भारत को BRICS से क्या फायदा, यह कितना जरूरी? जिसकी समिट में हिस्सा लेने ब्राजील पहुंचे PM मोदी

PM Modi in Brazil for BRICS Summit: पीएम मोदी 17वीं ब्रिक्स समिट में हिस्सा लेने के लिए ब्राजील के डी जेनेरियो पहुंच चुके हैं. दुनिया की पांच उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने एक सरकारी अनौपचारिक संगठन बनाया, जिसका नाम ब्रिक्स है. हालांकि, बाद में इसमें और देश भी जुड़े. ब्रिक्स में शामिल भारत समेत दुनिया के 11 देश दुनिया की 30 फीसदी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं. आइए जानते हैं, क्या है ब्रिक्स, भारत के लिए यह क्यों जरूरी और इससे देश को कितना फायदा.

Jul 6, 2025 - 19:40
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भारत को BRICS से क्या फायदा, यह कितना जरूरी? जिसकी समिट में हिस्सा लेने ब्राजील पहुंचे PM मोदी
भारत को BRICS से क्या फायदा, यह कितना जरूरी? जिसकी समिट में हिस्सा लेने ब्राजील पहुंचे PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो जुलाई 2025 से शुरू हुई अपनी पांच देशों की विदेश यात्रा के दौरान ब्राजील पहुंच चुके हैं. इससे पहले वे घाना, त्रिनिदाद और टोबेगो और फिर अर्जेंटीना का दौरा कर चुके हैं. ब्राजील में वे ब्रिक्स के 17वें शिखर सम्मेलन (ब्रिक्स समिट 2025) में हिस्सा लेंगे. आइए जानते हैं ब्रिक्स क्या है और इससे भारत को कितनी फायदा होता है? यह कितना जरूरी है?

दरअसल, दुनिया की पांच उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने एक सरकारी अनौपचारिक संगठन बनाया है, जिसका नाम ब्रिक्स है. इसका नाम भी इन्हीं पांच देशों ब्राजील, रूस, इंडिया (भारत), चीन और साउथ अफ्रीका (BRICS) के नाम पर पड़ा है. सबसे पहले इस अनौपचारिक समूह का नामकरण साल 2001 में विश्लेषक जिम ओनील ने ब्राजील, रूस, इंडिया (भारत) और चीन के पहले अक्षरों को मिलाकर गढ़ा था. इसके बाद BRIC नाम सामने आया था और साल 2006 में औपचारिक रूप से इस संगठन की शुरुआत हुई, जिसका शिखर सम्मेलन 16 जून, 2009 को BRIC के नाम से रूस के येकातेरिनबर्ग में किया गया था. साल 2010 में इस संगठन में साउथ अफ्रीका को भी शामिल कर लिया गया. इसके बाद इस संगठन का नाम ब्रिक्स (BRICS) हो गया.

अब BRICS में इतने सदस्य देश शामिल

साल 2010 में साउथ अफ्रीका को शामिल किए जाने के बाद साल 2024 में एक बार फिर से ब्रिक्स का विस्तार हुआ. इसमें सऊदी अरब, मिस्त्र, ईरान, इथोपिया और यूएई को भी पूर्ण सदस्य बनाया गया. इसके बाद अगले ही साल यानी 2025 में ही इंडोनेशिया भी इस संगठन का पूर्ण सदस्य बन गया. इनके अलावा मलेशिया, बोलिविया, बेलारूस, नाइजीरिया, क्यूबा, थाईलैंड, कजाखस्तान, युगांडा, उज्बेकिस्तान और वियतनाम जैसे देश इस संगठन के साथ सदस्य देश के तौर पर जुड़े हैं. पाकिस्तान ने अब तक भले ही आधिकारिक तौर पर ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन नहीं किया है, पह वह भी कई बार इस संगठन का सदस्य बनने की इच्छा जता चुका है.

What Is Brics And Its Impact

ब्रिक्स में शामिल देश दुनिया की 30 फीसदी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं.

भारत के लिए क्यों जरूरी?

भारत की वैश्विक रणनीति और कूटनीति के लिए BRICS बेहद अहम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ब्रिक्स समिट में हिस्सा लेना कूटनीति और आर्थिक रणनीति को बढ़ावा देने के लिए बेहद जरूरी है. इस समिट में प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी यह दिखाती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका बढ़ रही है. इससे पता चलता है कि भारत आर्थिक सहयोग, वैश्विक शांति और कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने के प्रति भारत प्रतिबद्ध है.

अगली ब्रिक्स समिट भारत में, इसलिए और भी जरूरी

यही नहीं, चूंकि अगला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भारत में होना है. इसके लिए भारत को औपचारिक रूप से जिम्मेदारी सौंपी जानी है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी बेहद अहम है. इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी से इस बात की प्रतिबद्धता भी दिखेगी कि भारत अगला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कराने के लिए किस कदर तैयार और उत्सुक है. इससे सदस्य देशों को यह विश्वास होगा कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कराने के लिए भारत सक्षम है.

Brics

ब्रिक्स में आतंकवाद को लेकर विस्तृत चर्चा हो सकती है.

केवल पश्चिमी देशों का न हो वर्चस्व

चूंकि ब्रिक्स का गठन तेजी से आगे बढ़ रहे विकासशील देशों को एक मंच पर लाने और पाश्चात्य शक्तियों के वर्चस्व का सामना करने के लिए किया गया है, इसलिए इस संगठन का लक्ष्य एक पारदर्शी और समावेशी, बिना भेदभाव वाली व्यापारिक प्रणाली को विकसित करना है. इसके अलावा ब्रिक्स में डॉलर के अलावा एक साझा मुद्रा की चर्चा भी की जाती रही है. ऐसे में विश्व स्तर पर अपनी पहुंच और मजबूत करने के लिए ब्रिक्स जैसे वैश्विक मंचों के लिए भारत प्रतिबद्ध है.

दरअसल, भारत के एक बहुध्रुवीय दुनिया का मुद्दा उठाता रहा है, जिससे वैश्विक व्यवस्था पर केवल पश्चिमी देशों का वर्चस्व न हो. इसीलिए भारत वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत बहुपक्षीय मंचों का इस्तेमाल कर रहा है, जिनमें ब्रिक्स का मंच भी शामिल है.

इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट पॉलिसी में स्टॉकहोम सेंटर फॉर साउथ एशियन एंड इंडो-पैसिफिक अफेयर्स के प्रमुख जगन्नाथ पांडा की मानें तो भारत वास्तव में ब्रिक्स को पश्चिम एशिया से आगे भी अपने आर्थिक विस्तार के लिए एक बहुध्रुवीय आधार मानता है. इस संगठन की कूटनीति भारत के प्रमुख हितों जैसे की आतंकवाक का मुकाबल, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन आदि पर ही केंद्रित है. इसलिए भी ब्रिक्स भारत के लिए बेहद जरूरी है.

आर्थिक कूटनीति के लिए फायदेमंद

ब्रिक्स में शामिल देश दुनिया की 40 फीसदी जनसंख्या और 30 फीसदी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे में ब्रिक्स के जरिए दक्षिण के देशों के साथ भारत अपने संबंधों और द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत कर सकता है. विश्व स्तर पर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच आपनी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भी इस शिखर सम्मेलन में उपस्थिति बेहद अहम होती है. इससे भारत की आर्थिक कूटनीति भी मजबूत होती है। यहां तक की यूपीआई से लेनदेन ब्रिक्स समिट की ही देन है. इसके जरिए डॉलर के इतर स्थानीय करेंसी के साथ विदेशों से व्यापार की संभावना बलवती होती है. इससे डॉलर पर निर्भरता घटती है. इसके अलावा भारत की मौजूदगी ब्रिक्स में इसलिए भी अहम है, जिससे यह पश्चिमी देशों का विरोध और चीन-रूस के दबदबे वाला वैश्विक मंच न बन जाए. इससे भारत की स्वतंत्र और तटस्थ छवि बनी रहेगी.

ब्राजील पहुंचे पीएम मोदी

शिखर सम्मेलन के एजेंडे में हो सकते ये मुद्दे

इस बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन, इजरायल-ईरान युद्ध और इजरायल के गाजा पट्टी पर हमले की गवाह बनी है. पूरी संभावना है कि इन मुद्दों पर सम्मेलन में चर्चा होगी. इसके अलावा आतंकवाद को लेकर विस्तृत चर्चा हो सकती है और ब्रिक्स के घोषणापत्र में भी भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को प्रमुखता से स्थान मिल सकता है. गाजा में इजरायल के हमले पर भी एक ब्रिक्स के सदस्य देश मजबूत साझा बयान दे सकते हैं. इसके अलावा ब्रिक्स के सदस्य देशों के नेताओं में अमेरिका के टैरिफ की आलोचना की जा सकती है. हालांकि, कुछ देश अमेरिका अथवा ट्रंप प्रशासन का नाम लेने पर असहज हैं, ऐसे में अंतिम साझा बयान की भाषा संतुलित हो सकती है.

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