2000 नावें, 10 हजार नाविक और 3 महीने काम बंद… काशी के मल्लाह खाने को मोहताज, उधार लेकर चला रहे घर

काशी में इस समय गंगा उफान पर हैं. वाराणसी जिला प्रशासन ने नावों का संचालन बंद करा दिया है. ऐसे में करीब 10 हजार नाविकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. नाविकों का कहना है कि ये स्थिति 15 सितंबर तक रहेगी, तब तक हमारा घर परिवार उधार के पैसों से चलेगा. नाविकों के इसी दर्द को लेकर पढ़ें टीवी9 डिजिटल की ये खास रिपोर्ट.

Jul 25, 2025 - 19:48
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2000 नावें, 10 हजार नाविक और 3 महीने काम बंद… काशी के मल्लाह खाने को मोहताज, उधार लेकर चला रहे घर
2000 नावें, 10 हजार नाविक और 3 महीने काम बंद… काशी के मल्लाह खाने को मोहताज, उधार लेकर चला रहे घर

“2018 में पत्नी की सिकड़ी और अंगूठी बेचकर कर्जा लिया था. अब तक ब्याज चुका रहा हूं. अब लगता है कि फिर से उधार लेना पड़ेगा”… ये कहना है 42 साल के राजू साहनी का. इनकी एक छोटी सी नाव है, जो वाराणसी के दशास्वमेध घाट पर बंधी हुई है. गंगा काशी में फिलहाल 68 मीटर के ऊपर बह रही है और बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं. प्रशासन ने नावों के संचालन पर पूरी तरह से रोक लगा रखा है. राजू साहनी के लिए रोजमर्रा का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है. राजू कहते हैं कि बच्चों की फीस, दवा के पैसे और सुबह-शाम की सब्जी का खर्च कैसे चले? ये सब सोचकर उनका दिमाग काम करना बंद कर देता है.

ये अकेले राजू साहनी की कहानी नहीं है. मांझी समाज के ऐसे 10 हजार नाविक हैं, जो ऐसे ही संकट से गुजर रहे हैं. राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक 84 घाटों के किनारे करीब 10 हजार नाविक हैं, जिनका परिवार नावों के चलने पर निर्भर है. अगर नावें बंद तो इनकी आमदनी भी बंद. निषाद समाज के सबसे बड़े संगठन ‘मां गंगा निषादराज सेवा न्यास’ के अध्यक्ष प्रमोद मांझी बताते हैं कि नगर निगम में कुल 1,220 नावों का रजिस्ट्रेशन है, जबकि दो हजार से अधिक नावें अस्सी से राजघाट के बीच चलती हैं.

किसानों को मुआवजा मिलता है, पर हमें नहीं

एक-एक नाव पर कई लोग मिलकर शिफ्ट में काम करते हैं. मोटे तौर पर 10 हजार के करीब नाविक गंगा पर निर्भर हैं. प्रमोद मांझी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जब बाढ़ से फसल की बर्बादी पर किसानों को मुआवजा मिलता है तो ये नियम हम पर भी लागू क्यों नहीं है? सरकार निषाद वोट बैंक के लिए तो हमें गंगा पुत्र बताती है, लेकिन सरकार ने कभी ये सोचा कि गंगा पुत्रों को उधार की जिंदगी क्यों जीनी पड़ रही है?

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योगी सरकार में मत्स्य विभाग के मंत्री और निषाद समाज के सबसे बड़े नेता डॉ. संजय निषाद से बातचीत…

सवाल: वाराणसी के नाविक ये मांग कर रहे हैं कि मध्य जुलाई से मध्य सितंबर के बीच बाढ़ के हालात की वजह से जब नावों का संचालन ठप रहता है, तब नाविकों के लिए घर चलाना मुश्किल हो जाता है. आपकी सरकार यदि किसानों को फसल की बर्बादी पर मुआवजा देती है तो ऐसे ही आर्थिक मदद नाविकों की क्यों नही होती, आपका विभाग क्या कर रहा है?

जवाब: इस सवाल पर डॉ. संजय निषाद ने जवाब दिया कि दो महीने न तो नावें चलती हैं और न ही मछलियों की बिक्री ही होती है, क्योंकि ये समय मछलियों के ब्रीडिंग का है. मछलियां अंडा देती हैं. हमारा विभाग ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ के तहत प्रत्येक नाविक और मल्लाह को दो-दो हजार की आर्थिक मदद देना शुरू किया है. ये पहली बार है कि दो महीने के लिए सरकार मुआवजा दे रही है. जो भी नाविक या मल्लाह हैं, फॉर्म भरे और पैसे ले जाएं.

वहीं टीवी9 डिजिटल की टीम ने जब नाविकों से मंत्री डॉ. संजय निषाद के जवाब के बाबत सवाल किया तो नाविकों ने कहा कि मंत्री जी ऐसे लेमनचूस पहले भी देते आए हैं. न तो कोई कैंप लगाकर इस योजना के बारे में हम लोगों को बताया और न ही विभाग की ही तरफ से कोई यहां आया. मंत्री जी सर्किट हाउस से ही वापस लखनऊ चले जाते हैं. उनको हमारे दुखों से क्या लेना देना? वो समाज के 18% की ताकत दिखाकर दिल्ली में पॉलिटिकल बार्गेनिंग करते हैं और अपने परिवार के आगे समाज के लोगों को वो तुच्छ समझते हैं.

Dr Sanjay Nishad

संजय निषाद समाज को धोखा दे रहे- प्रमोद मांझी

‘मां गंगा निषादराज सेवा न्यास’ के अध्यक्ष प्रमोद मांझी कहते हैं कि एससी रिजर्वेशन पर मत्री डॉ. संजय निषाद पिछले कई सालों से समाज को धोखा दे रहे हैं और उनसे हमें कोई उम्मीद भी नहीं है. अब ये दो महीने का मुआवजा का भी ड्रामा ही कर रहे हैं. डॉ. संजय निषाद समाज की ताकत पर कैबिनेट मंत्री बन गए हैं, नहीं तो ये पार्षद लायक भी नहीं हैं.

90 प्रतिशत नाविकों की महीने की कमाई 10 हजार

वहीं दशास्वमेध घाट पर नाव चलाने वाले शंभू मांझी कहते हैं कि मां गंगा अपने बेटों को सैकड़ों साल से पालते आई हैं. आज भी 10 हजार से ज्यादा छोटे-बड़े नाव चलाने वाले हैं. मांझी समाज के तीन लाख लोगों का पेट गंगा से ही भरता है. सबको कुछ न कुछ मिल ही जाता है. 10 हजार से लेकर डेढ़ दो लाख रुपए तक कमाने वाले नाविक भी हैं, लेकिन 10-12 हजार महीना कमाने वाले नाविकों की संख्या 90% है. सरकार और दूसरे लोगों को लगता है कि मांझी समाज के लोग खूब कमा रहे हैं.

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हमारी नावें बंद, पर गंगा में क्रूज चल रहे

नाविकों को गंगा से खूब कमाई हो रही है. सरकार ने क्रूज चलवाना शुरू कर दिया. क्रूज नाविकों के लिए एक बड़ी मुसीबत है. जब हमारी नावें बंद पड़ी हैं, तब भी क्रूज चल रहा है. वहीं शिवाला घाट पर नाव चलाने वाले बसंत साहनी की उम्र 36 साल है. चार बेटियों के पिता हैं. सबसे बड़ी बेटी पांचवी में पढ़ती है, जबकि दूसरे नंबर वाली बेटी तीसरे में. बाकी दो बेटियां घर पर ही रहती हैं. दोनों बेटियों की फीस और घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए दो परसेंट ब्याज पर उन्होंने कर्जा लिया है. हमने उनसे पूछा कि बैंक से तो कम में ही मिल जाता तो दो टके ब्याज पर पैसा क्यों?

हमारे समाज में कुछ नहीं बदला, पिता-दादा ने भी इसी तरह कमाया-खाया

बसंत कहते हैं कि बैंक के झंझट में कौन पड़े. 50 तरह के कागज मांगते हैं. ये मांझी समाज की पुरानी रवायत है कि इन दो महीनों के खर्च के लिए आस-पड़ोस से पैसा उधार लेते हैं और बाद में कमा कर दे देते हैं. बसंत के भाई भी नाव चलाने का ही काम करते हैं. दोनों भाई मिलकर मां-बाप की देखभाल करते हैं. बसंत कहते हैं कि हमारे समाज में कुछ नहीं बदला. हमारे पिता केदार मांझी और मेरे दादा स्वर्गीय भोला मांझी भी इसी तरह से जिंदगी जिए हैं. हमारा समाज अभिशप्त है कि वो अपनी नाव ऐसे ही उधार की जिंदगी के भंवर से निकालता चले, लेकिन ये भंवर हैं कि खत्म होती ही नहीं.

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