छत्रपति संभाजी महाराज – पराक्रम और प्रेरणा का प्रतीक

छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती पर जानिए उनके साहस, धर्मरक्षा और बलिदान की प्रेरक गाथा। एक महान मराठा योद्धा को श्रद्धांजलि। On Chhatrapati Sambhaji Maharaj Jayanti, read about his bravery, sacrifice, and dedication to Dharma. A true Maratha warrior remembered forever.

May 14, 2025 - 08:13
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छत्रपति संभाजी महाराज – पराक्रम और प्रेरणा का प्रतीक
छत्रपति संभाजी महाराज – पराक्रम और प्रेरणा का प्रतीक

छत्रपति संभाजी महाराज – पराक्रम और प्रेरणा का प्रतीक

संभाजी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय

 छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज और महारानी साईबाई के सुपुत्र के रूप में पुरंदर किले (महाराष्ट्र) में हुआ था शिवाजी महाराज के देहांत के बाद जनवरी 1681 में संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य की गद्दी पर बैठेवे एक प्रतिभाशाली विद्वान भी थे; संस्कृत में उनकी रचना बुधभूषण प्रसिद्ध हैउनके शासन का काल बहुत छोटा (1681–1689) रहा, लेकिन इस अवधि में उन्होंने प्रजा-कल्याण के अनेक कार्य किये और स्वराज की रक्षा के लिए अथक प्रयास किये। अंततः 11 मार्च 1689 को औरंगज़ेब की सेनाओं ने उन्हें क्रूर यातनाओं के बाद कैद करके दण्डित कर फांसी पर चढ़ा दिया, जिससे संभाजी महाराज शहीद का गौरववान दर्जा प्राप्त हुए

उनके शौर्य और युद्ध कौशल का वर्णन

संभाजी महाराज का पराक्रम बाल्यकाल से ही परखा गया था। मात्र 16 वर्ष की आयु में उन्होंने रामनगर की लड़ाई में विजय प्राप्त की इसके बाद 1675–76 में उनके नेतृत्व में मराठा सेना ने गोवा और कर्नाटक क्षेत्रों में भी सफल अभियान चलाकर दुश्मनों को चित कर दिया इन युद्ध अभियानों में संभाजी महाराज की रणनीतिक सूझबूझ और अदम्य साहस की छाप स्पष्ट झलकती है। मराठा नौसेना के सुदृढ़ीकरण और पुर्तगालियों तथा अन्य आक्रमणकारियों के साथ टकराव में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संकट के समय उनकी बहादुरी ने मराठा साम्राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा और स्वराज को भी मज़बूती दी।

धर्मरक्षा के लिए संघर्ष और बलिदान की गाथा

धर्म की रक्षा के लिए संभाजी महाराज के त्याग और संघर्ष को लेकर वे ‘धर्मवीर’ के नाम से विख्यात हैं उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा को अपने कर्तव्यों में सर्वोपरि रखा। मुगल अत्याचारों के सामने भी संभाजी महाराज ने अपना धर्म नहीं छोड़ा; वे लगातार अपने प्रजा को धर्म की राह पर बनाए रखने का प्रयास करते रहे। पराधीनता और अन्याय के विरुद्ध उनकी लड़ाई केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने धर्मान्तरित हिंदुओं को पुनः धर्म में स्वीकार करके सामाजिक पुनरुद्धार में भी योगदान दिया। उनके अटूट विश्वास और त्याग की प्रेरणा आज भी लाखों हिन्दुओं के लिए मार्गदर्शक है।

औरंगज़ेब के विरुद्ध संघर्ष और वीरगति

औरंगज़ेब के क्रूर शासन के विरुद्ध संभाजी महाराज का संघर्ष अभूतपूर्व था। उन्होंने लगातार मुग़ल सेनाओं को चुनौती दी और मराठा प्रतिरोध को मज़बूती प्रदान की अंततः फरवरी 1689 में उन्हें धोखे से पकड़ लिया गया। जब उन्होंने औरंगज़ेब की मांगों को अस्वीकार कर दिया और अपने देवी-देवताओं की स्तुति करते हुए अपने धर्म की रक्षा की, तब औरंगज़ेब ने उन्हें अकल्पनीय यातनाएँ दीं संभाजी महाराज ने इन यातनाओं के सामने धैर्य नहीं खोया और 11 मार्च 1689 को केवल वीरता से बलिदान को प्राप्त हुए, बल्कि हिंदू धर्म की रक्षा हेतु सर्वोच्च शहादत भी दी। उनकी वीरगति ने इतिहास में धर्म-रक्षा के अमर आदर्श स्थापित किये और उन्हें अटल साहस बलिदान का प्रतीक बना दिया

भारत के इतिहास में स्थान और समकालीन स्मरण

सम्भाजी महाराज को भारतीय इतिहास में स्वाधीनता संघर्ष के अग्रदूतों में गिना जाता है। मराठा विरासत के इस महान शूरवीर की गाथाएँ आधुनिक काल में भी जीवंत हैं। हाल ही में उनकी बहादुरी पर आधारित हिंदी ऐतिहासिक फिल्म छावा” प्रदर्शित हुई, जिसने संभाजी महाराज की महत्वपूर्ण भूमिका और आदर्शों को देशवासियों के सामने उजागर किया हर वर्ष 14 मई को उनकी जयंती पर देशभर में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं। उदाहरणस्वरूप, 2025 में राजस्थान के राज्यपाल ने जयपुर में आयोजित समारोह में संभाजी महाराज को नमन किया और उनके अद्वितीय पराक्रम धर्मनिष्ठा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनके साहस की गाथा हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी

श्रद्धांजलि और प्रेरणादायक संदेश

हम छत्रपति संभाजी महाराज के अदम्य साहस और धर्मनिष्ठा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके पराक्रम, त्याग और निश्चय की जो गाथा है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का भंडार है। अत्याचार के सामने और कठिन से कठिन चुनौतियों में भी उन्होंने अपने सिद्धांतों का त्याग नहीं किया, जो हमें सिखाता है कि धर्म और कर्तव्य की रक्षा के लिए संकल्पित रहना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि हम उनके आदर्शों का अनुसरण करके अपने जीवन में निष्ठा और साहस की मिसाल कायम करें। छत्रपति संभाजी महाराज की वीरगाथा और बलिदान अमर रहे!

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