प्रयागराजः नारी शक्ति ने तोड़ा रेलवे की ठेकेदारी में पुरुषों का वर्चस्व
पति की मौत के बाद सिविल और मैकेनिकल दोनों क्षेत्र में उतरीं मंजू, स्टाफ में 70 प्रतिशत तक महिलाएं
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नारी शक्ति ने तोड़ा रेलवे की ठेकेदारी में पुरुषों का वर्चस्व
पति की मौत के बाद सिविल और मैकेनिकल दोनों क्षेत्र में उतरीं मंजू, स्टाफ में 70 प्रतिशत तक महिलाएं माफिया से मुकाबले को स्कूटी से पहुंचता है 'गुलावी गैंग
मंजू अब पाइप लाइन बिछाने से लेकर सड़क निर्माण के क्षेत्र में भी उतर चुकी है। रेलवे के ठेके में माफिया से मुकाबला किया तो चंबल मे काम के दौरान डाकुओं ने पैसे के लिए धमकाया भी। माफिया से मुकाबले को अपनी कंपनी की युवतियों के साथ स्कूटी से पहुंच जाती थीं। उनकी कंपनी में 70 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो हर मुश्किल में उनके साथ खड़ी हो जाती हैं।
सिविल और मैकेनिकल दोनों क्षेत्र में उतरीं मंजू ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया है। रेलवे स्टेशनों पर इन दिनों वह लिफ्ट लगाने का कार्य कर रही है। हर घर में नल से जल योजना के तहत भी काफी काम मिला है। 10 स्कूटी पर सवार होकर 20 महिलाएं पहुंचती थीं रेलवे के ठेके में। वहीं, एक दर्जन महिलाओं संग मंजू पहुंची थीं रेलवे में सफाई का ठेका लेने। इससे रेलवे में कंपनी (श्रीविष्णु इंटरप्राइजेज, श्रीविष्णु इंजीनियरिंग) कीसाख बन गई।
प्रयागराजः नारी शक्ति है, गौरव है और अभिमान भी। नारी के विभिन्न स्वरूप अपने समाज में दिखाई देते हैं। कुछ ऐसी ही जिजीविशा प्रयागराज की मंजू में दिखाई देती है, जिनके जोश, जज्बे और जुनून ने कांटों भरी राह में भी उन्हें सफलता के सोपान तक पहुंचाया है। इंजीनियर पति राजेंद्र की मौत और 20 वर्ष के बेटे शुभम के दुर्घटनाग्रस्त होकर बेड पर जाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और उस कार्य को चुना, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व है। रेलवे में ठेकेदारी उन्होंने शून्य से शुरू की और अब करोड़ों का काम कर रही हैं।
काम करने वाली टीम में ज्यादातर महिलाओं को ही स्थान दिया। तीर्थराज की मंजू अब गुलाबी गैंग की लीडर के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। नारी को वह प्रबल पहचान दी है जिसके सुखद परिणाम की अनुभूति महिलाएं कर सकती हैं। मंजू की यह कहानी लगती रील लाइफ जैसी है, मगर है रीयल। घर में पड़ी मानसिक बेड़ियों को अपनी लगन और मेहनत से तोड़कर उन्होंने नारीत्व को सशक्त और समृद्धि की नई पहचान दी। छोटे छोटे कदम बड़े प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाए, जो भविष्य में इतिहास रचने के परिचायक बने। मंजू को कम पूंजी में काम की तलाश थी। इसलिए उस कार्य को चुना, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व है। रेलवे में ठेकेदारी के रजिस्ट्रेशन कराने में पूरे डेढ़ वर्ष लग गए थे। बताती हैं कि टीएसएल से सेवानिवृत्त उनके पिता 50 रुपये ही देते थे, वह दिन भर में खर्च हो जाते थे और कोई काम नहीं होता था तो शाम को खाली हाथ घर लौटते समय उन्हें बेहद पीड़ा होती थी। घर पहुंचती तो पिता हौसला बढ़ाते और अगले दिन वह फिर निकल पड़तीं। आखिर एक दिन उन्हें प्लेटफार्म मिल ही गया। रेलवे में उन्हें सबसे पहला ठेका इंजन के पार्ट की सप्लाई का मिला। फिर तो उनकी राह बनती चली गई। जल्द ही काल्पी ब्रिज और फिर चंबल ब्रिज की पेंटिंग का ठेका मिल गया। संसद भवन में कैटरिंग में काम उनको मिला है।
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