मैं खड़ा हुं वीर बहादुर सिंह बंदा

बाबा बन्दा सिंह बहादुर एक महान सिख सैनिक और योद्धा थे, जिन्होंने अपने योग्दान के माध्यम से धर्म और आजादी के लिए संघर्ष किया। उनका जीवन एक महान वीर गाथा है,

Oct 27, 2023 - 07:27
Oct 27, 2023 - 07:29
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मैं खड़ा हुं वीर बहादुर सिंह बंदा
मैं खड़ा हुँ वीर बहादुर सिंह बंदा, धर्म के लिए जीने का है सपना।

मैं खड़ा हुँ वीर बहादुर सिंह बंदा,

धर्म के लिए जीने का है सपना।

सिखों के रखवाले, मैं था सरदार,

आजादी के लिए किया मैं तैयार।

दिल्ली के दरबार में दबे नहीं थे,

मैंने मुग़ल सल्तनत को तबाह किया था।

सिखों का साहस और इमान,

वीर बंदा बहादुर, मेरा नाम।

बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पांच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।

बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।

उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसंबर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टांगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का मांस नोचा जाता रहा।

काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहां हॉर्डिंग लाइब्रेरी है,वहां 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?

बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।

बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता, क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके 5 वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया। 

बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का मांस बन्दा के मुंह में ठूंस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से मांस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियां शेष थी। फिर 9 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिए।

बाबा बन्दा सिंह बहादुर एक महान सिख सैनिक और योद्धा थे, जिन्होंने अपने योग्दान के माध्यम से धर्म और आजादी के लिए संघर्ष किया। उनका जीवन एक महान वीर गाथा है, और उनकी आत्मबलिदान ने सिख समुदाय को महत्वपूर्ण प्रेरणा दी। उनके योद्धा भावनाओं और धर्मिक सेवा के प्रति उनकी समर्पण ने उन्हें महानतम सिख योद्धा में से एक बना दिया।

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।