकों से चंदे के तौर पर उनके वेतन से लिए जाते रहे थे। लेकिन अब तो वेतन ही नहीं मिल रहा है, ऐसे में किसी इमारत में स्कूल रहेगा या नहीं रहेगा, यह भी कोई नहीं बता सकता।

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