पत्रकारों को चरणबद्ध ढंग से गढ़ते थे मामाजी

भोपाल। वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने प्रख्यात संपादक मामा माणिकचंद्र वाजपेयी के जयंती प्रसंग पर विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश की ओर से आयोजित विशेष व्याख्यान में कहा कि मामाजी पत्रकारों को चरणबद्ध ढंग से गढ़ते थे। पत्रकारिता के साथ जीवन के संस्कार भी सिखाते थे। उन्होंने हमेशा अपने उदाहरण से पत्रकारिता और लोक आचरण सिखाया। […] The post पत्रकारों को चरणबद्ध ढंग से गढ़ते थे मामाजी appeared first on VSK Bharat.

Oct 10, 2025 - 03:02
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पत्रकारों को चरणबद्ध ढंग से गढ़ते थे मामाजी

भोपाल। वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने प्रख्यात संपादक मामा माणिकचंद्र वाजपेयी के जयंती प्रसंग पर विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश की ओर से आयोजित विशेष व्याख्यान में कहा कि मामाजी पत्रकारों को चरणबद्ध ढंग से गढ़ते थे। पत्रकारिता के साथ जीवन के संस्कार भी सिखाते थे। उन्होंने हमेशा अपने उदाहरण से पत्रकारिता और लोक आचरण सिखाया।

कार्यक्रम का आयोजन शिवाजी नगर स्थित माणिकचंद्र वाजपेयी सभागार, विश्व संवाद केंद्र में किया गया। इस अवसर पर अतिथि के रूप में गिरीश जोशी उपस्थित रहे और अध्यक्षता लाजपत आहूजा ने की।

‘मामा माणिकचंद्र वाजपेयी और पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए गिरीश उपाध्याय ने कहा कि एक पत्रकार को समाचार पत्र के प्रकाशन की सम्पूर्ण जानकारी हो, इसकी चिंता वे करते थे। उन्होंने मुझे सबसे पहले समाचार पत्र के तकनीकी कार्य सिखाए। उसके बाद उन्होंने इंदौर के सबसे बड़े सांस्कृतिक आयोजन अनंत चतुर्दशी के चल समारोह का कवरेज करने की जिम्मेदारी दी, जिसके माध्यम से एक शहर को, उसकी संस्कृति को, जनमानस के उल्लास और आनंद के स्रोत को जानने का अवसर मिला। मैं शिक्षक बनने के लिए भोपाल आया था, लेकिन बाद में स्वदेश के साथ जुड़ गया। मुझे भोपाल से इंदौर में मामाजी के पास भेजा गया। उनके सान्निध्य में मैंने पत्रकारिता सीखी। मेरी पत्रकारिता पर उनकी गहरी छाप है।

इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक कुलसचिव एवं लेखक गिरीश जोशी ने कहा कि भारत में पत्रकारिता को गढ़ने वाले महापुरुषों में मामा माणिकचंद्र वाजपेयी का प्रमुख नाम है। पत्रकारिता में उनका ध्येय राष्ट्रहित था। आज भी मामाजी को हम स्मरण करते हैं क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता के मूल्यों से समझौता नहीं किया। इसके साथ ही उन्होंने मानवीय मूल्यों को भी बढ़ावा दिया। समाचार पत्र में प्रूफ रीडिंग और कम्पोजिंग से लेकर संपादन तक सारे कार्य मामाजी कर लेते थे। मामाजी दूरदर्शी पत्रकार थे, उन्होंने आपातकाल लगने से पहले ही अपने एक संपादकीय में इसकी आशंका व्यक्त कर दी थी। वे बड़े से बड़े विषय को पाठकों के बीच पहुंचाने के लिए समसामयिक उदाहरण देते थे। मामाजी ने स्वदेशी के महत्व पर बहुत पहले लिखा। उन्होंने कहा कि स्वदेशी केवल वस्तु तक सीमित नहीं है अपितु यह एक विचार है।

लाजपत आहूजा ने कहा कि मामाजी भिंड में निजी महाविद्यालय में संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। लेकिन नियति उन्हें पत्रकारिता में ले आयी। मामाजी जमीनी आदमी थे, इसलिए जीवन की बुनियादी बातों को समझते थे। विश्व संवाद केंद्र ने मामाजी की जन्मशती पर दिल्ली में समारोह का आयोजन किया था। मामाजी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निकट का संबंध था। एक ध्येयनिष्ठ संपादक के रूप में अटल जी मामाजी का बहुत सम्मान करते थे। मामाजी ने जो शब्द लिखे, उन्हें जिया भी। मामाजी ने पत्रकारिता में नैतिकता के मापदंड भी प्रस्तुत किए। उन्होंने सेक्स स्कैंडल में फंसे एक नेता के चित्र छापने से इनकार कर दिया था क्योंकि उनका मानना था कि समाचार पत्र परिवारों में पढ़ा जाता है। आप निस्पृह संपादक थे।

वाल्मीकि जयंती के प्रसंग पर महर्षि वाल्मीकि जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनका स्मरण किया गया। साथ ही विश्व संवाद केंद्र के विशेषांक ‘कन्वर्जन का खेल : निशाने पर जनजातीय’ का विमोचन भी किया गया। विशेषांक का संपादन युवा पत्रकार एवं लेखक सुदर्शन व्यास ने किया है। कार्यक्रम का संचालन युवा पत्रकार अदिति रावत ने किया और आभार ज्ञापन न्यास के सचिव लोकेन्द्र सिंह ने किया।

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