आरएसएस और भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति का प्रतीक

यह ब्लॉग कांग्रेस के झंडे पर भगवा रंग के प्रयोग और इसके ऐतिहासिक महत्व पर केंद्रित है। 1931 में कांग्रेस ने अपने झंडे में भगवा रंग को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय संस्कृति का प्रतीक बना। इस ब्लॉग में भारतीय राजनीति, संस्कृति, RSS, और प्रमुख ऐतिहासिक योद्धाओं जैसे शिवाजी, महाराणा प्रताप, और राणा सांगा के योगदान पर भी चर्चा की गई है। साथ ही, भगवा रंग के महत्व और इसके राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रतिष्ठित होने की कहानी भी बताई गई है। आरएसएस और भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति का प्रतीक, RSS and saffron flag are symbol of Indian culture,

Apr 16, 2025 - 09:52
Apr 16, 2025 - 09:59
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आरएसएस और भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति का प्रतीक

आरएसएस और भगवा ध्वज: भारतीय संस्कृति का प्रतीक

भारतीय सनातन परंपरा में भगवा ध्वज का एक अद्वितीय स्थान है। यह सिर्फ एक रंगीन झंडा नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, धार्मिकता, और राष्ट्रवाद का प्रतीक बन चुका है। विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इसे न केवल सम्मानित किया है, बल्कि इसे गुरु के रूप में अपनाया है। इस ध्वज के साथ भारतीय इतिहास की गहरी नातेदारी है, और यह भारतीय समाज की विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है।

भगवा ध्वज का इतिहास

भगवा ध्वज का इतिहास प्राचीन भारत से जुड़ा हुआ है। यह झंडा भारत की सनातन परंपराओं और संस्कृति का प्रतीक रहा है। समय के साथ यह राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में उभरा है। एक समय था जब भगवा ध्वज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भी हिस्सा था। लेकिन यह सिर्फ एक राजनीतिक प्रतीक नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे भारतीय समाज की गहरी जड़ों से जोड़ा जा सकता है।

आरएसएस और भगवा ध्वज का संबंध

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में हुई थी। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इस ध्वज को संघ का सर्वोच्च प्रतीक माना और इसे आदर्शों और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाया। संघ ने भगवा ध्वज को गुरु के रूप में सम्मानित किया है और इस ध्वज को पूरे संघ के कार्यों और उद्देश्यों का मुख्य केंद्र बिंदु बना दिया है।

आरएसएस के अनुसार, भगवा ध्वज न केवल एक राष्ट्रीय ध्वज है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और वैचारिक राष्ट्रवाद का प्रतीक भी है। यह ध्वज संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बन गया है। विशेष रूप से गुरु पूर्णिमा के दिन, संघ में भगवा ध्वज की पूजा होती है, जो भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करती है।

क्यों भगवा ध्वज को गुरु माना जाता है?

आरएसएस के अनुसार, भगवा ध्वज के साथ तीन प्रमुख कारण जुड़े हुए हैं, जिनकी वजह से इसे गुरु के रूप में माना जाता है:

  1. ऐतिहासिकता: भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ है और इसकी ऐतिहासिक धारा भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में मौजूद रही है।

  2. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: भगवा ध्वज में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा है, जो भारतीयता के मूल्यों और परंपराओं को प्रोत्साहित करती है। संघ के अनुसार, यह ध्वज भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक संघर्षों का प्रतीक है।

  3. विचारधारा का महत्व: संघ के नेतृत्व में यह समझी गई है कि भगवा ध्वज न केवल एक व्यक्ति का आदर्श है, बल्कि यह विचारधारा का प्रतीक है। संघ का मानना है कि यदि आदर्शों की बात करें, तो रामभक्त भगवान हनुमान और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का अनुसरण किया जाता है।

भगवा ध्वज का रंग और उसका महत्व

भगवा रंग का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह रंग ज्ञान, समृद्धि और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इसके साथ ही यह रंग क्रोध पर नियंत्रण और मानसिक शांति की ओर मार्गदर्शन करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवा रंग बृहस्पति ग्रह का प्रतीक है, जो ज्ञान और उच्च विचारों का कारक माना जाता है।

संघ के विचारक और नेता एचवी शेषाद्रि ने अपनी पुस्तक 'आरएसएस: ए विजन इन एक्शन' में इस बात पर जोर दिया है कि भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति और परंपरा का अटूट प्रतीक है। जब डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना की, तब से ही उन्होंने इसे राष्ट्रीय आदर्शों का सर्वोच्च प्रतीक माना और इसे आदर्श गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया।

गुरु दक्षिणा और संघ की परंपरा

आरएसएस के भीतर गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो हर वर्ष गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गुरु के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करना है। इसमें स्वयंसेवक धन की बजाय अपनी शक्ति और ऊर्जा के साथ गुरु की सेवा करते हैं। इस परंपरा के माध्यम से संघ ने यह सिद्ध किया कि भगवा ध्वज ही उनका गुरु है और वह इसे श्रद्धा और सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं।

भगवा ध्वज का महत्व केवल एक राजनीतिक प्रतीक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रवाद का अभिन्न हिस्सा है। आरएसएस ने इसे गुरु के रूप में अपनाकर भारतीय समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि आदर्श और विचारधारा ही किसी संगठन की शक्ति होती है, न कि किसी एक व्यक्ति का व्यक्तित्व। यह ध्वज न केवल एक संस्था के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का प्रतीक है।

गजनवी-गोरी के खिलाफ युद्ध में भगवा ध्वज का महत्व

भारत के इतिहास में महमूद गजनवी और मुहम्मद गोरी जैसे विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ किए गए युद्धों में भगवा ध्वज की महत्ता न केवल संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरी, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आस्था का भी एक अभिन्न हिस्सा बना। भगवा रंग की अपनी एक विशिष्ट महत्ता है, जो प्रकृति और आस्थाओं से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है।

भगवा ध्वज और प्रकृति का संबंध

भगवा रंग सूर्यास्त और सूर्योदय के समय प्रकृति की लालिमा से मिलता-जुलता है, जो नकारात्मक तत्वों को नष्ट करने का प्रतीक माना जाता है। रामायण में जब भगवान राम ने रावण के खिलाफ युद्ध किया, तो उन्होंने अपने कुल वंश रघुवंश की ध्वजा के नीचे यह युद्ध लड़ा। इस ध्वज पर तीन त्रिज्याएं अंकित थीं, जो अग्नि की ज्वालाओं जैसी प्रतीत होती थीं, और इसमें सूर्य की छवि भी अंकित थी, जो शक्ति और विजय का प्रतीक थी।

महाभारत और अर्जुन की ध्वजा

महाभारत काल में भी ध्वज का अत्यधिक महत्व था। अर्जुन के रथ पर एक कपि-ध्वजा फहराती थी, जिसमें भगवान हनुमान की छवि अंकित थी। अर्जुन युद्धभूमि में जाते समय पहले अपने रथ की परिक्रमा करते थे और फिर अपनी ध्वजा फहराते थे, जो जीत के प्रतीक के रूप में कार्य करती थी। यह प्रतीक न केवल विजय का प्रतीक था, बल्कि ध्वज के नीचे लड़ा गया युद्ध भी धर्म और सत्य की ओर से लड़ा गया संघर्ष था।

महाराणा प्रताप और भगवा ध्वज

महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हल्दी घाटी के युद्ध में भगवा ध्वज का उपयोग किया। यह ध्वज भारतीय वीरता और स्वतंत्रता की अद्वितीय पहचान बन गया। राजस्थान की विभिन्न रियासतों में भी भगवा ध्वज का प्रचलन था। बीकानेर की रियासत का ध्वज भगवा और लाल रंग का था, जिसमें बाज की आकृति अंकित थी। जोधपुर रियासत का ध्वज पंचरंग था, जिसमें भगवा रंग के अलावा अन्य रंगों का भी समावेश था, जो विविधता और एकता का प्रतीक था।

झांसी की रानी और भगवा ध्वज

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपने संघर्ष में भगवा ध्वज का इस्तेमाल किया था। ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने वीरता और साहस को प्रदर्शित करते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने इस ध्वज के नीचे अपनी सेना का नेतृत्व किया। यह ध्वज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन चुका था।

ब्रिटिश भारत में भगवा ध्वज का प्रवेश

ब्रिटिश भारत में भगवा ध्वज का एक नया रूप सामने आया जब सिस्टर निवेदिता ने 1905 में इस ध्वज को डिजाइन किया। उन्होंने इसे स्वदेशी आंदोलन के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। सिस्टर निवेदिता का ध्वज लाल और पीला रंग का था, जिसमें इंद्र देवता का शस्त्र वज्र अंकित था। इस ध्वज को 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में फहराया गया, और यह भारतीय राष्ट्रीयता के प्रतीक के रूप में उभरा।

भारत के इतिहास में भगवा ध्वज न केवल युद्ध और संघर्ष का प्रतीक रहा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आस्था का भी अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह ध्वज शक्ति, विजय, और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, जिसे हमारे स्वतंत्रता संग्राम और धार्मिक संघर्षों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारतीय ध्वज के प्रति यह सम्मान और गर्व आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करता रहेगा। 

कांग्रेस के झंडे पर भगवा का प्रयोग: इतिहास और महत्व

भारतीय राजनीति और संस्कृति में झंडे का विशेष स्थान है, और इसका प्रयोग हर समय नए अर्थों और संदर्भों के साथ जुड़ा रहा है। एक समय था जब कांग्रेस पार्टी के झंडे में भगवा रंग का भी प्रयोग हुआ, जिसे आज के समय में एक महत्वपूर्ण इतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह प्रयोग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 1931 में प्रस्तावित किया गया था, और इसके बाद से भगवा रंग को भारतीय संघर्ष और पहचान के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया गया।

कांग्रेस का झंडा और भगवा का योगदान

1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कराची में हुई बैठक के दौरान, एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया था। बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि एक समिति बनाई जाए जो झंडे के रंगों और उनके महत्व पर विचार करेगी। इस समिति का उद्देश्य था, देश के राष्ट्रीय झंडे को एक नया रूप देना और इसे भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़ना। समिति ने एकमत से यह राय दी कि यदि कोई एक रंग है जो सभी भारतीयों में स्वीकृत हो और जो देश की प्राचीन सनातन परंपरा से मेल खाता हो, तो वह रंग भगवा यानी केसरिया हो सकता है।

इस सुझाव के बाद, कांग्रेस के झंडे में भगवा रंग को स्थान दिया गया। यह निर्णय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है, क्योंकि भगवा रंग ने भारतीय संस्कृति, हिंदुत्व और स्वतंत्रता के संघर्ष को एक प्रतीक के रूप में सम्मानित किया।

भगवा रंग का सांस्कृतिक महत्व

भगवा रंग का भारतीय इतिहास में गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रहा है। यह रंग सद्भाव, त्याग और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से यह रंग हिंदू धर्म, विशेष रूप से सिखों और राजपूतों के युद्ध ध्वजों का हिस्सा रहा है। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने जब हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपनी सेना का नेतृत्व किया, तब उन्होंने भगवा रंग के ध्वज का प्रयोग किया था। इसके अलावा, महाराणा प्रताप, राणा सांगा और छत्रपति शिवाजी जैसे महान योद्धाओं ने भी भगवा ध्वज के तहत मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों से संघर्ष किया था।

यह रंग स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में भी उभरा। भारतीय मजदूर संघ द्वारा मार्च 1981 में आयोजित एक विशाल जुलूस में भगवा झंडा लहराया गया, जिसे साम्यवादी प्रभाववाले कलकत्ता की सड़कों पर देखा गया। यह दृश्य मजदूरों में एक नई ताकत और चेतना का प्रतीक बना।

संघ और भगवा ध्वज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का भी भगवा ध्वज से गहरा संबंध रहा है। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने 1931 में कांग्रेस के पूर्ण स्वतंत्रता के प्रस्ताव का समर्थन किया और संघ ने हमेशा स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया। संघ ने भगवा ध्वज को राष्ट्र के लिए गौरव का प्रतीक माना। 1958 में संघ के कार्यवाह नारायण हरि पालकर द्वारा लिखी गई 'भगवा ध्वज' पुस्तक में इस ध्वज का ऐतिहासिक महत्व विस्तार से बताया गया है।

आज के संदर्भ में भगवा का प्रयोग

आज के समय में भी भगवा ध्वज भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन चुका है। यह भारतीय संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम और हिंदुत्व की पहचान के रूप में देखा जाता है। संघ का नया मुख्यालय 'केशव कुंज' दिल्ली में स्थापित हुआ है, जिसमें हनुमान जी की मूर्ति और स्वास्तिक चिन्ह स्थापित किए गए हैं, जो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं।

कांग्रेस के झंडे पर भगवा रंग का प्रयोग भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के प्रतीकात्मक महत्व को और गहरा करता है। यह रंग स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व के सम्मान का प्रतीक बन चुका है। भगवा रंग का उपयोग न केवल भारतीय राजनीति में बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक धारा में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह हमें हमारे इतिहास, संघर्ष और सांस्कृतिक पहचान की याद दिलाता है।

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