माओवादी आतंकियों का क्रूर चेहरा, एक और जनजातीय ग्रामीण की हत्या की

रायपुर, छत्तीसगढ़। वामपंथी माओवादियों (सीपीआई-माओवादी) ने एक बार फिर अपना क्रूर चेहरा दिखाया है। मंगलवार-बुधवार की रात नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में उसूर थाना क्षेत्र में 38 वर्षीय ग्रामीण कवासी हूँगा को नक्सलियों ने उनके घर से घसीटकर बाहर निकाला और पुलिस मुखबिर होने का आरोप लगाकर धारदार हथियार से हत्या कर दी। यह पिछले […] The post माओवादी आतंकियों का क्रूर चेहरा, एक और जनजातीय ग्रामीण की हत्या की appeared first on VSK Bharat.

Jul 5, 2025 - 17:18
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माओवादी आतंकियों का क्रूर चेहरा, एक और जनजातीय ग्रामीण की हत्या की

रायपुर, छत्तीसगढ़। वामपंथी माओवादियों (सीपीआई-माओवादी) ने एक बार फिर अपना क्रूर चेहरा दिखाया है। मंगलवार-बुधवार की रात नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में उसूर थाना क्षेत्र में 38 वर्षीय ग्रामीण कवासी हूँगा को नक्सलियों ने उनके घर से घसीटकर बाहर निकाला और पुलिस मुखबिर होने का आरोप लगाकर धारदार हथियार से हत्या कर दी।

यह पिछले 15 दिनों में बीजापुर में नक्सलियों द्वारा की गई छठी हत्या है, जो सीपीआई-माओवादी की खोखली विचारधारा और निर्दोष जनजातियों पर अत्याचार की भयावह तस्वीर को दिखाती है। घटना आतंकी संगठन की बर्बरता और हताशा को उजागर करती है, जो अब आम नागरिकों को निशाना बनाकर अपनी मौजूदगी बनाए रखने की नाकाम कोशिश कर रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंगलवार-बुधवार की रात करीब 1 बजे पांच सशस्त्र वर्दीधारी नक्सली पेरमपल्ली गाँव में कवासी हूँगा के घर में घुस गए। नक्सलियों ने हूँगा को परिवार के सामने जबरन बाहर निकाला और पुलिस के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया। इसके बाद, उन्होंने धारदार हथियार से हत्या कर दी और शव को गाँव के बाहर फेंक दिया।

घटनास्थल पर एक पर्चा भी मिला, जिसमें सीपीआई-माओवादी ने हूँगा को “पुलिस का एजेंट” बताकर हत्या को जायज ठहराने की कोशिश की। स्थानीय लोगों ने सुबह पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद उसूर थाना पुलिस ने मौके पर पहुँचकर शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा और जाँच शुरू की।

कवासी हूँगा की हत्या बीजापुर में नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा की एक और कड़ी है। पिछले 15 दिनों में, जिले में छह ग्रामीणों की हत्या हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश को नक्सलियों ने पुलिस मुखबिर होने के शक में निशाना बनाया।

17 जून को, पेद्दाकोर्मा गाँव में नक्सलियों ने तीन ग्रामीणों, जिनमें एक 13 वर्षीय लड़का भी शामिल था, को रस्सी से गला घोंटकर मार डाला था। इनमें से दो मृतक पूर्व नक्सली के रिश्तेदार थे, जो मार्च में आत्मसमर्पण कर चुका था। 21 जून को, पामेद थाना क्षेत्र में दो अन्य ग्रामीणों की हत्या की गई। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि सीपीआई-माओवादी न केवल सुरक्षाबलों, बल्कि क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के लोगों को निशाना बना रहा है।

सीपीआई-माओवादी, जो खुद को जनजातियों का हितैषी बताता है, उसी समुदाय को निशाना बना रहा है, जिसके नाम पर उसने दशकों तक हिंसा को जायज ठहराया। कवासी की हत्या जैसी घटनाएँ साबित करती हैं कि माओवादियों की विचारधारा केवल आतंक और क्रूरता का पर्याय है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय लोगों का कहना है कि नक्सली उनके गाँवों में जबरन उगाही करते हैं, युवाओं को भर्ती करने का दबाव बनाते हैं, और असहमति जताने वालों को क्रूरता से दंडित करते हैं। “नक्सली हमें डराते हैं और हमारे बच्चों को अपने साथ ले जाते हैं। अगर हम पुलिस से बात करें, तो वे हमें मार देते हैं।”

कवासी हूँगा की हत्या ने पेरमपल्ली और आसपास के गाँवों में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। बीजापुर के जनजाति, जो पहले से ही शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार की कमी से जूझ रहे हैं, वो नक्सलियों की क्रूरता के भी शिकार बन रहे हैं। सीपीआई-माओवादी की यह रणनीति न केवल अमानवीय है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि वे विकास और शांति के खिलाफ हैं।

इस साल बस्तर संभाग में कई बड़े ऑपरेशंस में सुरक्षाबलों ने माओवादियों को भारी नुकसान पहुँचाया है। अप्रैल 2025 में, बीजापुर और तेलंगाना सीमा पर करेगुट्टा पहाड़ियों में सुरक्षाकर्मियों ने नक्सलियों को घेरकर उन्हें मार गिराया था। इसके बावजूद, ग्रामीणों पर हमले बढ़ रहे हैं, जो सीपीआई-माओवादी की हताशा को दर्शाता है।

 

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