हम सभी श्रद्धापूर्वक मातृभूमि की महिमा का गायन करें

अपनी भूमि हमें मातृभूमि लगनी चाहिए। उसका कण-कण हमें पवित्र लगना चाहिए। हमारी मातृभूमि, कोई मिट्टी का ढेर नहीं, वह जड़ या अचेतन नहीं, ऐसी हमारी भावना चाहिये। इस प्रकार की जिनकी भावना और श्रद्धा रहेगी, उनका ही ‘राष्ट्र’ बनेगा और वे ही राष्ट्रीय कहलाए जाएंगे, यह सत्य श्री गुरुजी ने बहुत स्पष्ट शब्दों में […] The post हम सभी श्रद्धापूर्वक मातृभूमि की महिमा का गायन करें appeared first on VSK Bharat.

Dec 4, 2025 - 09:06
 0
हम सभी श्रद्धापूर्वक मातृभूमि की महिमा का गायन करें

अपनी भूमि हमें मातृभूमि लगनी चाहिए। उसका कण-कण हमें पवित्र लगना चाहिए। हमारी मातृभूमि, कोई मिट्टी का ढेर नहीं, वह जड़ या अचेतन नहीं, ऐसी हमारी भावना चाहिये। इस प्रकार की जिनकी भावना और श्रद्धा रहेगी, उनका ही ‘राष्ट्र’ बनेगा और वे ही राष्ट्रीय कहलाए जाएंगे, यह सत्य श्री गुरुजी ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा है। श्री गुरुजी कहते हैं – ‘यह है हमारी पवित्र भूमि भारत, देवताओं ने जिसकी महत्ता के गीत गाए हैं –

गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।

स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते, भवन्ति भूयः पुरुशाः सुरत्वात्।

– यह भूमि जिसे महायोगी अरविन्द ने विश्व की दिव्य जननी के रूप में आविष्करण कर प्रत्यक्ष दर्शन किया – जगन्माता, आदिशक्ति, महामाया, महादुर्गा और जिसने मूर्तरूप साकार होकर उसके दर्शन पूजन का हमें अवसर प्रदान किया है।

– यह भूमि जिसकी स्तुति हमारे दार्शनिक कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ‘देवि भुवनमनमोहिनी….. नीलसिन्घुजलघौतचरणतल’ कह कर की है।

– यह भूमि जिसका वन्दन, स्वतन्त्रता के उद्घोषक कवि बंकिमचंद्र ने अपने अमर गीत ‘वन्दे मातरम्’ में किया है, जिसने सहस्रों युवा हृदयों को स्फूर्त कर स्वतन्त्रता हेतु आनन्दपूर्वक फाँसी के तख्ते पर चढ़ने की प्रेरणा दी – त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी।

– यह भूमि जिसकी पूजा हमारे सन्त महात्माओं ने मातृभूमि, धर्मभूमि, कर्मभूमि एवं पुण्यभूमि के रूप में की है, और यही वास्तव में देवभूमि और मोक्षभूमि है।

– यह भूमि, जो अनन्त काल से पावन भारत माता है, जिसका नाम मात्र हमारे हृदयों को शुद्ध, सात्विक भक्ति की लहरों से आपूर्ण कर देता है। अहो, यही तो हम सबकी माँ है – हमारी तेजस्विनी मातृभूमि।

इसका अर्थ यह नहीं कि 19वीं शती के बंकिमचंद्र या 20वीं शती के रवीन्द्रनाथ और अरविन्द के समय से यह भावना हमारे अन्दर आयी है। नहीं! यह बहुत प्राचीन भावना है।

अथर्ववेद में कहा गया है कि, ‘माता पृथिवी, पुत्रोऽहं पृथिव्याः’। यह वेदों की ही पंक्ति है कि पृथिव्यायै समुद्रपर्यन्ताया एकराष्ट्र’। हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले कहा है कि

‘उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।

वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।

महाकवि कालिदास ने कहा है —

अत्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।

पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः।।

चाणक्य का वचन है —

‘हिमवत्समुद्रान्तरम् उदीचीनं योजनसहस्रपरिमाणम्’ (समुद्र से उत्तर में हिमालय पर्यन्त इस देश की लम्बाई एक सहस्र योजन है)

समुद्र और हिमालय, ये अपनी मातृभूमि की सीमाओं के दो बिन्दु समाज मन में इतने पक्के प्रतिष्ठित हैं कि श्री गुरुजी के शब्दों में ‘हमारी जाति के एक महानतम व्यक्ति श्री रामचन्द्र जी थे, जिन्होंने इस जाति के चरित्र एवं संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी है। उनके महान् गुण यथा निराकुलता, उदारचित्तता, ज्ञान, गांभीर्य एवं अनुभूतियों की तुलना, समुद्र की अपरिमेय गहराई तथा शान्तता से और उनकी अदम्य शक्ति एवं धैर्य की तुलना महान और अजेय हिमालय से की गई है –

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्ये च हिमवानिव। (तत्रैव)

– यह उस भावना का आविष्करण है।

कुछ लोग, बौद्धिक तर्क देकर कहते हैं कि यह देश एक अचेतन, फैला हुआ जड़ भूखण्ड मात्र है। उनको उत्तर देते हुये श्री गुरुजी कहते हैं कि बौद्धिक तर्क की भी अपनी सीमाएँ होती हैं। उदाहरण के लिए मनुश्य शरीर भी भौतिक ही तो है। अपनी माता का शरीर भी उतना ही भौतिक है, जितना किसी अन्य स्त्री का, तब क्यों किसी व्यक्ति ने अपनी माँ को अन्य स्त्रियों से भिन्न समझना चाहिए। उसके लिए भक्ति क्यों होनी चाहिए?

इस भूमि को हम माता के रूप में देखते हैं, अतः ‘वन्दे मातरम्’ कहने में हमें गर्व का अनुभव होता है। जो ‘वन्दे मातरम्’’ का विरोध करते हैं, वे कैसे राष्ट्रीय बन सकते हैं?

श्री गुरुजी के शब्द हैं, ‘‘जब हम कहते हैं कि हम इस भूमि की सन्तान हैं तो हमें उसका उचित ज्ञान भी होना आवश्यक है। चाहे जिस किसी कारण से भी जो लोग केवल यहाँ रहते हैं, वे इस भूमि के पुत्र-पुत्रियाँ नहीं बन जाते। इसका एक बहुत स्पष्ट उदाहरण सामने आया है। इस प्रकार के उदाहरण उपस्थित हों, यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है। ‘वन्दे मातरम्’ गीत हम बड़े श्रद्धा से दोहराते हैं। इस विशिष्ट गीत के प्रति हम सबके अन्तःकरणों में आदर और सम्मान का भाव है। यह वही गीत है, जिसने अपने सभी नेताओं को मातृभूमि की सेवा और स्वतन्त्रता के लिए सर्वस्व त्याग करने की प्रेरणा दी। इस मन्त्र का घोष करते हुए कितने ही महापुरुष फाँसी के फन्दे पर झूल गए। हाथों में गीता लिए, कण्ठ में वन्दे मातरम् का गायन करते हुए, अनेकों ने आत्म बलिदान कर दिया। इन बलिदानों के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों को यहाँ से जाना पड़ा। हमें स्वराज्य प्राप्त हुआ और आज हम स्वतन्त्रता का उपभोग कर रहे हैं। किन्तु अपने देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें ‘वन्दे मातरम्’ पर आपत्ति है।’’

संक्षेप में, राष्ट्र के लिए यह पहली शर्त है कि लोग अपने देश को मातृभूमि मानकर उसका सम्मान और श्रद्धापूर्वक उसकी महिमा का गायन करें।

(श्री गुरुजी – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक)

The post हम सभी श्रद्धापूर्वक मातृभूमि की महिमा का गायन करें appeared first on VSK Bharat.

UP HAED सामचार हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें।