सहकार के मॉडल ने ही देश को विश्व का नंबर 1 दुग्ध उत्पादक बनाया: जयेन मेहता

गोवा में पाञ्चजन्य के सागर मंथन संवाद 3.0 में डेयरी प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी अमूल के एमडी जयेन मेहता ने असरकार सहकार मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि आजादी से एक साल पहले वर्ष 1946 में गुजरात के किसानों को सोशण से मुक्ति के लिए डेयरी कोऑपरेटिव बनाने की प्रेरणा दी थी। तब 200 लीटर […]

Dec 25, 2024 - 09:20
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सहकार के मॉडल ने ही देश को विश्व का नंबर 1 दुग्ध उत्पादक बनाया: जयेन मेहता
Asarkar Sahkar Amul Dairy Jayen Mehta

गोवा में पाञ्चजन्य के सागर मंथन संवाद 3.0 में डेयरी प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी अमूल के एमडी जयेन मेहता ने असरकार सहकार मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि आजादी से एक साल पहले वर्ष 1946 में गुजरात के किसानों को सोशण से मुक्ति के लिए डेयरी कोऑपरेटिव बनाने की प्रेरणा दी थी। तब 200 लीटर से दूध के साथ शुरू हुई अमूल की यात्रा आज केवल अमूल ही 310 लाख लीटर दूध डेली इकट्ठा करती है।

गुजरात के 18600 गांवों में दूध की मंडलियां हैं। 36 लाख परिवार इससे जुड़े हुए हैं। 18 जिला संघों के माध्यम से जब 310 लाख लीटर दूध देश और विदेशों में 22 बिलियन पैक्स यानि कि करीब प्रतिदिन 6 करोड़ पैक होके सालाना 80,000 करोड़ यानि कि 10 बिलियन डॉलर का कारोबार जो संस्था करती है उसके मालिक 36 लाख किसान हैं। अमूल को विश्व की सबसे मजबूत फूड ब्रांड माना गया है। सहकार का जो मॉडल हैृ, अमूल उसका एक बड़ा उदाहरण रहा है। ये अपने तक ही सीमित नहीं रहा है। सहकार का ये मॉडल अमूल से होते हुए देश भर में फैला, जैसे कि कर्नाटक में नंदिनी, पंजाब में सुधा समेत प्रत्येक राज्य में अमूल के माध्यम से सहकार का एक मॉडल बना।

सहकार के मॉडल ने मिलकर भारत को विश्व का नंबर वन दुग्ध उत्पादक देश बनाया है। एक बार से ये कहना पड़ेगा कि ये छोटे किसानों या इस मॉडल की उपलब्धि है। आप सभी को जानकर ये आश्चर्य होगा कि आज भारत में सबसे बड़ा एग्रीकल्चर प्रोडक्ट गेंहू, चावल नहीं, बल्कि दूध है। 150 बिलियन डॉलर का जो कुल मार्केट है, उसके साथ 8-10 करोड़ परिवार जुड़कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं। इस मॉडल से ग्रामीण विकास, लाइवलीहुड, पोषण की क्रांति दी है।

140 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में सभी को दूध जैसा पोषक तत्व मिले वो हमारे देश के लिए भी एक उपलब्धि है। आत्मनिर्भर भारत का भी एक सुदंर सा मॉडल है तो ये सब चीजें हैं। इसी मॉडल ने महिलाओं का सशक्तिकरण करके दिखाया है। इससे जब महिलाओं की जेब में पैसे पहुंचते हैं तो ये उनके लिए गौरव वाली बात होती है और स्वतंत्रता की बात है। ये जानकर ताज्जुब होगा कि हमारे यहां आधे से अधिक अकाउंट महिलाओं के नाम के हैं। अगर अमूल 200 करोड़ रोज महिलाओं को उनके दूध की इनकम के तौर पर देता है तो आधे से अधिक पैसा माताओ-बहनों के अकाउंट में जाता है।

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