श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत का एक परिचय , भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी
भारत के प्रधानमंत्री रहे। जून १९९६ से फरवरी १९९८ तक ग्यारहवीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे मार्च १९९८ में बारहवीं लोकसभा के गठन के बाद से आप पुनः भारत के प्रधानमंत्री हैं।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत का एक परिचय
भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता हैं, जो सार्वजनिक जीवन में अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए सुविख्यात हैं।
आपका जन्म २५ दिसंबर, १९२४ को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। आपके पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी था। एक भरे-पूरे परिवार के सदस्य अटल बिहारी वाजपेयी ने विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज, ग्वालियर और डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर में अपनी पढ़ाई पूरी की। आपने राजनीतिशास्त्र से एम.ए. तक की पढ़ाई की है। आप १९४२ के स्वतंत्रता आंदोलन में गिरफ्तार हुए थे और कुछ दिन जेल में रहे थे। आपने एक पत्रकार के रूप में अपना जीवन शुरू FRA | आपने १९४७-५० के दौरान ' राष्ट्र धर्म', १९४८-५० के दौरान “पाञ्चजन्य' (साप्ताहिक), १९४९-५० के दौरान ' स्वदेश' (दैनिक) तथा १९५०-५२ के दौरान “वीर अर्जुन” (दैनिक तथा साप्ताहिक) के संपादक के पदों को सुशोभित किया।
१९५१ में आप जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे तथा १९६८-७३ के दौरान आप इसके अध्यक्ष रहे । आप १९७७ में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे। जनता पार्टी की सरकार में १९७७-७९ की अवधि के दौरान आपने विदेश मंत्री के पद को सुशोभित किया। आप १९८० में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे तथा १९८०-८६ के बीच आप इसके अध्यक्ष पद पर आसीन रहे । आप १९८०-८४ तथा १९८६-९१ में भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल के नेता थे।
लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य के रूप में आप १९५७ से लगातार संसद सदस्य रहे हैं। १९९१-९६, दसवीं लोकसभा में आप नेता प्रतिपक्ष रहे | ग्यारहवीं लोकसभा के गठन के तुरंत बाद आप १६ मई, १९९६ से २८ मई, १९९६ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। जून १९९६ से फरवरी १९९८ तक ग्यारहवीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे मार्च १९९८ में बारहवीं लोकसभा के गठन के बाद से आप पुनः भारत के प्रधानमंत्री हैं।
सन् १९८५ को छोड़कर आप पिछले ४१ वर्ष के लंबे कालखंड में संसद के किसी-नकिसी सदन के सदस्य रहे। चार दशकों से भारतीय संसद में अपनी गौरवपूर्ण उपस्थिति से आप देश और संसद की गरिमा की श्रीवृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देते रहे हैं।
श्री वाजपेयी १९६६-६७ के दौरान सरकारी आश्वासन संबंधी समिति के, १९६९-७० और १९९१-९२ के दौरान लोक लेखा समिति तथा १९९०-९१ के दौरान याचिका-समिति के अध्यक्ष
रहे। १९६५ में पूर्वी अफ्रीका गए संसदीय सद्भावना मिशन के, १९८३ में यूरोपीय संसद में संसदीय शिष्टमंडल के; कनाडा (१९६६), जांबिया (१९८०), आइल ऑफ मैन (१९८४) में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ में संसदीय शिष्टमंडल के; जापान (१९७४), श्रीलंका (१९७५), स्विट्जरलैंड (१९८४) में आयोजित अंतर संसदीय यूनियन सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल के तथा Reve, ८९, ९०, ९१, ९२, ९३, ९४ और ९६ में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा में भारतीय शिष्टमंडल के आप सदस्य रहे हैं। अनेक अवसरों पर आप राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य रह चुके हैं । फरवरी १९९४ में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिंह राव के विशेष आग्रह पर आपने जेनेवा में मानवाधिकारों के सम्मेलन में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया अपितु प्रतिपक्ष के नेता द्वारा सरकार का पक्ष प्रस्तुत किए जाने की यह घटना अपने आपमें वहां उपस्थित सभी राष्ट्र प्रमुखों के लिए आश्चर्य और भारत के लोकतंत्र के प्रति निष्ठा और विश्वास कर अवसर बनी |
१९२५ में संयुक्त राष्ट्र की ५०वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित विशेष सत्र में भी वाजपेयी जी ने देश के दल का नेतृत्व किया | विदेश मामलों की समिति के चेयरमैन के रूप में भी वाजपेयी जी ने १९९७ में बहरीन, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। १९४२ में आपको ब्रिटिश हुक्मरानों ने जेल भेजा। आपातकाल के पूरे दौर में १९७५ से '७७ तक आप जेल में रहे। राष्ट्र के प्रति आपको समर्पित सेवाओं के लिए राष्ट्रपति ने १९९२ में “पद्म विभूषण' से विभूषित किया। १९९३ में कानपुर विश्वविद्यालय ने फिलॉसफी में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान को। १९९४ में “लोकमान्य तिलक ' पुरस्कार दिया गया। १९९४ में 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' चुना गया और “गोविंद बल्लभ पंत' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
२६ नवंबर, १९९८ को सुलभ इंटरनेशनल फाउंडेशन ने वर्ष '९७ के सबसे ईमानदार व्यक्ति के रूप में चुना। उपराष्ट्रपति श्री कृष्णकांत ने इस पुरस्कार से सम्मानित किया। श्री वाजपेयी १९६५-७० के दौरान अखिल भारतीय स्टेशन मास्टर्स एंड असिस्टेंट स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन के तथा १९६८-८४ के दौरान पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं तथा अभी आप १९७६ से पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मभूमि स्मारक समिति के अध्यक्ष पद को शोभायमान कर रहे हैं। श्री वाजपेयी को 'कैदी कविराज की कुंडलियां', ' न्यू डाइमेंशंस ऑफ एशियन फॉरेन पॉलिसी ', “मृत्यु या हत्या', ' जनसंघ और मुसलमान' और 'मेरी इक्यावन कविताएं” नामक पुस्तकें लिखने का श्रेय प्राप्त है। १९९२ में प्रकाशित “संसद में तीन दशक ' के तीन खंडों को समाहित करते हुए और उनमें सम्मिलित होने से रह गए और उसके बाद आपने सन् '५७ से अब तक लोकसभा और राज्यसभा में जितने भी महत्त्वपूर्ण भाषण दिए हैं, वे सब 'मेरी संसदीय यात्रा' के इन चार खंडों के प्रकाशन के साथ ही पुस्तक रूप में पाठकों तक आ चुके हैं। '
अटलजीचे आह्वान' नाम से मराठी में आपके सार्वजनिक मंचों, सदन और पार्टी बैठकों के चुनिंदा संभाषणों का संग्रह कई वर्ष पहले प्रकाशित हो चुका है । संसदीय यात्रा' का विस्तार भी है। उक्त पुस्तक में मैं अपनी विस्तृत भूमिका में अटलजी के बहुआयामी व्यक्तित्व और सन् १९५७ से उनके साथ अपने साहचर्य एवं उपाख्यानों की विस्तार से चर्चा कर चुका हूँ इसलिए यहाँ इतना ही कहकर यह पुस्तक अटलजी के विचारवान् पाठकों को समर्पित करता & |
इस पुस्तक के प्रकाशन में श्री वीरेंद्र जैन ने जो श्रम किया है उसके लिए में उनका धन्यवाद करता हूँ। अल्प समय में भाषण और फोटो उपलब्ध कराने के लिए मैं श्री अशोक टंडन और श्री ओ.पी. तनेजा का ऋणी हूँ। यह कहना अनावश्यक है कि पुस्तक में किसी भी त्रुटि या भूल के लिए मैं पूर्ण रूप से जिम्मेदार हूँ।
आइए, मिलकर काम He
बः और भाइयो, आपने जनादेश दे दिया । राष्ट्रपतिजी ने फैसला कर दिया। आपको सरकार बन गई | आइए, अब काम पर लग जाएँ।
दुनिया बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है। समय का तकाजा है कि हम छोटे-छोटे झगड़ों और मतभेदों को पीछे छोड़ दें। विशेष रूप से यह मौका चुनावों के दौरान पैदा हुई कटुता से छुटकारा पाने का है। मेरी सरकार काम पर जुट गई है और में आप सबसे भी जुटने का अनुरोध करूँगा ।
में विशेष रूप से संसद में चुनकर आए मित्रों से एक आग्रह करना चाहता K मैंने लगभग पूरा कामकाजी जीवन संसद के अंदर और उसके आसपास बिताया है | जब मैं इस बात पर विचार करता हूँ कि इस महान् राष्ट्रीय संस्थान के क्या उद्देश्य थे और आज हमने उसको क्या गत बना दी है, उसे देखकर मेरा दिल रोता है । हमें इसे एक बार फिर शिष्ट विचार-विमर्श और तर्कसंगत वाद-विवाद का सभ्य मंच बनाना होगा। इसलिए जल्दी ही अपना आसन ग्रहण करनेवाले सांसदों से में एक अपील करना चाहता हूँ | करोड़ों लोगों ने आपको अपना विश्वास सौंपा है । मेरा निवेदन है कि संसद को उन करोड़ों दु:खी लोगों के भरोसे के लायक बनाने की भरपूर कोशिश करें।
एक निवेदन आम लोगों से भी करना चाहता हूँ। आप मालिक हैं । जिन सदस्यों को आपने चुनकर भेजा है, वे आपकी तरफ से विचार-विमर्श के लिए यहाँ आए हैं। आप इन सदस्यों को अगले चुनाव तक भूल न जाएँ। न ही ये आपको भुला सकें।
मेरी दूसरी बात भी बुनियादी है- भविष्य की ओर निहारिए। दूसरे देश आकाश छू रहे हैं। सवाल केवल नई चीजों के उत्पादन का नहीं है। ये चीजें हर दूसरे साल एक नई टेक्नोलॉजी पर सवार हो जाती हैं और फिर तुरंत उससे भी नई टेक्नोलॉजी पिछली को धकेलकर, आगे बढ़ जाती है। हमें इस नई दुनिया का सामना करना हैं। अपने को इससे काटकर नहीं चल सकते। जो देश आर्थिक और टेक्नोलॉजी को दृष्टि से शक्तिशाली हैं, वही दुनिया पर हावी हैं | हममें से कोई भी भारत का मामूली दर्जे में बने रहना बरदाश्त नहीं कर सकता।
हम इसे बरदाश्त करें भी क्यों ? जो भी संसाधन चाहिए वे सब हमारे पास हैं | देश के पास विश्व स्तर की प्रतिभा है । नई टेक्नोलॉजी के मामले में भारतीय दुनिया भर में अगली पंक्ति में खडे हैं। भारत में भी जहाँ-जहाँ रास्ते खुल रहे हैं, जैसे सॉफ्टवेयर उद्योग, अंतरिक्ष अनुसंधान, नई २२ मार्च, १९९८ को प्रधानमंत्री के रूप में दूरदर्शन पर राष्ट्र के नाम प्रथम संबोधन |
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