जामिया मिल्लिया में गैर मुस्लिमों से भेदभाव का दावा

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट काल आफ जस्टिस की रिपोर्ट में 27 छात्रों, फैकल्टी सदस्य व कर्मचारियों के बयान में मतांतरण के दबाव के भी तथ्य, पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा समेत छह सदस्यीय टीम की रिपोर्ट

Nov 15, 2024 - 19:36
Nov 15, 2024 - 19:36
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जामिया मिल्लिया में गैर मुस्लिमों से भेदभाव का दावा  

काल आफ जस्टिस ट्रस्ट ने अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में दिल्ली के प्रतिष्ठित जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआइ) में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और इस्लाम में मतांतरण के दबाव के गंभीर आरोप लगाए हैं। यह रिपोर्ट विख्यात शिक्षण संस्थान के गैरमुस्लिम फैकल्टी सदस्य, छात्रों व कर्मचारियों तथा पूर्व छात्रों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है। 65 पेज की रिपोर्ट जारी करने वाली फैक्ट फाइंडिंग टीम का नेतृत्व दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा कर रहे थे, जबकि छह सदस्यीय टीम में दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव भी शामिल थे। रिपोर्ट में 27 लोगों की गवाही है, जिसमें सात प्रोफेसर व फैकल्टी सदस्य, आठ-नौ कर्मचारी, 10 छात्र व कुछ पूर्व छात्र हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कमोबेश सभी  ने जामिया मिल्लिया में धार्मिक आधार पर भेदभाव और गैर मुसलमान लोगों के प्रति पूर्वाग्रह की बात कही है।


रिपोर्ट को तैयार करने और गवाही में अगस्त से अक्टूबर तक तीन माह का वक्त लगा। इस रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई के लिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंपा गया है। एसएन ढींगरा ने बताया कि इसी वर्ष अगस्त में जामिया मिल्लिया के एक कर्मचारी राम निवास के  समर्थन में अनुसूचित जाति और वाल्मीकि समाज के सदस्यों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर गैर-मुस्लिम होने के कारण जामिया में परेशान करने और भेदभाव का आरोप लगाया था। इसके पूर्व भी काल आफ जस्टिस को जामिया में गैर-मुसलमानों के उत्पीड़न, मतांतरण और गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव के संबंध में कई अन्य लोगों से मौखिक और लिखित शिकायतें मिली थीं। इनकी प्रारंभिक जांच के बाद आरोपों की विस्तृत जांच के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के गठन का निर्णय लिया गया।


रिपोर्ट के अनुसार एक गैरमुस्लिम महिला सहायक प्रोफेसर ने कहा कि उन्होंने शुरू से ही पूर्वाग्रह महसूस किया था और मुस्लिम कर्मचारी गैरमुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार और भेदभाव करते थे। प्रोफेसर के अनुसार जब उन्होंने पीएचडी थीसिस प्रस्तुत किया तो पीएचडी अनुभाग के मुस्लिम क्लर्क ने अपमानजनक टिप्पणियां कीं और कहा कि वह कुछ भी हासिल करने में सक्षम नहीं होंगी। एक अन्य गैर-मुस्लिम फैकल्टी सदस्य ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि उनके गैर-मुस्लिम होने के कारण उनके साथ अन्य मुस्लिम सहयोगियों को दी जाने वाली सुविधाएं जैसे बैठने की जगह, केबिन व फर्नीचर आदि के मामले में भेदभाव किया गया। अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले फैकल्टी सदस्य ने बताया कि बाद में उन्हें कार्य अनुसार केबिन आवंटित करने पर परीक्षा शाखा के कर्मचारियों ने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करना शुरू कर दिया कि कैसे एक 'काफिर' को केबिन दे दिया गया। एससी जाति के एक पूर्व छात्र ने बताया कि कैसे एमडी पूरा करने के लिए एक शिक्षक ने कक्षा में घोषणा की कि जब तक वह इस्लाम का पालन नहीं करता, उसकी एमडी पूरा नहीं होगी। ऐसे छात्रों का उदाहरण रखा गया जिन्होंने मतांतरण कर लिया था और उनके साथ अच्छा व्यवहार होने लगा।

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