कब्जा रहित, पारदर्शी व समाज कल्याणकारी होगा वक्फ प्रबंधन

विनोद बंसल राष्ट्रीय प्रवक्ता, विहिप 30 मार्च को वर्ष प्रतिपदा और वित्तीय वर्ष 2025-26 का प्रारंभ होते ही देश की संसद ने एक ऐसा कानून पारित कर दिया, जिसे यदि भारत की संपत्तियों का स्वाधीनता दिवस कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 व 2013 में संशोधन […] The post कब्जा रहित, पारदर्शी व समाज कल्याणकारी होगा वक्फ प्रबंधन appeared first on VSK Bharat.

Apr 5, 2025 - 05:54
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कब्जा रहित, पारदर्शी व समाज कल्याणकारी होगा वक्फ प्रबंधन

विनोद बंसल

राष्ट्रीय प्रवक्ता, विहिप

30 मार्च को वर्ष प्रतिपदा और वित्तीय वर्ष 2025-26 का प्रारंभ होते ही देश की संसद ने एक ऐसा कानून पारित कर दिया, जिसे यदि भारत की संपत्तियों का स्वाधीनता दिवस कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 व 2013 में संशोधन कर वक्फ संपत्तियों के विनियमन और प्रबंधन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का समाधान कर वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में सुधार लाना है। अब विधेयक संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया है।

एक शताब्दी पूर्व सरकार द्वारा अधिगृहित सम्पत्तियों का भू-स्वामी, स्वयं सरकार द्वारा ही, क्षणभर में बदल दिया जाएगा, कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। तत्कालीन यूपीए नीत केन्द्र सरकार ने सोचा कि सौ वर्षों से ज्यादा पुराना विवाद रविवार दिनांक 03 मार्च 2014 को जल्दी में बुलाई केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की बैठक के माध्यम से सुलझा लिया जाएगा। इसी दिन दिल्ली के अति-महत्त्वपूर्ण स्थानों पर स्थित 123 भू-सम्पत्तियों को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) व सरकार के लैण्ड एण्ड डेवलपमेंट ऑफ़िस (एलएनडीओ) के कब्जे से छुड़ा कर दिल्ली वक्फ़ बोर्ड को सौंपा दिया गया था।

महत्वपूर्ण बात यह है कि इस संबन्ध में जो सरकारी अधिसूचना या गजट नोटिफ़िकेशन 05 मार्च 2014 को ठीक उसी दिन जारी हुआ, जिस दिन चुनाव आयोग ने देश की सोलहवीं लोकसभा के चुनावों की घोषणा की। इनमें से कई सम्पत्तियाँ तो अति सुरक्षा वाले उप राष्ट्रपति भवन के साथ-साथ राजधानी के बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में भी हैं। इन सभी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में गत 40 वर्षों से अधिक समय से विविध न्यायालयों में वाद भी चल रहे थे। किन्तु, वोट बैंक की बिसात आखिर क्या-क्या गुल खिलाती है, किसी से कुछ छिपा नहीं है!

मामले में थोड़ा और पीछे चलते हैं। बात वर्ष 1970 की है, जब दिल्ली वक्फ़ बोर्ड ने अचानक एक तरफ़ा निर्णय लेते हुए इन सभी सम्पत्तियों को एक नोटिफ़िकेशन जारी कर वक्फ़ संपत्तियाँ घोषित कर दिया था। भारत सरकार ने इस मामले में तुरन्त हस्तक्षेप करते हुए निर्णय के विरुद्ध बोर्ड को प्रत्येक सम्पत्ति के लिए नोटिस जारी कर वक्फ़ सम्पत्ति मानने से इन्कार कर दिया। इतना ही नहीं, सरकार ने बोर्ड के विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया और सभी 123 संपत्तियों के लिए 123 वाद न्यायालय में दायर किए। मसला यह था कि सभी संपत्तियाँ तत्कालीन भारत सरकार ने आजादी से पूर्व वर्ष 1911 से 1915 के दौरान उस समय अधिग्रहित की थीं, जब अंग्रेजों ने दिल्ली को पहली बार अपनी राजधानी बनाने का निर्णय किया था। बाद में इनमें से 62 को डीडीए को दे दिया था। अधिकांश संपत्तियाँ दिल्ली के कनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी कॉलोनी, मान सिंह रोड, पण्डारा रोड, अशोका रोड, जनपथ, संसद मार्ग, करोल बाग, सदर बाज़ार, दरियागंज व जंगपुरा जैसे वीवीआईपी क्षेत्रों में स्थित हैं। जिनका मूल्य व महत्त्व आसानी से समझा जा सकता है, जो आज अरबों-खरबों में है।

वर्ष 1974 में भारत सरकार ने एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर सम्पत्तियों से जुड़े मामले का अध्ययन कर उसे रिपोर्ट देने का निर्णय लिया। किन्तु, जिन महाशय को सरकार ने कमेटी का अध्यक्ष बनाया, वे श्री एसएमएच वर्नी, पहले से ही वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष थे। चोर को ही थानेदार बना कर कमेटी की निष्पक्षता पर पहले ही दिन से प्रश्नचिह्न लग गया। उन्होंने रिपोर्ट में स्वयं लिखा कि इस कमेटी को दो सम्पत्तियों में तो घुसने तक नहीं दिया गया, जिनमें से एक उप-राष्ट्रपति भवन और दूसरी देश के अति संवेदनशील वायरलेस स्टेशन के अन्दर थी। किन्तु, इस सब के बावजूद जैसा कि पूर्व निर्धारित था, कमेटी ने इन सभी सम्पत्तियों को वक्फ़ सम्पत्तियाँ घोषित कर दिया। इसके बाद औपचारिकता पूरी करते हुए इंदिरा गांधी जी की तत्कालीन केंद्र सरकार ने उस वर्ष के आम चुनावों से ठीक पूर्व दिनांक 27.03.1984 को जारी ऑफ़िस आदेश संख्या J.20011/4/74.1-II के माध्यम से सभी संपत्तियों को एक रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष के पट्टे पर वक्फ़ बोर्ड को देने का निर्णय कर लिया।

विहिप ने देखा कि मुस्लिम तुष्टीकरण में आकंठ डूबी केंद्र सरकार मजहबी कट्टरपंथियों के समक्ष कैसे आत्मसमर्पण कर चुकी है और राजनीतिक दल इस पर चुप्पी साधे बैठे हैं। तब विहिप ने जून 1984 में जनहित याचिका संख्या WP(C) 1512/1984 के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने न सिर्फ़ सरकारी आदेश पर स्थगन आदेश पारित किया, बल्कि सरकार से बारम्बार पूछा कि क्या सरकार की कोई ऐसी नीति भी है कि वह किसी मजहब विशेष को अपनी मजहबी मान्यताओं की पूर्ति हेतु कोई संपत्ति पट्टे पर दे सके। किन्तु, सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं थी। इसलिए कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं आया।

26.08.2010 को भारत के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता पराग पी त्रिपाठी न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए और कहा कि सरकार चार सप्ताह के अन्दर इस संबन्ध में कोई नीतिगत निर्णय ले कर सूचित करेगी। किन्तु, चार सप्ताह की बात तो दूर, पूरा वर्ष 2010 बीत जाने पर भी जब सरकार नहीं लौटी तो 12.01.2011 को माननीय उच्च न्यायालय ने विहिप दिल्ली की याचिका का निस्तारण यह कहकर कर दिया कि “भारत सरकार इस मसले पर पुनर्विचार कर छह मास के अन्दर निर्णय ले और तब तक न्यायालय का स्थगन आदेश जारी रहेगा”।

जिस मसले के समाधान के लिए माननीय उच्च न्यायालय बार-बार कह-कह कर थक गया, किन्तु सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, चुनावी डंके की चोट कानों में पड़ते देख आनन-फ़ानन में यूपीए-2 की मनमोहन सिंह जी की सरकार की अन्तिम केबिनेट बैठक में एक बार फ़िर से सभी 123 सम्पत्तियों को वक्फ़ बोर्ड को देने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। इतना ही नहीं, इस अफ़रा-तफ़री में सरकार शायद यह भूल गई कि इस संबन्ध में भारत राजपत्र संख्या 566 व कार्यालय आदेश संख्या 661(E) ठीक उसी दिन (यानि 5 मार्च 2014) जारी कर दिया गया, जिस दिन आम चुनावों की घोषणा भारत के चुनाव आयोग ने की थी।

तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने पहले तो 1995 के वक्फ कानून में, वर्ष 2013 में खतरनाक संशोधन किए और फिर उसी को ढाल बना कर सौ वर्ष से अधिक पुरानी सम्पत्तियों को चुनावी वोट बैंक की भेंट चढ़ा दिया था। किन्तु, विहिप कहां हार मानने वाली थी! वह इस निर्णय के विरुद्ध सरकार द्वारा मॉडल कोड ऑफ कन्डक्ट के गंभीर उल्लंघन की शिकायत लेकर चुनाव आयोग पहुँची। यहाँ चुनाव आयोग ने सरकार का वह आदेश निरस्त कर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई।

चुनावों में सत्ताधारी दल की करारी हार के बाद, जनता की गाढ़ी कमाई से अर्जित संपत्तियों को यूँ फ्री में मुस्लिम वक्फ बोर्ड को दिए जाने के विरुद्ध, इन्द्रप्रस्थ विश्व हिन्दू परिषद एक बार फिर उच्च न्यायालय की शरण में पहुंचा और केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद माननीय न्यायाधीश ने मामले को नई सरकार के समक्ष रखने का आदेश जारी कर दिया। उसके बाद विहिप का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मण्डल केंद्र सरकार से मिला, जिसके बाद सरकार ने सभी संपत्तियों का सर्वे कराकर सभी संबंधित पक्षकारों को बुलाया और इन संपत्तियों का कब्जा अपने हाथ ले लिया।

जब यह 123 संपत्तियों का विवाद और उससे जुड़ी मुस्लिम तुष्टीकरण की सरकार नीति को विहिप जनता के बीच ले गई तो जनता को भी लगा कि कहीं-कहीं हमारी व्यक्तिगत, सामाजिक व धार्मिक संपत्तियों को भी तो वक्फ बोर्ड हड़प रहा है। इसके बाद देश भर में वक्फ के नाम पर हो रही अंधेरगर्दी और विधिक भू स्वामियों के अनवरत उत्पीड़न के समाचारों की बाढ़ सी आ गई। पीड़ित पक्षकार जागने लगे और उन्हें भी लगा कि शायद हमारी संपत्तियाँ भी वक्फ बोर्ड के अनधिकृत कब्जे से मुक्त हो जाएं! किन्तु वक्फ अधिनियम में 2013 के संशोधन उनकी राह के रोड़े थे। बात चाहे तमिलनाडु के थिरुचेंथुरई गांव के एक किसान जमीन की हो या बिहार के गोविंदपुर गांव में बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा पूरे एक गांव पर दावे की हो, केरल के एर्नाकुलम जिले के लगभग 600 ईसाई परिवारों की अपनी पुश्तैनी जमीन की हो या कर्नाटक के विजयपुरा में 15,000 एकड़ जमीन को वक्फ भूमि के रूप में नामित किया जाना हो और या फिर हजारों सरकारी संपत्तियों को वक्फ घोषित करने की बात हो, देशभर में वक्फ बोर्ड एक ऐसा भस्मासुर बन चुका था जो किसी भी संपत्ति पर हाथ रख देता था, वह उसी पल उसकी हो जाती थी। किन्तु, पीड़ित पक्षकार उसके विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा तक नहीं खटखटा सकता था। पुलिस शासन व प्रशासन सब निस्सहाय थे। 1995 तथा 2013 के वक्फ संशोधनों के माध्यम से उसे इतने असीमित अधिकार दे दिए गए थे जो अभी भारत के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पास भी नहीं हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की तो हजारों संपत्तियों को तो इसने पहले से ही घेरा हुआ है। और तो और, महाकुंभ के पावन अवसर पर प्रयागराज में त्रिवेणी के पावन तट, संसद भवन, इंदिरागांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जैसे देश के अनेक आस्था, विश्वास व गौरव के केंद्र, स्मारक व प्रमुख स्थानों को भी कट्टरपंथी उलेमा व मौलवी अपनी वक्फ संपत्ति बताने लगे थे। विहिप ने इन सबके विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद कर सरकारों को चेताया।

ऐसे में वक्फ अधिनियम में संशोधन कर यदि बोर्ड में दो महिलाओं, मुस्लिम वर्ग के वंचित समाज को, दो विशेषज्ञों को और क्षेत्र के जिलाधीश को शामिल कर दिया तो क्यों बवाल होने लगा! यदि किसी भी पक्षकार को न्यायालय जाने की अनुमति दे दी गई, जो अभी तक पीड़ित पक्षकार को नहीं थी, तो क्या यह संवैधानिक नहीं! यदि बोर्ड की संपत्तियों को कब्जा मुक्त कर उनका डिजिटल पंजीयन हो जाए तो क्या अच्छा नहीं! यदि वार्षिक अंकेक्षण हो और संपत्तियों की आय के लाभार्थी गरीब मुसलमान भी हो जाएं तो क्या ठीक नहीं! वक्फ यदि सही मुस्लिम व्यक्ति द्वारा, सही दस्तावेजों के आधार पर, सहमति से हो तो उसमें क्या गलत है! वक्फ प्रबंधन यदि कब्जा रहित, पारदर्शी व समाज कल्याणकारी हो जाए तो किसी को भला क्या संकट हो सकता है!

इस अधिनियम के पारित होने से पूर्व, जुलाई 2024 से अप्रैल 2025 तक 9 माह से अधिक देशव्यापी गंभीर बहस हुई, जिसमें करोड़ों सामान्य देशवासियों, बुद्धिजीवियों, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक व विधिक कार्यों से जुड़े व्यक्तियों, संगठनों व प्रतिनिधियों को संयुक्त संसदीय समिति ने प्रत्यक्ष, परोक्ष व डिजिटल रूप से न सिर्फ सुना, अपितु व्यक्तिगत भेंट कर उनसे सुझाव लिए, जो शायद एक अभूतपूर्व कदम है।

अब आशा की जानी चाहिए कि ये संशोधन देश के हर वर्ग के लिए कल्याणकारी साबित होंगे और इस बारे में झूठ फैलाकर देश में अशान्ति व अस्थिरता का वातावरण निर्माण करने वालों पर अंकुश लगेगा।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,