मानव जीवन का उन्नत स्वरूप भारतीयों के नेतृत्व में ही स्थापित हो सकता है – डॉ. मोहन भागवत जी

सरसंघचालक जी ने श्रावण मास के दौरान पांडुरंगेश्वर शिव मंदिर में पूजन व अभिषेक किया नागपुर, ७ अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि विचारकों का कहना है कि दुनिया में बदलाव आ रहा है। इस बदलते युग में, अगर मनुष्य सही दिशा नहीं अपनाता है, तो यह विनाश […] The post मानव जीवन का उन्नत स्वरूप भारतीयों के नेतृत्व में ही स्थापित हो सकता है – डॉ. मोहन भागवत जी appeared first on VSK Bharat.

Aug 8, 2025 - 14:14
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मानव जीवन का उन्नत स्वरूप भारतीयों के नेतृत्व में ही स्थापित हो सकता है – डॉ. मोहन भागवत जी

सरसंघचालक जी ने श्रावण मास के दौरान पांडुरंगेश्वर शिव मंदिर में पूजन व अभिषेक किया

नागपुर, ७ अगस्त।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि विचारकों का कहना है कि दुनिया में बदलाव आ रहा है। इस बदलते युग में, अगर मनुष्य सही दिशा नहीं अपनाता है, तो यह विनाश का समय हो सकता है। हालाँकि, यदि हम समय को पहचानते हुए सही दिशा में सही कदम उठाते हैं, तो मानव जीवन का एक नया उन्नत स्वरूप खड़ा किया जा सकता है। ऐसा स्वरूप दुनिया में केवल भारतीयों के नेतृत्व में ही स्थापित किया जा सकता है।

सरसंघचालक जी ने नागपुर के दीनदयाल नगर स्थित पांडुरंगेश्वर शिव मंदिर में श्रावण मास के अवसर पर अभिषेक तथा पूजन किया। उन्होंने कहा कि कई लोग सोचते हैं कि इतने सालों तक इतनी मेहनत करने के बाद अब बेहतर दिन आ गए हैं, चलो अब हमें कुछ मिल जाए। लेकिन अपने लिए कुछ पाना शिव का स्वभाव नहीं है। केवल जिससे खतरा है और दुनिया में जो कुछ भी विष है, वही हम स्वयं स्वीकार करें, ऐसे दृष्टिकोण के साथ जीवन जीने की बहुत आवश्यकता है। दुनिया की सभी समस्याओं के पीछे मनुष्य का लालच और कट्टरता है। कट्टरता क्रोध और घृणा पैदा करती है और युद्ध की ओर ले जाती है। केवल मुझे ही चाहिए, यह स्वार्थी रवैया और भेदभाव मानव प्रवृत्ति के अंधेरे पक्ष हैं। इस प्रवृत्ति को बदलना होगा। इस प्रवृत्ति को बदलने का अर्थ है, शिव की पूजा करना।

परंपरागत रूप से, हम जानते हैं कि कैसे विरोधाभासी चीजों के बीच तालमेल बिठाकर उसमें से कुछ बेहतर अर्थात मक्खन या नवनीत जैसे पाना है। इसलिए, यदि हम उस परंपरा को आगे बढ़ाने वाली पूजा और यात्रा के पीछे की भावना को समझते हैं और उस अनुसार कार्य करें और वैसे संस्कार धारण करें, तो अवश्य भगवान प्रसन्न होंगे। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हमारे पास दुनिया को सांत्वना देने की शक्ति है।

शिव का अर्थ पवित्रता, सभी को शिव वृत्ति धारण करनी चाहिए

मानव हेतु भगवान तक पहुँचने के सभी मार्ग भगवान शिव शंकर से उद्गम हुए हैं। शिव सर्वशक्तिमान हैं और फिर भी वैराग्य दृष्टि से रहते हैं। त्याग का परमोच्च आदर्श भगवान शिव हैं। शिव का अर्थ पवित्रता है और वर्तमान समय में, सभी को शिव वृत्ति से आचरण करना चाहिए। हमें समानता, सभी के लिए सद्भाव, त्याग और एक सादगीपूर्ण सरल जीवन की आवश्यकता है। साथ ही, सभी के प्रति करुणा का भाव होना चाहिए। यही शिव वृत्ति है और शिव यह पवित्रता का समानार्थी शब्द है। ऐसा पवित्र जीवन प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन प्रयास करते हुए हर एक कदम उठाना ही शिव की सच्ची भक्ति है।

कर्म की भावना से संस्कृति और संस्कारों का निर्माण

सभी पंथ संप्रदायों के लोग शिव की पूजा करते हैं। लोग कांवड़ ले जाते हैं। इसके पीछे विचार यह है कि जो अच्छी चीजें हमें मिली हैं, उन्हें अपने पास रखने के बजाय दूसरों के साथ साझा करें। शिव सामान्य जनता के प्रतीक हैं। जब सभी प्रयास समाप्त हो जाते हैं, तो लोग जनता के पास जाते हैं। जनता के मन में अनुकूलता हो, तो ही काम होते हैं। हमारे देश में कांवड़ियों की एक महान परंपरा है। हम प्रतीकात्मक आचरण करते हैं। हालाँकि, जब सभी लोग शिव आचरण करते हैं, तभी मन में प्रतीकात्मक कार्यक्रम द्वारा संस्कार होते हैं। प्रत्येक कार्य के पीछे एक भावना होती है और यदि हम उसे समझकर उसके अनुसार आचरण करें, तो वह संस्कृति बन जाती है और उसी से संस्कारों का निर्माण होता है। जो संस्कार व्यक्ति के जीवन को परिवर्तित करते हैं, उनमें विश्व के जीवन को बदलने की क्षमता होती है।

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