सात फेरों के बिना हिंदू विवाह मान्य नहीं
हिंदू विवाह एक पवित्र संस्कार है और इसे भारतीय समाज में मूल्यवान संस्था का दर्जा प्राप्त है वीजा आवेदन के लिए शादी होने से पहले शादी का पंजीकरण प्रमाणपत्र हासिल करने की कोर्ट ने की निंदा
सात फेरों के बिना हिंदू विवाह मान्य नहीं
कहा, हिंदू विवाह एक पवित्र संस्कार है और इसे भारतीय समाज में मूल्यवान संस्था का दर्जा प्राप्त है
वीजा आवेदन के लिए शादी होने से पहले शादी का पंजीकरण प्रमाणपत्र हासिल करने की कोर्ट ने की निंदा
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ किया है कि हिंदू विवाह में अग्नि के सात फेरे जरूरी हैं। वैध रस्मों को पूरा किए बिना किसी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती है। जहां विवाह सात फेरे जैसे रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो, उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह एक पवित्र संस्कार है और इसे भारतीय समाज में मूल्यवान संस्था का दर्जा प्राप्त है।
कोर्ट ने कहा कि विवाह नाच-गाना, खाना-पीना या लेनदेन का अवसर नहीं है। न ही शादी कोई व्यापारिक व्यवहार है। यह मूलभूत समारोह है, जिसमें पुरुष और स्त्री के बीच रिश्ता स्थापित होता है और उन्हें पति-पत्नी का दर्जा मिलता है। इसके साथ ही कोर्ट ने विदेश प्रवास और वीजा आवेदन के लिए शादी संपन्न होने से पहले शादी का पंजीकरण प्रमाणपत्र हासिल करने के चलन की निंदा की है। कोर्ट ने ऐसा करने वालों को परिणाम के प्रति आगाह किया है। कहा है कि अगर बाद में किसी कारणवश शादी नहीं हो पाई तो क्या होगा।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने हाल ही में पारित अपने आदेश में युवक युवतियों से आग्रह किया कि वे विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले ही इसके बारे में गहराई से विचार करें, क्योंकि भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है। पीठ ने दो प्रशिक्षित वाणिज्यिक पायलटों के मामले में अपने आदेश में यह टिप्पणी की। दोनों पायलटों ने वैध रस्मों से विवाह किए बिना ही तलाक के लिए मंजूरी मांगी थी।
पीठ ने कहा, शादी नाचने-गाने और खाने-पीने का आयोजन या अनुचित दबाव डालकर दहेज और उपहारों की मांग करने का अवसर नहीं है, जिसके बाद आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकती है। यह एक पवित्र बंधन है, जो एक पुरुष और महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए होता है। इसके जरिये पुरुष और महिला पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं, जो भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है। पीठ ने शादी को पवित्र बताया, क्योंकि यह दो लोगों को आजीवन, गरिमापूर्ण, समान, सहमतिपूर्ण और स्वस्थ मिलन प्रदान करती है।
हिंदू विवाह परिवार की इकाई को मजबूत करता है और विभिन्न समुदायों के भीतर भाईचारे की भावना को मजबूत करता है। पीठ ने कहा, हम उन युवा पुरुषों और महिलाओं के चलन की निंदा करते हैं जो (हिंदू विवाह) अधिनियम के प्रविधानों के तहत वैध विवाह समारोह के अभाव में एक-दूसरे के लिए पति और पत्नी होने का दर्जा हासिल करना चाहते हैं और इसलिए कथित तौर पर शादी कर रहे हैं।
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