राणा सांगा की हार: शौर्य की कमी या युद्ध-तंत्रों की अभाव?

राणा सांगा का योगदान भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय पृष्ठ बना दिया है, जो उनके शौर्य, नेतृत्व, और साहस के प्रति समर्थन के लिए याद किया जाएगा। उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण, और आत्मविश्वास ने उन्हें भारतीय समाज के एक श्रेष्ठ नेता बना दिया है। 

Jan 30, 2024 - 11:38
Jan 30, 2024 - 12:01
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राणा सांगा की हार: शौर्य की कमी या युद्ध-तंत्रों की अभाव?

राणा सांगा, जो की मेवाड़ के महाराणा थे, ने अपने शौर्य और पराक्रम से भरा यह दास्तानी अंगड़ाई में जीवित है। उनका नाम विरोधी सेनाओं के बीच भयभीती का कारण बन गया था। राणा सांगा ने सभी राजपूत कुलों को एकत्र करके विदेशी शासकों के खिलाफ मिलीभगत की और भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उनकी शौर्यगाथा ने उन्हें भारतीय इतिहास में अद्वितीय बना दिया।

अपने पूर्वजों की भावनाओं और राजपूत गौरव के प्रति विश्वास के साथ, राणा सांगा ने बाबर की सेना को हराकर अपने समय के महत्वपूर्ण इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बना ली। उनकी उम्र के बावजूद, उन्होंने अपने अद्वितीय योद्धा दृष्टिकोण और नेतृत्व के माध्यम से दुर्बल राजपूत समूहों को एक साथ लाकर भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।

राणा सांगा के पराक्रम का एक उदाहरण है पानीपत के युद्ध में जब उनकी सेना ने बाबर की सेना को हराया और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया। इस घड़ी में बाबर ने अपनी सेना को सम्बोधित करते हुए उनके सामर्थ्य की महत्वपूर्णता को जाहिर किया। राणा सांगा की ताकत और उनका नेतृत्व उस समय के लोगों को हैरान कर देने वाला था।

इस बड़े नेता की गौरवमय गाथाओं में से एक महत्वपूर्ण उपद्रव भी सामने आता है, जिसमें उनके भाई संग्रामसिंह के साथ हुए विवाद का जिक्र है। हालांकि इससे उनकी महात्मा गांधी जैसी शांति और सहजता की अपेक्षा अलग है, लेकिन उनकी योजना और संघर्ष ने एक समृद्ध भूमिका निभाई।

राणा सांगा का योगदान भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय पृष्ठ बना दिया है, जो उनके शौर्य, नेतृत्व, और साहस के प्रति समर्थन के लिए याद किया जाएगा। उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण, और आत्मविश्वास ने उन्हें भारतीय समाज के एक श्रेष्ठ नेता बना दिया है। 

राणा सांगा ने अपनी विशालकाय सेना, ताकतवर नेतृत्व, और राष्ट्रभक्ति के साथ भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली रियासत बनाने में अपना योगदान दिया और राजपूतों को एकत्र करके विदेशी शासकों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका साहस, धैर्य, और नेतृत्व आज भी भारतीय समाज में महानता के प्रतीक के रूप में माना जाता है।

राणा सांगा की सेना ने अनेक युद्धों में विजय हासिल की, जिससे उन्होंने मेवाड़ की सीमा को बड़ाई और स्थापित की। उनके शासनकाल में मेवाड़ का स्थान भारतीय राज्यों में अत्यंत महत्वपूर्ण बना। राणा सांगा का साहस और उनकी उदारता ने उन्हें राजपूतों के बीच एक लोकप्रिय नेता बना दिया, और उन्हें सभी राजपूत राजाओं का सम्मान प्राप्त हुआ। इससे पहले किसी राजपूत शासक ने ऐसा समर्थन नहीं प्राप्त किया था, जिसे सभी राजपूत कुलों ने अपना नेता माना।

राणा सांगा की गौरव-गाथा में उनके वीरता, साहस और धैर्य की कहानी है। उनके सामरिक योगदान ने भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान बनाया है और उन्हें महाराणा सांगा के नाम से याद किया जाता है। 

बाबर की सेना और उसके साथी घबराए हुए थे, और ज्योतिषी के भविष्यवाणी ने उन्हें और भी अधिक निराश कर दिया था। इस अवस्था में बाबर ने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और उन्हें साहसिक भाषण दिया। उन्होंने अपनी सेना को यकीन दिलाया कि उनकी साहस और निर्धारितता से कोई भी मुश्किल हाल हो सकती है। उन्होंने भगवान की कृपा पर भरोसा किया और अपने साथी सैनिकों से सहयोग मांगा।

बाबर के साथी सैनिक और नेताओं ने भी उसके प्रेरणात्मक भाषण को सुनकर नई ऊर्जा से भरा और समर्थ सेना बना ली। उन्होंने सहयोग, समर्थन, और साहस का संगम किया और विशेषकर राणा सांगा की सेना के खिलाफ उत्साहित हो गए।

इस नए उत्साह और उनके दृढ़ संकल्प के साथ बाबर ने खानवा की ओर मुख किया। यहां भिड़े गए युद्ध में मुग़लों ने राणा सांगा की बहादुरी और राजपूत सेना के साहस का सामना किया। बाबर की नीति और युद्ध कुशलता ने मुग़लों को एक महत्वपूर्ण जीत दिलाई। बाबर की उत्तेजना, सेना की तैयारी, और राणा सांगा के खिलाफ अपने साथियों को प्रेरित करने के कारण, खानवा की लड़ाई मुग़लों की जीत से समाप्त हुई।

इस प्रकार, बाबर की चतुरता, नेतृत्व, और साहस ने उन्हें खानवा की युद्ध में सफलता दिलाई और भारतीय इतिहास में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी 

राणा सांगा की चेतना का पुनरुत्थान होने के बाद, उन्होंने राजपूतों को एकजुट होकर बचाव के लिए संघर्ष करने का निर्णय किया। बाबर की सेना को चंदेरी में घेरने का प्रयास किया गया और वहां एक बड़ा संघर्ष हुआ। राणा सांगा ने अपनी सेना को उत्साहित किया और मुग़लों के प्रति एक और बार ब्रवो और निर्भीक स्वभाव दिखाया।

राणा सांगा की नेतृत्व में राजपूत सेना ने भीमी और उत्कृष्टता से संघर्ष किया। चंदेरी के युद्ध में हुए सख्त संघर्ष में राणा सांगा की सेना ने मुग़लों को कठिनाई में डाला। हालांकि, इस युद्ध में कोई साफ विजय प्राप्त नहीं हुई और बाबर की मृत्यु के बाद इसके बाद आगे के घटनाक्रम में सुल्तान इब्राहीम लोदी और राणा सांगा के बीच समझौता हुआ।

राणा सांगा की हार के पीछे कई कारण थे:

  1. युद्ध-योजना की कमी: राणा सांगा की सेना ने बाबर के सामने टिकने में कठिनाई उत्पन्न की, क्योंकि उनके पास बाबर की तरह उपयुक्त युद्ध-योजना नहीं थी। बाबर ने रणक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए तैयारियों में सुधार किया और अच्छी योजना बनाई थी।

  2. तकनीकी और रणनीतिक कमी: राणा सांगा ने तोपख़ाने और अन्य तकनीकी सुधार की कमी में बड़ी ग़लती की, जिससे बाबर को उनके खिलवार को साहसी रूप से निरस्त करने में सफलता मिली।

  3. विदेशी युद्ध-तंत्रों का न अपनाना: राणा सांगा ने न तो अपनी सेना को उम्दा अस्त्र-शस्त्र दिए और न ही विदेशों में आए नए युद्ध-तंत्रों का उपयोग किया। इसके कारण उनकी सेना तकनीकी दृष्टि से कमजोर थी।

  4. विजय की चाह का अभाव: राणा सांगा ने बाबर को राजस्थान पर आक्रमण करने से रोकने के लिए योजना नहीं बनाई, जिससे बाबर ने राजस्थान को आसानी से जीत लिया।

इससे साफ होता है कि युद्ध में सिर्फ शौर्य से ही काम नहीं चलता, बल्कि शस्त्र-शस्त्र, योजना, और तकनीकी दृष्टि भी महत्वपूर्ण होती हैं।

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