पाकिस्तान से लड़ाई के लिए सिर्फ हथियार ही नहीं, बंकर भी जरूरी…LoC पर फायरिंग से नुकसान के बाद फिर उठे सवाल

7 से 10 मई तक पाकिस्तान से चले तनाव में LoC पर बंकरों की कमी लोगों को महसूस हुई. बॉर्डर से सटे इलाकों में पाकिस्तान ने आम लोगों को निशाना बनाते हुए फायरिंग की, जिसमें कई लोगों की जान गई. इन क्षेत्रों में अगर पर्याप्त बंकर होते तो कई लोगों की जिंदगी बच सकती थी.

May 14, 2025 - 07:10
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पाकिस्तान से लड़ाई के लिए सिर्फ हथियार ही नहीं, बंकर भी जरूरी…LoC पर फायरिंग से नुकसान के बाद फिर उठे सवाल
पाकिस्तान से लड़ाई के लिए सिर्फ हथियार ही नहीं, बंकर भी जरूरी…LoC पर फायरिंग से नुकसान के बाद फिर उठे सवाल

हिंदुस्तान और पाकिस्तान की दुश्मनी पुरानी है. 78 साल से दोनों के बीच तनाव का रिश्ता रहा है. दोनों के बीच सबसे ज्यादा टेंशन लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) पर देखा जाता है. पाकिस्तान आए दिन बॉर्डर के आसपास रह रहे लोगों को निशाना बनाता है. उसकी ये नापाक हरकत बीते हफ्ते पूरी दुनिया ने देखी. भारत के एक्शन से बौखलाए पाकिस्तान ने बॉर्डर से सटे इलाकों में फायरिंग शुरू की और आम लोगों को निशाना बनाया. इसमें कई लोगों की जान गई. पाकिस्तान की इन्हीं हरकतों के बाद सवाल उठने लगे हैं कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए इतने साल बाद भी LoC पर बंकरों की क्यों नहीं पर्याप्त संख्या है.

अभी कितने हैं बंकर?

जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव अटल डुल्लू के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में भारत-पाक सीमा पर अभी 9500 बंकर हैं. उन्होंने कहा कि सीमावर्ती लोगों की सुरक्षा के लिए और अधिक बंकरों का निर्माण किया जाएगा. डुल्लू ने कहा, बंकरों की मांग बढ़ रही है और सरकार लगातार इसका निर्माण भी कर रही है.

मुख्य सचिव ही नहीं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी बंकरों की कमी पर चिंता जताई. सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि बंकर तनाव बढ़ने के दौरान लाइफ लाइन होते हैं. हम संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त बंकरों का निर्माण सुनिश्चित करेंगे. उन्होंने कहा कि तनाव की स्थिति के दौरान सीमा पर रहने वाले लोगों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत बंकरों के निर्माण का मामला केंद्र सरकार के समक्ष उठाया जाएगा.

सैन्य इलाकों में भी बंकरों की कमी

बंकर की कमी सिर्फ सिविलियन इलाकों में ही नहीं, सैन्य इलाकों में भी है. राजौरी, पुंछ, नगरौटा जैसे इलाकों में रहने वाले सैनिकों के परिवार की सुरक्षा तनाव के दौरान भगवान भरोसे रहती है. वे अपनी जान की सुरक्षा खुद करते हैं. 7 से 10 मई तक चले तनाव के दौरान सैनिकों के परिवारों को बंकर कमी खासतौर पर खली.

राजौरी, सांबा, पुंछ, नगरौटा जैसे क्षेत्रों में जब पाकिस्तान ड्रोन से अटैक कर रहा था तब सैनिकों का परिवार बेड के नीचे छिपकर अपनी जान बचा पा रहा था. शाम होते ही जब पाकिस्तान नापाक हरकतें शुरू करता था सैनिकों का परिवार कई घंटे तक बिस्तरों के नीचे छिप जाता था.

सेना के इन इलाकों में अगर बंकर होते तो वे अपनी सुरक्षा के लिए आसानी से उसमें रह सकते थे और टेंशन के समय उन्हें इतना तनाव लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती. इन इलाकों में बंकर इस वजह से भी जरूरी हो जाते हैं क्योंकि ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां सैनिक अपने परिवारों को भी अपने साथ रखते हैं. पाकिस्तान से तनाव के समय सैनिकों को देश के साथ-साथ अपने परिवारों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना पड़ता है. सरकार अगर बंकरों की संख्या बढ़ा दे तो सैनिकों की ये चिंता दूर हो जाएगी.

बंकर बनाने में आता है अच्छा खासा खर्च

सेना से जुड़े कुछ अधिकारियों के मुताबिक, बंकर बनाने में अच्छा खासा खर्च आता है. वो कहते हैं कि हमें इजराइल जैसा मुल्क बनने में समय लगेगा. बता दें कि फिलिस्तीन से दुश्मनी के कारण इजराइल के घर-घर में बंकर पा जाते हैं. वहां पर ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि भारत के मुकाबले इजराइल की आबादी कम है. अधिकारी कहते हैं भारत बंकर बनाने पर जोर दे रहा है, लेकिन हर इलाके में इसका निर्माण होने में समय लगेगा.

बनाए जा रहे मोदी बंकर

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में LoC से सटे इलाकों में मोदी बंकर बनाने की शुरुआत हुई. सरकार ने उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में व्यक्तिगत और सामुदायिक बंकरों के निर्माण के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता दी. सरकार ने शुरू में जम्मू, कठुआ, सांबा, पुंछ और राजौरी सहित पांच जिलों में 14,460 बंकरों को मंजूरी दी थी. बाद में 4 हजार और बंकरों की मंजूरी दी गई. मोदी बंकर 10 फीट गहरे, बुलेटप्रूफ और मजबूत होते हैं.

बंकर ने बचाई कई लोगों की जिंदगी

7 से 10 मई तक पाकिस्तान जब LoC पर फायरिंग कर रहा था तब कई लोगों ने बंकर में छिपकर अपनी जान बचाई. तंगधार में रहने वाले एक शख्स ने कहा कि बंकरों ने ही हमारी जान बचाई. टेंशन के समय में ये बंकर हमारी सुरक्षा करते हैं, विस्फोट करने वाले गोले से हमारी ढाल हैं. ये बंकर 30×20 फुट के होते हैं. इन्हें ऐसा बनाया जाता है कि ये आर्टलरी की फायरिंग को भी सह सकें. पांच दिनों में शतपल्ला गांव के 100 से अधिक निवासियों ने इस बंकर के अंदर रातें बिताईं, जबकि बाहर तोपखाने के गोले बरस रहे थे.

एक अधिकारी ने कहा कि गृह मंत्रालय ने सीमा से सटे इलाके कर्नाह में 60 बंकरों को मंजूरी दी थी, लेकिन चूंकि भूभाग की कमी और जमीन के बड़े हिस्से की कम उपलब्धता के कारण ऐसे बंकरों का आकार संभव नहीं था, इसलिए उसी लागत पर 120 छोटे बंकरों का निर्माण किया गया. कुछ लोगों ने अपने कैंपस में भी बंकर बनाए हैं. हालांकि, उनमें से ज़्यादातर आर्टीलरी की फायरिंग को झेलने के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं और उसमें लंबे समय तक रहा भी जा सकता.

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