हिंदी में 'मैला आंचल', जापानी में 'दोरोनो सुसो'

फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास का किया अनुवाद, जापान में भारतीय साहित्यकारों का है बहुत सम्मान

Mar 9, 2024 - 10:35
Mar 18, 2024 - 10:10
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हिंदी में 'मैला आंचल', जापानी में 'दोरोनो सुसो' 

फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास का किया अनुवाद, जापान में भारतीय साहित्यकारों का है बहुत सम्मान

जापान हिंदी भाषा के साथ ही भारतीय साहित्यकारों का भी बहुत बड़ा प्रशंसक है। कई साहित्यकारों की कृतियों का जापानी भाषा में अनुवाद अपने देश में सम्मान दिया है। प्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कृति 'मैला आंचल' का अनुवाद करने के लिए जापानी साहित्यकार युकि मिइंचिरी तो उनके गांव पहुंचे थे।

'मैला आंचल' के लेखन में तमाम ऐसे लोक शब्द थे जिनका आशय समझने के लिए यूकि मिईचिरो ने उनके गांव जाना जरूरी समझा था। केंद्रीय हिंदी संस्थान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में पिछले दिनों शामिल होने आए ओसाका विश्वविद्यालय जापान में एसोसिएट प्रोफेसर डा. वेद प्रकाश और टोक्यो यूनिवर्सिटी आफ फारेन स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुरज प्रकाश ने भारतीय साहित्य के प्रति जापानियों में बढ़ती लोकप्रियता के बारे में बताया। डा. वेद ने बताया कि फणीश्वरनाथ रेणु के कालजयी उपन्यास 'मैला आंचल' के पाठक पूरे विश्व में हैं। जापान में रेणु के पाठकों द्वारा उन्हें अनोखे तरीके से याद किया जाएगा। उपन्यास का अनुवाद कर इसे दो वर्ष पूर्व प्रकाशित किया जा चुका है। इसका अनुवाद जापानी साहित्यकार यूकि मिइचिरो ने किया है।

 यूकि मिईचिरो उपन्यास में उल्लिखित शब्दों को जानने के लिए वर्ष 1994 में पूर्णिया (बिहार) में फणीश्वरनाथ रेणु के गांव औराडी हिंगन भी गए थे। दरअसल, उपन्यास 'मैला आंचल' एक आंचलिक कृति है और इसमें स्वाभाविक रूप से आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन शब्दों को जापानी भाषा में अनुवादित करने के लिए इनका आशय भी समझना जरूरी था। जैसे- अधि, खोप सहित है। कबुतराए नमः, गुप्त प्रदेश आदि। खोप मिटटी के उस बर्तन को कहा जाता है जिसका प्रयोग कबूतर पालने के लिए किया जाता है। इसी तरह, गुप्त प्रदेश से आशय मानव शरीर के गुप्त अंग से है। 'मैला आंचल' का जापानी भाषा में अनुवाद कर इसका नाम 'दोरोनो सुसो' रखा। इसका अर्थ 'मैला पल्लू' है।


डा. वेद प्रकाश ने बताया कि उपेंद्रनाथ अश्क के उपन्यास 'गिरती दीवारें' का भी अनुवाद जापानी भाषा में हो चुका है। इसके अलावा प्रेमचंद के कालजयी उपन्यास 'गोदान' का भी अनुवाद किया गया है। जापानी साहित्यकार हिरोको नागासकी ने कृष्ण बल्देव वैद्य के उपन्यास 'उसका बचपन' का अनुवाद किया
टोक्यो यूनिवर्सिटी आफ फारेन स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर डा. सूरज प्रकाश कहते हैं कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए उसके व्याकरण की नहीं बल्कि अभ्यास की आवश्यकता होती है। उन्होंने हिंदी भाषा की साहित्यिक पुस्तकों के अनुवाद के लिए जापान में किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताया। इनमें रामचरितमानस के अलावा साहित्यकारों में प्रेमचंद, नामवर सिंह, जयशंकर प्रसाद, हरिशंकर परसाई एवं निर्मल वां की कृतियों का भी अनुवाद किया जा रहा है।

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