लोकसभा उपाध्यक्ष पद की संवैधानिक व्यवस्था
16वीं लोकसभा (2014-19) में भाजपा नीत गठबंधन (राजग) के घटक दल अन्नाद्रमुक के एम थंबी दुरई उपाध्यक्ष थे, जबकि 17वीं लोकसभा (2019- 24) में तो उपाध्यक्ष कोई था ही नहीं।
लोकसभा उपाध्यक्ष पद की संवैधानिक व्यवस्था
18वीं लोकसभा के लिए बुधवार को अध्यक्ष (स्पीकर) का चुनाव विपक्ष की शुरुआती असहमति के बावजूद ध्वनिमत से हो गया। सत्ता पक्ष के उम्मीदवार ओम बिरला लगातार दूसरी बार स्पीकर बने हैं। विपक्ष को इस पद के लिए सत्ता पक्ष के किसी उम्मीदवार के नाम पर विरोध नहीं था, पर वह आम सहमति के लिए यह आश्वस्ति जरूर चाहता था कि उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) का पद उसे मिले। वैसे अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि उपाध्यक्ष का पद सत्ता पक्ष अपने पास ही रखेगा या फिर विपक्ष को देगा।
विपक्ष का कहना है कि संसदीय परंपराओं के मुताबिक उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को मिलता रहा है, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि कई बार उपाध्यक्ष का पद भी सत्ता पक्ष के पास रहा है। ऐसी कोई संवैधानिक व्यवस्था भी नहीं है कि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद किसे मिलना चाहिए। 16वीं लोकसभा (2014-19) में भाजपा नीत गठबंधन (राजग) के घटक दल अन्नाद्रमुक के एम थंबी दुरई उपाध्यक्ष थे, जबकि 17वीं लोकसभा (2019- 24) में तो उपाध्यक्ष कोई था ही नहीं।
संविधान का अनुच्छेद 95 (1) कहता है कि अध्यक्ष की अनुपस्थिति या यह पद रिक्त होने की स्थिति में उपाध्यक्ष उसके कर्तव्यों का निर्वहन करेगा अनुच्छेद 93 के मुताबिक, लोकसभा 'जल्द से जल्द' अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करेगी, पर इसकी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। आमतौर पर अध्यक्ष का चुनाव नवनिर्वाचित सदस्यों के शपथ ग्रहण हो जाने के बाद अगले दिन हो जाता है। उपाध्यक्ष के लिए ऐसी कोई तय परंपरा या नियम नहीं है।
अब तक के लोकसभा उपाध्यक्ष
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