शंकराचार्य की जन्मभूमि से शिक्षा परिवर्तन का शंखनाद; शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की चिंतन बैठक

केरल, 25 जुलाई 2025। आदिशंकर निलयम, कालड़ी में आयोजित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की राष्ट्रीय चिंतन बैठक का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया। इस अवसर पर चिन्मय मिशन के स्वामी विवित्तानंद जी, न्यास की अध्यक्षा डॉ. पंकज मित्तल जी, संयोजक ए. विनोद जी, चिन्मय मिशन के सुदर्शन जी […] The post शंकराचार्य की जन्मभूमि से शिक्षा परिवर्तन का शंखनाद; शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की चिंतन बैठक appeared first on VSK Bharat.

Jul 26, 2025 - 06:20
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शंकराचार्य की जन्मभूमि से शिक्षा परिवर्तन का शंखनाद; शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की चिंतन बैठक

केरल, 25 जुलाई 2025।

आदिशंकर निलयम, कालड़ी में आयोजित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की राष्ट्रीय चिंतन बैठक का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया। इस अवसर पर चिन्मय मिशन के स्वामी विवित्तानंद जी, न्यास की अध्यक्षा डॉ. पंकज मित्तल जी, संयोजक ए. विनोद जी, चिन्मय मिशन के सुदर्शन जी उपस्थित रहे।

राष्ट्रीय चिंतन बैठक के उद्घाटन सत्र में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा में भौतिकता और आध्यात्मिकता दोनों का समन्वय आवश्यक है। न्यास का काम और देश की शिक्षा में बदलाव का काम अलग नहीं है। हमें समस्या नहीं समाधान की चर्चा करनी है, समस्या को पहचान कर समाधान के विषय में आगे बढ़ना है। हम यहाँ न्यास के 5 वर्षों की कार्यक्रमात्मक व संगठनात्मक दोनों स्तर पर समीक्षा व योजना बनाई जाएगी।

उन्होंने कहा कि किसी एक संस्था, एक संगठन या एक मंच द्वारा देश की शिक्षा में बदलाव लाना संभव नहीं है, इसके लिए सभी को एक दिशा में कार्य करना होगा। न्यास की यह तीसरी चिंतन बैठक है, पहली चिंतन बैठक 2012 में वृंदावन में हुई, दूसरी चिंतन बैठक 2019 में कोयंबतूर में, और यह तीसरी चिंतन बैठक आदि शंकराचार्य जी की जन्मस्थली कालड़ी में संपन्न हो रही है। डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि स्थापना से ही न्यास भारत की शिक्षा में नया विकल्प देने हेतु प्रतिबद्ध है, यह कार्य इतना व्यापक है कि केवल ज्ञानोत्सव, ज्ञान कुंभ व ज्ञान सभा का आयोजन पर्याप्त नहीं, इसके आगे भी हमें कार्य को सतत बढ़ाने हेतु कार्य करते रहना होगा।

चिन्मय मिशन के केरल क्षेत्र के प्रमुख आचार्य विवित्तानन्द जी ने कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि भारत की शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन लाने वाले प्रयासों की एक महत्वपूर्ण चिंतन बैठक हमारे परिसर में हो रही है। हमारी भारतीय ज्ञान परम्परा ही हमारी एकता का आधार है। आपके प्रयासों से मैकॉले की पद्धति समाप्त होने की कगार पर है, मुझे विश्वास है कि आप लोगों के कारण शिक्षा की यह स्थिति बदलेगी, और शिक्षा का भारतीयकरण पूरे देश में होगा।

उद्घाटन सत्र में न्यास की अध्यक्षा डॉ. पंकज मित्तल ने कहा कि न्यास अपने प्रारम्भ काल से ही शिक्षा में भारतीय ज्ञान परम्परा को आधार बनाकर वर्तमान एवं भविष्य की आधुनिक आवश्यकताओं का संयोजन कर देश की शिक्षा को एक नया विकल्प देकर भारतीय शिक्षा का पुनरुत्थान हो, इस दिशा में प्रयासरत है। भारत में शिक्षा का उद्देश्य केवल जीविकोपार्जन नहीं था, बल्कि मनुष्य को ‘पूर्ण मानव’ बनाने का माध्यम था। हमें इस दिशा में शिक्षा को लेकर जाना है।

प्रथम दिन के द्वितीय सत्र में डॉ अतुल कोठारी ने न्यास की विकास यात्रा पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि शिक्षा में व्याप्त विकृतियों पर देशव्यापी शिक्षा बचाओ आन्दोलन चलाया गया, उसके पश्चात देश की शिक्षा को एक नया विकल्प देने हेतु शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का गठन किया गया। हमारी कार्य पद्धति है कि हम भाषण देने का काम नहीं करेंगे, हम सिस्टम में जाकर बदलाव का कार्य करेंगे।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास विगत वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रहितकारी कार्यों के माध्यम से भारत की आत्मा को जाग्रत करने में सतत कार्यरत है। न्यास का मानना है कि शिक्षा में जमीनी बदलाव समाज का प्रमुख दायित्व है। इस हेतु समाज एवं सरकार इन दोनों के संयुक्त प्रयास आवश्यक हैं। इसमें प्रत्यक्षतः शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लागों की प्रमुख भूमिका है, तभी शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन संभव होगा। इन प्रयासों को देशव्यापी अभियान एवं आन्दोलन बनाने हेतु यह कार्य किया जा रहा है। शिक्षा देश की प्राथमिकता का विषय बने यह भी आवश्यक है।

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