गांवों और कस्बों में वायु प्रदूषण: एक चुनौती

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार घरों, वातावरण में मौजूद वायु प्रदूषण भारत में हर साल 21.8 लाख नागरिकों का जीवन छीन रहा है। चीन है।

Apr 15, 2024 - 20:41
Apr 15, 2024 - 20:53
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गांवों और कस्बों में वायु प्रदूषण: एक चुनौती
वायु प्रदूषण

जानलेवा बनती बिगड़ती हवा


शरीर ही नहीं, मन-मस्तिष्क से जुड़ी अनेक व्याधियां भी हवा में घुलते जहर का परिणाम हैं। वर्ष के कुछ विशेष दिनों में तो वायु प्रदूषण के कारण एलर्जी और श्वसन से जुड़ी बीमारियां हद से ज्यादा बढ़ जाती हैं।

हाल के बरसों में भारत के छोटे  शहरों में भी न केवल तापमान में बढ़ोतरी, बल्कि वायु की गुणवता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों की तुलना में खराब हो रही है। दमघोंटू हवा के ये आंकड़े आने वाले कल की भी भयावह तस्वीर हमारे सामने रखते हैं। शुद्ध वायु, कम आबादी और खुले परिवेश वाली छोटी जगहों पर छाता प्रदूषण का स्याह घेरा स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को न्योता देने वाला साबित होगा। छोटे कस्बों में बढ़ते वाहन, बिजली के उपकरण और आसपास के क्षेत्रों से निकलता औद्योगिक हुआं और पेड़-पौधों की लगातार घटती संख्या के कारण गांव-घर का परिवेश भी बदल गया है।

राजधानी में वायु प्रदूषण ने बढ़ाई परेशानी, सांस लेना हुआ मुश्किल |  Agriculture| Kheti| Krishi| Farm| Farmer| Agriculture| News

छ वर्ष पहले तक महानगरों की समस्या समझा जाने वाला वायु प्रदूषण अब गांवों-कस्बों के लिए भी परेशानी का सबब बन गया है। यातायात के बढ़ते साधनों और अधिक जनसंख्या घनत्य के कारण धूल और धुएं का प्रकोप दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंच जाना वाकई चिंताजनक है। हाल ही में 'सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर' संस्था ने खुलासा किया कि देश के सर्वाधिक पचास प्रदूषित शहरों में बिहार के उन्नीस शहर शामिल हैं। इनमें बेगूसराय, छपरा और पटना देश के सर्वाधिक दस प्रदूषित शहरों में से हैं। प्रदूषण का स्तर बेगूसराय में 265, छपरा में 212 और पटना में 212 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा। स्वच्छ हवा के मामले में राज्य के अन्य सोलह शहरों की हालत भी खराब है। 


गौरतलब है कि वर्ष 2023 में भी बिहार के करीब सोलह शहर ऐसे थे, जहां लगभग नव्ये फीसद दिनों की वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों की तुलना में खराब थी। इस वर्ष के शुरुआती दिनों में दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे शहरों को पीछे छोड़ सहरसा में वायु गुणवत्ता सूचकांक 378 पर पहुंच गया था। वहीं राजस्थान के श्रीगंगानगर में भी 71 अंकों के उछाल के साथ प्रदूषण का स्तर बढ़कर 331 दर्ज किया गया। गौरतलब है कि उन दिनों अगरतला, अररिया, आसनसोल, यही, भागलपुर, बीकानेर, गुवाहाटी, हनुमानगढ़, करौली, मुजफ्फरनगर, रूपनगर और सोनीपत जैसे छोटे शहरों में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से ऊपर था। कुछ समय पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी रपट में  सामने आया था कि देश के 243 में से केवल चौदह शहरों में हवा की गुणवता बेहतर, यानी 0-50 के बीच रही। 59 शहरों में वायु गुणवता संतोषजनक (51-100) थी, जयकि सी शहरों में वायु गुणवत्ता मध्यम (101-200) रही। दूर-दराज के कस्यों में हवा की गुणवत्ता का स्तार 300 पार कर जाना चिंताजनक है।

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शरीर ही नहीं, मन-मस्तिष्क से जुड़ी अनेक व्याधियां भी हवा में घुलते जहर का परिणाम हैं। वर्ष के कुछ विशेष दिनों में तो वायु प्रदूषण के कारण एलर्जी और श्वसन से जुड़ी बीमारियां हद से ज्यादा बढ़ जाती हैं। हर आयुवर्ग के लोग दूषित हवा के कारण सेहत से जुड़ी परेशानियों की चपेट में आ रहे हैं। गर्भवती महिलाओं में सिरदर्द, चिंता और चिढ़चिड़ेपन जैसी समस्याएं बढ़ने लगी हैं। एक ओर प्रजनन क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, तो दूसरी ओर अजन्मे शिशु मां के गर्भ में ही दूषित हया से जुड़ी बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। असल में, फेफड़ों के कैसर और हृदयाघात जैसी समस्याओं के बढ़ते मामलों के साथ ही शारीरिक-मानसिक सेहत से जुड़ा ऐसा कोई पहलू नहीं है, जो वायु प्रदूषण से प्रभावित न होता हो। बढ़ते प्रदूषण के चलते मौसम चक्र भी बदल रहा है। मौसम की अनियमितता शारीरिक व्याधियों को न्योता देती है।

2023 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार घरों, वातावरण में मौजूद वायु प्रदूषण भारत में हर साल 21.8 लाख नागरिकों का जीवन छीन रहा है। चीन है। हया में नमी की मात्रा कम होने से वाहनों द्वारा उड़ने वाले सूक्ष्म धूल कण वायु की गुणवत्ता कम करते और श्वसन संक्रमण से जुड़ी परेशानियां बढ़ाते हैं। तकलीफदेह है कि हाल के बरसों में भारत के छोटे शहरों में भी न केवल तापमान में बढ़ोतरी, बल्कि वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों की तुलना में खराब हो रही है। दमघोंटू हया के ये आंकड़े आने वाले कल की भी भयावह तस्वीर हमारे सामने रखते हैं।

शुद्ध वायु, कम आबादी और खुले परिवेश वाली छोटी जगहों पर छाता प्रदूषण का स्याह घेरा स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को न्योता देने वाला साबित होगा। छोटे कस्बों में बढ़ते याहन, बिजली के उपकरण और आसपास के क्षेत्रों से निकलता औद्योगिक धुआं और पेड़-पौधों की लगातार घटती संख्या के कारण गांव-घर का परिवेश भी बदल गया है। जबकि कोरोना के बाद बहुत से लोगों ने अपने गांव-कस्बे में लौटने का मानस बनाया था। तकनीकी सहूलियत से देश के किसी भी हिस्से में बैठकर काम करने की स्थितियों में 'रिवर्स माइग्रेशन' भी देखने को मिला। इसकी एक बड़ी याजाह छोटे शहरों और गांवों-कस्बों का स्वच्छ परिवेश था।


एक ओर सुविधासंपन्न जीवन-शैली प्रदूषण बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर जहां-तहां लगे कचरे के ढेर जहरीली गैस उगल रहे हैं। ज्ञात हो कि 2019 में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा देश भर में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए दीर्घकालिक, समयबद्ध, राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में शुरू किया गया राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम भी लागू किया गया था। इसके तहत चौबीस राज्यों के चुनिंदा 131 शहरों में 2025-26 तक पीएम 2.5 की सघनता में 40 फीसद की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। पीएम 2.5 छोटे आकार के होने की वजह से सांस लेने पर फेफड़ों में गहराई तक पहुंच कर स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक साबित होते हैं। मोनाश विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हुए नए अध्ययन में सामने आया है कि प्रदूषण के इन माहीन कणों के संपर्क में आने से हर साल औसतन 10,18,688 लोगों को असमय जीवन गंवाना पढ़ता है। हर साल वैश्विक स्तर पर प्रति लाख आबादी पर सत्रह लोगों की मौत के पीछे यायु प्रदूषण के ये महीन कण ही हैं।


अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'द लैंसेट' में छपी यह रपट बताती है कि पीएम 2.5 के थोड़े समय के संपर्क से ही वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों में से करीब 65.2 फीसद एशिया में दर्ज की गई हैं। बावजूद इसके, हमारे यहां जहरीली हवा से बढ़ते रोग, पटती जीवन प्रत्याशा और प्रकृति के रंग छिनने तक, प्रदूषण का दुष्प्रभाव साफ दिख रहा है। दुखद यह भी है कि लागू करने के बाद राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम जैसे प्रयासों के असर का आकलन तक नहीं किया जाता।

परिणामस्वरूप, स्थितियां जस की तस बनी रहती हैं। स्वच्छ वायु कार्यक्रम की घोषणा के पांच वर्ष पूरे होने पर 'सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर' की ही विश्लेषणात्मक रपट बताती है कि सरकार द्वारा घोषित इस कार्यक्रम के लक्ष्यों को हासिल करने में कमी रहने पर किसी भी प्रकार की सजा का प्रावधान नहीं है। इसके चलते काफी लापरवाहियां हुई हैं। आवश्यक है कि जीवन यचाने वाले ऐसे कार्यक्रमों से जुड़े लक्ष्य हासिल करने को गंभीरता से लिया जाए। राष्ट्रीय स्तर की सभी रणनीति के साथ ही सामाजिक, प्रशासनिक और व्यक्तिगत मोर्चे पर जीवन सहेजने से जुड़े प्रयास किए जाएं।

के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है, जहां दूषित हया बढ़ी संख्या में लोगों की जिंदगी लील रही है। भारत में पीएम 2.5 हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मे बच्चों की जान ले रहा है। विचारणीय है कि बढ़ती तपिश के साथ भी वायु प्रदूषण और बढ़ता

गांवों और कस्बों में वायु प्रदूषण: एक चुनौती

वायु प्रदूषण, जो पहले महानगरों की समस्या थी, अब गांवों और कस्बों के लिए भी गंभीर चिंता का कारण बन गया है। यातायात के वृद्धि और अधिक जनसंख्या के कारण धूल और धुएं का प्रकोप विस्तारित हो रहा है।

हाल ही में, 'सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर' संस्था ने देश के पाचास सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की है। इसमें बिहार के उन्नीस शहर भी शामिल हैं, जिनमें बेगूसराय, छपरा और पटना सबसे अधिक प्रदूषित हैं। इन शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर 265, 212 और 212 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था।

यह खुलासा बिहार के अन्य सोलह शहरों में भी स्वच्छ हवा की स्थिति का दुष्प्रभाव दिखाता है। इस चुनौती का समाधान ढाई कदमी प्रणाली और जनसामान्य की सशक्तिकरण से हो सकता है, जिसमें सामुदायिक संगठनों, सरकारी अधिकारियों और नागरिकों का साझा प्रयास शामिल हो।

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