लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान बम से हमले की योजना बनाने वाले व्यक्ति को बरी करने का आदेश रद्द

चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में मदुरै में पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा (वर्ष 2011) के दौरान उन पर बम से हमले की योजना बनाने के आरोप में मोहम्मद हनीफा उर्फ ​​तेनकासी हनीफा को बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन और न्यायमूर्ति एल. विक्टोरिया गौरी की […] The post लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान बम से हमले की योजना बनाने वाले व्यक्ति को बरी करने का आदेश रद्द appeared first on VSK Bharat.

Oct 27, 2025 - 14:02
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लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान बम से हमले की योजना बनाने वाले व्यक्ति को बरी करने का आदेश रद्द

चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में मदुरै में पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा (वर्ष 2011) के दौरान उन पर बम से हमले की योजना बनाने के आरोप में मोहम्मद हनीफा उर्फ ​​तेनकासी हनीफा को बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन और न्यायमूर्ति एल. विक्टोरिया गौरी की खंडपीठ ने कहा कि यद्यपि ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को बरी करने के लिए कुछ विरोधाभासों की ओर इशारा किया। हालांकि, ये विरोधाभास अभियोजन पक्ष के मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं थे। ये विरोधाभास केवल मामूली थे।

न्यायालय ने कहा कि – “मामले में प्रतिवादी के वकील और ट्रायल कोर्ट ने कुछ विरोधाभासों और विसंगतियों की ओर इशारा किया था। फिर भी संपूर्ण अभिलेखों, मौखिक और दस्तावेज़ी साक्ष्यों, विशेषकर प्रतिवादी के पूर्ववृत्त का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर यह पाते हैं कि प्रतिवादी के वकील द्वारा बताए गए विरोधाभास, अभियोजन पक्ष के मामले की जड़ तक पहुंचने वाले विरोधाभास नहीं हैं। बताए गए विरोधाभास न केवल मामूली विरोधाभास हैं, बल्कि महत्वहीन विरोधाभास भी हैं, जो अभियोजन पक्ष के मामले की जड़ तक नहीं पहुंचेंगे।”

उच्च न्यायालय की पीठ डिंडीगुल के प्रिंसिपल सेशन जज द्वारा अभियुक्त को बरी करने के आदेश के विरुद्ध सीबी-सीआईडी ​​विंग के विशेष जांच प्रभाग द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।

विशेष जांच दल के पुलिस उपाधीक्षक और मामले के जांच अधिकारी को पता चला कि आरोपी बटलागुंडु में छिपा हुआ है और वे अधिकारियों की एक टीम के साथ गैर-ज़मानती वारंट की तामील करने के लिए उस इलाके में पहुंचे। जब अधिकारी ने वारंट की तामील करने की कोशिश की तो आरोपी ने अधिकारी की हत्या का प्रयास किया, जिससे वह बिना किसी चोट के बच निकला। इसके बाद अधिकारियों की टीम ने आरोपी को घेर लिया और उससे चाकू जब्त कर लिया।

अधिकारी की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया गया और आरोप पत्र दाखिल किया गया। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353, 307, 153(ए), गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) की धारा 16(1)(बी) और विस्फोटक पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4(बी)(i) और 4(बी)(ii) के तहत आरोप तय किए गए।

सुनवाई के बाद न्यायालय ने कुछ प्रक्रियात्मक अनियमितताओं का हवाला देते हुए आरोपी को बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने पाया कि सीडी फ़ाइल पेश नहीं की गई, टोल रिकॉर्ड पेश/सम्मन नहीं किए गए, जिस व्यक्ति से अभियुक्त ने विस्फोटक सामग्री प्राप्त की थी, उसकी जांच नहीं की गई, जिस निजी टेम्पो में अधिकारी यात्रा कर रहे थे, उसके बिल/वाउचर पेश नहीं किए गए, तस्वीरें पेश नहीं की गईं और मुख्य नियंत्रक या विस्फोटक नियंत्रक को सूचना नहीं भेजी गई।

अपील पर उच्च न्यायालय ने पाया कि अधिकारियों से स्थानीय पुलिस को पूर्व सूचना देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि वे एक फरार अभियुक्त को गिरफ्तार करने के आधिकारिक कर्तव्य पर थे। न्यायालय ने कहा कि यह स्वाभाविक है कि पुलिस ऐसे मामलों में गोपनीयता बनाए रखे, क्योंकि अगर अभियुक्त को पुलिस की गतिविधियों के बारे में पता होता तो वह भाग जाता।

ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए कारणों में से एक स्वतंत्र गवाहों का अभाव था। न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में पूर्ण स्वतंत्र गवाहों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। केवल इसलिए कि गवाह पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारी थे, अदालत साक्ष्य को तब तक खारिज नहीं कर सकती, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह अविश्वसनीय है।

न्यायालय ने कहा – “अपीलकर्ता/CB-CID ​​के पुलिस अधिकारी निर्विवाद रूप से सक्षम गवाह हैं। हालांकि, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 162 कहती है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा दर्ज किया गया कोई भी बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं है। फिर भी इस प्रकार के मामलों में पुलिस अधिकारियों को स्वयं घटना के गवाह के रूप में प्रस्तुत किया गया। यदि उनके साक्ष्य न्यायालय का विश्वास जगाते हैं और बचाव पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि उनके साक्ष्यों को खारिज किया जाना चाहिए तो न्यायालय पुलिस अधिकारियों के साक्ष्य पर भरोसा कर सकता है।”

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