Prayagraj Haunted Cemetery: 168 साल पुराना अंग्रेजों का VIP कब्रिस्तान, क्या सच में यहां दिखता है महिला का भूत? जानें शाम 6 बजे क्यों है No Entry

Prayagraj Haunted Cemetery: यूपी के प्रयागराज में अंग्रेजों के जमाने का एक भूतहा कब्रिस्तान है, जो देखने में जितनी शानदार है, उतनी ही उसकी कहानियां डरावनी भी हैं. माना जाता है कि देर रात जो कोई इस कब्रिस्तान के पास की रोड से गुजरता है, एक नकाबपोश महिला उनसे लिफ्ट मांगती है. वो साधारण महिला नहीं, बल्कि एक भूत है. जिसने भी उसकी आंखों में देख लिया, उसकी मौत निश्चित है. यही कारण है कि इस कब्रिस्तान में शाम 6 बजे के बाद एंट्री बैन है.

Aug 2, 2025 - 04:53
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Prayagraj Haunted Cemetery: 168 साल पुराना अंग्रेजों का VIP कब्रिस्तान, क्या सच में यहां दिखता है महिला का भूत? जानें शाम 6 बजे क्यों है No Entry
Prayagraj Haunted Cemetery: 168 साल पुराना अंग्रेजों का VIP कब्रिस्तान, क्या सच में यहां दिखता है महिला का भूत? जानें शाम 6 बजे क्यों है No Entry

Prayagraj Gora Kabristan: अंग्रेजों के समय से पहले से प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र के तौर पर जाने जाते रहे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में अंग्रेजों के दौर की एक ऐसी पहचान आज भी मौजूद है, जहां शाम 6 बजे के बाद नो एंट्री रहती है. गोरा कब्रिस्तान के नाम से पहचान रखने वाले इस स्थान की सुरक्षा खुद सरकार करती है.

प्रयागराज के बैरहना मोहल्ले में स्थित गोरा कब्रिस्तान में 1857 की क्रांति के समय मारे गए 600 से अधिक अंग्रेजी अफसरों की सीमेट्री है. गोरा कब्रिस्तान आज भी प्रयागराज में एंग्लो-इंडियन और ईसाई समुदाय के इतिहास का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है. कब्रों की डिजाइन, नक्काशी और इसे बनाने की शैली हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचती है.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि इस कब्रिस्तान को बनाने में अंग्रेजों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. महंगे कपड़े और गहनों के साथ कई वीआईपी अंग्रेजों को यहां दफनाया गया. उनकी कब्र में महंगी धातुओं के शिलालेख या नेम प्लेट लगाई गई. यही वजह है आजादी के बाद जैसे ही इसकी जानकारी आम हुई, चोर इन कब्रों के शिलापट चोरी कर ले गए.

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लेडी लिफ्टर के आतंक ने बना दिया हॉन्टेड प्लेस

इस कब्रिस्तान के साथ कुछ ऐसी घटनाएं भी जुड़ीं, जिसके चलते इसे हॉन्टेड प्लेस के तौर पर देखा जाने लगा. जुलाई 2015 में कीडगंज थाना क्षेत्र के रहने वाले 24 वर्षीय युवक रुपेश की अचानक मौत हो गई. रुपेश के पिता मूलचंद के मुताबिक, रुपेश एक शादी से स्कूटर से लौट रहा था. रास्ते में गोरा कब्रिस्तान से एक किलोमीटर दूर एक नकाब पॉश लड़की ने रुपेश से लिफ्ट मांगी. रुपेश ने उसे लिफ्ट दी और कब्रिस्तान के पास लड़की उतर गई. जाते-जाते लड़की का चेहरा रुपेश ने देख लिया और घर आकर वह बीमार पड़ गया. 24 घंटे में रुपेश से दम तोड़ दिया.

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स्थानीय लोगों की मानें तो अब तक चार लोग इसके शिकार हो चुके हैं, जिसमे एक की मौत भी हो गई है. इसकी वजह डर और दहशत बताई जा रही हैय लोगों का कहना है कि वह देर रात एक नकाबपोश औरत खास रोड पर लोगों से लिफ्ट मांगती है और रुकने के बाद लोगो को अपना चेहरा दिखाती है. इसके बाद लोग बीमार होकर दम तोड़ देते है. यह कोई अंधविश्वास है या कोई शरारत, जिसे कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करना चाहते है, यह जांच का विषय बना. पुलिस ने इसके लिए जांच बैठाई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

VIP ही दफनाए जाते थे इस कब्रिस्तान में

प्रयागराज के गोरा कब्रिस्तान में सामान्य लोगों के लिए कोई जगह नहीं थी. इसमें केवल वही अंग्रेज दफनाए गए जो उस समय वीआईपी माने गए. इनमें सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय कब्र लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन रसल की है, जो उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे और 1857 की क्रांति में ये मारे गए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले वीसी सर विलियम म्योर भी इसमें शामिल हैं. इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अलेक्जेंडर, कर्नल जॉन गार्नेट और जॉर्ज हेल शामिल हैं.

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कब्रों के आलीशान नमूनों ने बनाई पहचान

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि गोरा कब्रिस्तान, प्रयागराज में जो कब्रें बनाई गई थीं, वे मुख्य रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की ईसाई कब्र-शैली (Colonial British Christian Tomb Architecture) की मिश्रित शैली को दर्शाती हैं. कब्र निर्माण की कई शैलियों का इसमें मिश्रण है. सबसे अधिक गॉथिक शैली में यहां कब्रें बनाई गई हैं जिसने लंबी, नुकीली मेहराबें (Arches) और ऊंचे शिलालेख (Tombstones),सजावटी नक्काशी और बाइबिल श्लोक खुदे हैं.

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यह शैली विशेषकर अधिकारियों या ऊंचे पदों वाले व्यक्तियों की कब्रों मे दिखती है. सामान्य सैनिकों की कब्र यहां सरल ब्रिटिश शैली में बनाई गई, जिसमें सादगी है और जरा सी भी सजावट नहीं. यहां एक और अनोखी कब्र शैली देखने को मिलती है. यह है ओबिलिस्क या स्तंभ शैली की कब्र. इसमें एक लंबा खंभे जैसा पत्थर जो ऊपर से पतला होता है. यह शैली उन लोगों के लिए थी जिन्हें विशेष सम्मान दिया गया था. इनमें मृतक की सेवा या योगदान का विवरण खुदा था. इसके अलावा Vaulted या Underground Tombs यहां की कब्रों में देखे जा सकते हैं. कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की कब्रें भूमिगत कक्ष (Vault) जैसी बनाई गई थी. यह शैली अपेक्षाकृत कम है लेकिन खास लोगों के लिए थी.

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चौंकाती है कब्रों में वर्टिकल दफनाने की परम्परा

ईसाइयों में शव को ताबूत (Coffin) में रखकर कब्र में दफनाया जाता है. शव को आमतौर पर सिर पश्चिम की ओर और पैर पूर्व की ओर रखा जाता है, ताकि पुनरुत्थान (Resurrection) के समय वो ‘पूर्व’ की ओर देख सकें. कब्र के ऊपर एक क्रॉस, शिलालेख या पत्थर (Gravestone) लगाया जाता था, जिसमें मृतक का नाम, जन्म और मृत्यु की तिथि आदि लिखी जाती थी. अंग्रेज आम तौर अपने परिजनों को कब्र में हॉरिजॉन्टल अंदाज ने दफनाते हैं. इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि गोरा कब्रिस्तान में कुछ कब्रों मे वर्टिकल दफनाने के साक्ष्य मिले हैं. उनका कहना है कि जब एक ही परिवार के लोगों की मौत एक साथ किसी वजह से हुई होगी तब उन्हें वर्टिकल दफना दिया गया. इस कब्र का खौफ इस कदर व्याप्त है कि शाम 6 बजे के बाद यहां एंट्री बैन है. सरकार पर इसकी सुरक्षा का जिम्मा है.

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