चीन का खौफ दिखा हथियार बेचने की तैयारी में अमेरिका, बोला- जाग जाओ वरना पछताओगे

चीन की बढ़ती ताकत को लेकर अमेरिका ने एशियाई देशों को चेताया है. अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने सिंगापुर में कहा कि चीन से खतरा निकट है, इसलिए सभी सहयोगी देश रक्षा खर्च बढ़ाएं. इस अपील के पीछे अमेरिका की दोहरी रणनीति है. दरअसल अमेरिका एशियाई देशों को चीन के खिलाफ खड़ा करके अपने हथियार बेचना चाहता है.

चीन का खौफ दिखा हथियार बेचने की तैयारी में अमेरिका, बोला- जाग जाओ वरना पछताओगे
चीन का खौफ दिखा हथियार बेचने की तैयारी में अमेरिका, बोला- जाग जाओ वरना पछताओगे

एशिया में चीन की बढ़ती ताकत को लेकर अमेरिका ने एक बार फिर चेतावनी दी है, लेकिन इस बार लहजा कुछ अलग और इशारा कहीं और था. अमेरिका ने अपने एशियाई सहयोगियों से साफ कहा है कि अब आंखें खोलो, रक्षा बजट बढ़ाओ, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी. लेकिन इस चेतावनी के पीछे अमेरिका की एक खास रणनीति भी है. एक तरफ चीन का डर दिखाकर एशियाई देशों को उसके खिलाफ खड़ा करना, और दूसरी तरफ उन्हें हथियार बेचकर अपना रक्षा व्यापार चमकाना.

शनिवार को सिंगापुर में आयोजित एशिया के सबसे बड़े डिफेंस मंच ‘शांगरी-ला डायलॉग’ में अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने कहा कि चीन से खतरा अब कोई भविष्य की बात नहीं, बल्कि एक इमीडिएट थ्रेट है. उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में रखता है और इसलिए एशियाई देशों को अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए ज्यादा खर्च करना होगा.

बयान के पीछे अमेरिका का डबल गेम

हेगसेथ का यह बयान सुनने में भले ही क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति चिंता जताने जैसा लगे, लेकिन इसके पीछे अमेरिका की डिफेंस इकोनॉमी का बड़ा खेल छिपा है. दरअसल, अमेरिका जानता है कि अगर एशियाई देश डर के कारण हथियारों पर खर्च बढ़ाएंगे, तो उन्हें सबसे पहले आधुनिक हथियार कहां से मिलेंगे. अमेरिका से. यानी जितना डर फैलेगा, उतनी ही अमेरिका की कमाई बढ़ेगी.

यही नहीं, हेगसेथ का यह बयान न सिर्फ चीन के खिलाफ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश है, बल्कि यह भी संकेत है कि अमेरिका चाहता है कि भारत, जापान, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया जैसे देश खुलकर चीन के खिलाफ सैन्य रूप से खड़े हों. इससे अमेरिका को दोहरा फायदा मिलेगा. एक तरफ चीन क्षेत्रीय झगड़ों में उलझेगा और दूसरी तरफ अमेरिकी हथियार कंपनियों की जेबें भरती जाएंगी.

रक्षा खर्च की आड़ में अमेरिका का एजेंडा

हालांकि इस बयान से अमेरिका के कुछ एशियाई सहयोगियों में असहजता भी देखी गई. कुछ देशों को लग रहा है कि अमेरिका सिर्फ रक्षा खर्च की आड़ में अपना व्यापारिक एजेंडा चला रहा है. इससे पहले भी अमेरिका यूरोपीय सहयोगियों को रक्षा खर्च बढ़ाने को लेकर सार्वजनिक रूप से लताड़ चुका है. अब यही रणनीति एशिया में भी आजमाई जा रही है.

डर दिखाओ, बाजार बनाओ और मुनाफा कमाओ

कुल मिलाकर, चीन के खतरे की आड़ में अमेरिका एशिया में दो काम एक साथ करना चाहता है. एक, चीन को घेरना और कमजोर करना. दूसरा, हथियारों की बिक्री से अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत को और मजबूत करना. और इसके लिए उसका सबसे बड़ा औजार है डर. डर दिखाओ, बाजार बनाओ, और मुनाफा कमाओ. यही है अमेरिका की इंडो-पैसिफिक पॉलिसी की असल तस्वीर.