भारत में पत्थरबाजी : इस्लामी रिवाज से जुड़ा हिंसा का खतरनाक पैटर्न, जानिए पथराव की मजहबी पृष्ठभूमि

नई दिल्ली । देशभर में हाल के वर्षों में पत्थरबाजी की घटनाओं में तेजी देखी गई है। कभी हिंदू शोभायात्राओं पर, कभी पुलिस और सर्वे टीमों पर, तो कभी अवैध अतिक्रमण को हटाने गई प्रशासनिक टीमों पर मुस्लिम भीड़ द्वारा किए गए हमलों ने न केवल कानून व्यवस्था को चुनौती दी है, बल्कि इसके गहरे […]

Nov 25, 2024 - 06:14
 0
भारत में पत्थरबाजी : इस्लामी रिवाज से जुड़ा हिंसा का खतरनाक पैटर्न, जानिए पथराव की मजहबी पृष्ठभूमि

नई दिल्ली । देशभर में हाल के वर्षों में पत्थरबाजी की घटनाओं में तेजी देखी गई है। कभी हिंदू शोभायात्राओं पर, कभी पुलिस और सर्वे टीमों पर, तो कभी अवैध अतिक्रमण को हटाने गई प्रशासनिक टीमों पर मुस्लिम भीड़ द्वारा किए गए हमलों ने न केवल कानून व्यवस्था को चुनौती दी है, बल्कि इसके गहरे सांस्कृतिक और मजहबी अर्थों को भी उजागर किया है। इन घटनाओं का संबंध केवल स्थानीय विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कट्टरपंथी इस्लामी सोच और अरबी परंपराओं से प्रेरित एक व्यवस्थित पैटर्न का हिस्सा है।

पत्थरबाजी और इस्लामी मान्यता

इस्लाम में पत्थरबाजी की प्रेरणा रमी अल-जमरात नामक रस्म से जुड़ी है, जो मक्का की हज यात्रा का हिस्सा है। इसमें शैतान के प्रतीक तीन दीवारों पर पत्थर फेंकने का रिवाज है। यह शैतान और इस्लाम विरोधियों के खिलाफ प्रतीकात्मक युद्ध का एक रूप है। हालांकि, यह प्रथा हज तक सीमित है, लेकिन भारत जैसे गैर-इस्लामी देशों (दारुल हरब) में इसे व्यापक हिंसा का साधन बनाया जा रहा है। दारुल हरब का शाब्दिक अर्थ है ‘युद्ध भूमि’- यानि ऐसे देश या स्थान, जहां शरीयत लागू न हो तथा जहां अन्य आस्थाओं वाले या अल्लाह को न मानने वाले लोगों का बहुमत हो। वहीं इस्लाम किसी भी तरह की मूर्तिपूजा या बुतपरस्ती का कड़ा विरोध करता है, जबकि हिंदू धर्म में मूर्तिपूजा उसकी प्रमुख प्रथाओं में से एक है। इस्लाम इसे ‘शिर्क’ के रूप में देखता है। ‘शिर्क’ का अर्थ है- मूर्तिपूजा, बहुदेववाद और अल्लाह के अलावा किसी भी अन्य की पूजा।

भारत में पत्थरबाजी : धर्म और हिंसा का मेल

भारत में पत्थरबाजी के मामले, विशेष रूप से हिंदुओं, सुरक्षा बलों और सरकारी अधिकारियों पर, इसी प्रतीकात्मकता का आधुनिक स्वरूप हैं। दारुल हरब (गैर-इस्लामी भूमि) के रूप में भारत को इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा धार्मिक विरोध के लिए शैतान के रूप में देखा जाता है। मदरसों में बच्चों को यह सिखाया जाता है कि मूर्तिपूजा (हिंदू धर्म की प्रथा) शिर्क है, यानी अल्लाह के खिलाफ अपराध। यह विचारधारा मुसलमानों में हिंदुओं और उनकी धार्मिक प्रथाओं के प्रति घृणा उत्पन्न करती है।

हदीस में पत्थर मारने का हुक्म

कुरान को सीधे इस्लामी रिवाजों या कानूनों का स्रोत कम माना जाता है और इस क्षेत्र में हदीथों (हदीसों) की भूमिका अधिक है। जैसे कि कुरान के सूराह 4:34 और 24:2 की व्याख्या पति से धोखा या दुर्व्यवहार करने वाली महिला को संगमार की सजा देने के तौर पर की जाती रही है। यह हदीस में भी है और इसे सुन्नाह भी माना जाता है।

इसी तरह, व्यभिचार की दोषी या आरोपी महिला को लोगों द्वारा पत्थरों से मारने की बात बाइबिकल कानून में स्पष्ट रूप से कही गई है। हालांकि उसके निषेध का भी उल्लेख किया गया है। लेकिन हदीसों में पत्थर मारने का स्पष्ट हुक्म है। इसमें कहा गया है कि पत्थर मारने की आयत पहले कुरान में थी, लेकिन बाद में आयशा के घर में उसके तकिए के नीचे रखी उस आयत को एक बकरी खा गई थी। इसके आधार पर इस्लामी विद्वानों का कहना है कि पत्थर मारने का हुक्म कायम है, चाहे कुरान में इसकी आयत मौजूद हो या न हो।

भारत में पत्थरबाजी की घटनाएं और उनके उद्देश्य

भारत में पत्थरबाजी की घटनाएं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देखी गई हैं। ये घटनाएं केवल स्थानीय विरोध का परिणाम नहीं, बल्कि कट्टरपंथी इस्लामी सोच का व्यवस्थित विस्तार हैं।

धार्मिक शोभायात्राओं पर हमले : हिंदू त्योहारों या शोभायात्राओं के दौरान पत्थरबाजी आम होती जा रही है। धार्मिक असहिष्णुता के चलते, इन आयोजनों को मुस्लिम कट्टरपंथी शिर्क का प्रतीक मानते हैं और हमला करते हैं।

पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर हमला : सरकारी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई या सर्वे टीमों पर पत्थरबाजी का उद्देश्य शासन को चुनौती देना और कट्टरपंथी दबाव बनाना है।

भारत को दारुल हरब मानना : इस्लाम के कट्टरपंथी दृष्टिकोण में भारत को शैतानी भूमि के रूप में चित्रित किया जाता है। इस्लामिक नियमों को यहां लागू न होते देख कट्टरपंथी समूह इसे पत्थरबाजी और हिंसा के माध्यम से चुनौती देने का प्रयास करते हैं।

पत्थरबाजी का भारतीय समाज पर प्रभाव

भारत में इस्लामी पत्थरबाजी के पीछे की प्रेरणा विरोधियों और गैर-इस्लामिक सरकार को शैतान के रूप में देखना है। धार्मिक विरोध को हिंसा में बदलने का यह पैटर्न केवल कानून और शांति व्यवस्था को चुनौती नहीं देता, बल्कि यह भारत की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक संतुलन के लिए भी गंभीर खतरा है।

कानून और व्यवस्था : पत्थरबाजी की घटनाएं सुरक्षा बलों और कानून लागू करने वाले अधिकारियों के मनोबल को कमजोर करती हैं।
सांप्रदायिक तनाव : हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में दरार पैदा होती है, जिससे सामाजिक सौहार्द प्रभावित होता है।
कट्टरपंथी एजेंडा : पत्थरबाजी जैसी हिंसक घटनाएं कट्टरपंथी इस्लामी एजेंडे को बढ़ावा देती हैं, जो देश की अखंडता के लिए खतरा है।

वास्तव में अपने विरोधियों पर पथराव करना, विरोधियों पर थूक देना, सार्वजनिक स्थानों पर सजा देना आदि सारी बातें अरब संस्कृति में काफी पहले से रही हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम को मानने वाले लोग भी अरब की इस पुरानी संस्कृति की देखादेखी करने की कोशिश करते आ रहे हैं।

भारत में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं, भारतीय राज्य, भारतीय सुरक्षा बलों और भारत सरकार के साथ काम करने वाले अधिकारियों पर की जाने वाली पत्थरबाजी की घटनाओं का यही गहरा मजहबी संबंध है। विरोध के इस रूप की परिकल्पना करने वाले व्यक्ति ने अगर हज के दौरान किए जाने वाले रमी अल-जमरात के रिवाज से प्रेरणा ली हो, तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होगी।

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

Bharatiyanews हमारा अपना समाचार आप सब के लिए|