ईमानदार अफसर की त्याग की कहानी है कोस्टाओ:नवाजुद्दीन सिद्दीकी बोले- जरा भी एक्टिंग करता तो पकड़ा जाता, फिल्म का क्लाईमैक्स सीन रहा मुश्किल

बॉलीवुड एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की नई मूवी कोस्टाओ हाल ही में रिलीज हुई। यह फिल्म गोवा के कस्टम ऑफिसर कोस्टाओ फर्नांडिस की सच्ची कहानी पर आधारित है। ZEE5 पर रिलीज हुई इस फिल्म का निर्देशन सेजल शाह ने किया है। फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, प्रिया बापट, हुसैन दलाल और माहिका शर्मा हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हाल ही में दैनिक भास्कर से फिल्म के बारे में बात की। इस इंटरव्यू के दौरान नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कई अहम सवालों के जवाब दिए। बातचीत में उन्होंने एक्टिंग, समाज में बदलती सोच, नई पीढ़ी की जरूरतों और सच्चे रोल मॉडल की अहमियत पर खुलकर बात की। उन्होंने कोस्टाओ के किरदार, वह किसी भी किरदार में कैसे ढल जाते हैं, क्या आज के बच्चों को कोस्टाओ जैसे हीरो की जरूरत है? ऐसे तमाम सवालों के भी जवाब दिए. पढ़िए इंटरव्यू की प्रमुख बातें... कोस्टाओ का किरदार इतना खास क्यों था? कोस्टाओ जैसे किरदार आज के दौर में बहुत जरूरी हो गए हैं। अब हमारे समाज में आदर्श व्यक्तित्व सामने नहीं आ रहे, जो हमारे बच्चों को प्रेरणा दे सकें। सोशल मीडिया पर काफी कचरा है और बच्चे उसी से प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में जब कोस्टाओ जैसा किरदार सामने आता है, जो बहादुर है, सच्चा है, सिस्टम से लड़ा है तो लगता है कि यह कहानी हर बच्चे को देखनी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी को सच्चे हीरो मिलें। आप हर किरदार में डूब जाते हैं। इस फिल्म में आपने कैसे खुद को कोस्टाओ की भूमिका में ढाला? हर किरदार मेरे लिए आत्मा को शुद्ध करने का जरिया होता है। असल जिंदगी में हम सभी कहीं न कहीं झूठ बोलते हैं, समझौते करते हैं, लेकिन जब मुझे कैमरे के सामने एक सच्चा किरदार निभाने का मौका मिलता है, तो लगता है कि चलो कम से कम पर्दे पर तो सच्चाई बोल सकूं। ये किरदार मुझे मेरे पछतावे से बाहर निकालता है। क्या आपको लगता है कि आज के बच्चों के लिए कोस्टाओ जैसे ही रियल हीरोज की जरूरत है? आज के वक्त में हमें ऐसे लोगों की तलाश करनी होगी जो हमारे लिए आदर्श बन सकें। हमें खास तौर पर बच्चों को ऐसे रोल मॉडल दिखाने होंगे। आज सोशल मीडिया पर बहुत सारा कचरा मौजूद है और बच्चे उसी से प्रभावित हो रहे हैं। हां, अच्छी चीजें भी हैं, लेकिन उन्हें कम ही दिखाया जाता है। ऐसे में हमें बहादुर, ईमानदार और सच्चे लोगों की कहानियां सामने लानी चाहिए जो सिस्टम के खिलाफ खड़े होते हैं, जो सच बोलने की हिम्मत रखते हैं। अगर हम ऐसे किरदार बच्चों तक पहुंचा पाएं, तो शायद हम उनकी जिंदगी को बेहतर बना सकें। फिल्म का सबसे मुश्किल हिस्सा आपके लिए कौन-सा था? मेरे लिए सबसे मुश्किल हिस्सा वही क्लाइमेक्स का सीन था। उसमें अगर मैंने जरा भी ज्यादा एक्टिंग करने की कोशिश की होती, तो पकड़ा जाता। उस सीन में मेरा किरदार अपने अंदर की गिल्ट यानी पछतावे को कबूल कर रहा होता है। इसलिए मुझे लगता है कि एक एक्टर के तौर पर मेरे लिए यह सबसे कठिन सीन था। जब ऐसे सीन करते हैं, तो अकसर हमें अपनी असली जिंदगी की कोई याद आ जाती है। उस समय पूरी जिंदगी जैसे दो सेकंड में रिवाइंड हो जाती है। तब कुछ ऐसा याद आता है, जो वाकई में हमारे साथ हुआ हो और जब हम रियल लाइफ से जोड़कर कोई सीन करते हैं, तो उसमें सच्चाई अपने आप आ जाती है। शुक्र है, मेरी जिंदगी में बहुत सारे अनुभव हुए हैं. एक छोटे से गांव से चलकर बड़े-बड़े शहरों तक पहुंचा, हजारों लोगों से मिला, कई घटनाएं देखीं। जब मैं कोई सीन करता हूं, तो मेरे दिमाग में कोई फिल्म नहीं आती, बल्कि मेरी असली जिंदगी के लोग और पल याद आते हैं। शायद इसी वजह से वो सीन और भी सच्चा लगने लगता है। क्या ऐसी कहानियां भी पर्दे पर आनी चाहिए, जिनमें आम लेकिन बेहद समर्पित लोगों की जिंदगी को दिखाया जाए? कस्टम डिपार्टमेंट पर अब तक कोई फिल्म नहीं बनी थी, लेकिन अब यह पहली फिल्म है जो कस्टम अफसर पर आधारित है। फिल्म के माध्यम से हम कोस्टाओ फर्नांडीस जैसे ऑफिसर को धन्यवाद कहना चाहते हैं। उन्होंने हमेशा अपनी ड्यूटी को पहले रखा, जो बहुत ही सराहनीय है। आमतौर पर बायोपिक मशहूर हस्तियों पर बनती हैं, लेकिन इस फिल्म में हम एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बता रहे हैं, जिसे बहुत कम लोग जानते थे। इतनी त्याग वाली नौकरी करने के बावजूद, कस्टम डिपार्टमेंट और गोवा के कुछ लोगों के अलावा उन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते थे, लेकिन आज हमारे लिए भी गर्व का पल है। दरअसल, उनकी पीड़ा, उनकी ईमानदारी, उन्हें कुछ समय के लिए सहन करना पड़ा, लेकिन यह व्यर्थ नहीं जा सकता और आखिरकार सच को उसका फल जरूर मिलता है, लेकिन देर से ही सही, लेकिन मिलता जरूर है। हमारे लिए बहुत खुशी की बात है। इस रोल के लिए बेस्ट कॉम्प्लिमेंट क्या था? कोस्टाओ फर्नांडिस जी की बेटी ने मुझे बहुत अच्छा कॉम्प्लिमेंट दिया। वो बहुत खुश थीं। उनकी बात मुझे इसलिए भी ज्यादा अच्छी लगी क्योंकि कोस्टाओ जी अपने परिवार से काफी समय से अलग रह रहे थे। अब उनकी फैमिली उन पर गर्व महसूस कर रही है। हो सकता है कि इस फिल्म के बाद उनका परिवार फिर से एक हो जाए। अगर ऐसा होता है, तो हमारे लिए इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती। आप फिल्म को लेकर थोड़े चूजी हो गए हैं, ऐसा क्यों? लाइफ के इस पड़ाव पर हूं, जहां थोड़ा सोच-समझ कर चीजें करनी पड़ती हैं। कुछ एक-दो गलतियां हो जाती हैं तो अब मैं चाहता हूं कि थोड़ा कम काम करूं, लेकिन जो काम करूं, वो सोच-समझ कर करूं। ऐसा काम करना चाहता हूं जिसमें मुझे लगे कि हां, इस काम को करने के बाद सही किया है। बस, वही काम करना चाहता हूं।

May 9, 2025 - 06:34
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ईमानदार अफसर की त्याग की कहानी है कोस्टाओ:नवाजुद्दीन सिद्दीकी बोले- जरा भी एक्टिंग करता तो पकड़ा जाता, फिल्म का क्लाईमैक्स सीन रहा मुश्किल
बॉलीवुड एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की नई मूवी कोस्टाओ हाल ही में रिलीज हुई। यह फिल्म गोवा के कस्टम ऑफिसर कोस्टाओ फर्नांडिस की सच्ची कहानी पर आधारित है। ZEE5 पर रिलीज हुई इस फिल्म का निर्देशन सेजल शाह ने किया है। फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, प्रिया बापट, हुसैन दलाल और माहिका शर्मा हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हाल ही में दैनिक भास्कर से फिल्म के बारे में बात की। इस इंटरव्यू के दौरान नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कई अहम सवालों के जवाब दिए। बातचीत में उन्होंने एक्टिंग, समाज में बदलती सोच, नई पीढ़ी की जरूरतों और सच्चे रोल मॉडल की अहमियत पर खुलकर बात की। उन्होंने कोस्टाओ के किरदार, वह किसी भी किरदार में कैसे ढल जाते हैं, क्या आज के बच्चों को कोस्टाओ जैसे हीरो की जरूरत है? ऐसे तमाम सवालों के भी जवाब दिए. पढ़िए इंटरव्यू की प्रमुख बातें... कोस्टाओ का किरदार इतना खास क्यों था? कोस्टाओ जैसे किरदार आज के दौर में बहुत जरूरी हो गए हैं। अब हमारे समाज में आदर्श व्यक्तित्व सामने नहीं आ रहे, जो हमारे बच्चों को प्रेरणा दे सकें। सोशल मीडिया पर काफी कचरा है और बच्चे उसी से प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में जब कोस्टाओ जैसा किरदार सामने आता है, जो बहादुर है, सच्चा है, सिस्टम से लड़ा है तो लगता है कि यह कहानी हर बच्चे को देखनी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी को सच्चे हीरो मिलें। आप हर किरदार में डूब जाते हैं। इस फिल्म में आपने कैसे खुद को कोस्टाओ की भूमिका में ढाला? हर किरदार मेरे लिए आत्मा को शुद्ध करने का जरिया होता है। असल जिंदगी में हम सभी कहीं न कहीं झूठ बोलते हैं, समझौते करते हैं, लेकिन जब मुझे कैमरे के सामने एक सच्चा किरदार निभाने का मौका मिलता है, तो लगता है कि चलो कम से कम पर्दे पर तो सच्चाई बोल सकूं। ये किरदार मुझे मेरे पछतावे से बाहर निकालता है। क्या आपको लगता है कि आज के बच्चों के लिए कोस्टाओ जैसे ही रियल हीरोज की जरूरत है? आज के वक्त में हमें ऐसे लोगों की तलाश करनी होगी जो हमारे लिए आदर्श बन सकें। हमें खास तौर पर बच्चों को ऐसे रोल मॉडल दिखाने होंगे। आज सोशल मीडिया पर बहुत सारा कचरा मौजूद है और बच्चे उसी से प्रभावित हो रहे हैं। हां, अच्छी चीजें भी हैं, लेकिन उन्हें कम ही दिखाया जाता है। ऐसे में हमें बहादुर, ईमानदार और सच्चे लोगों की कहानियां सामने लानी चाहिए जो सिस्टम के खिलाफ खड़े होते हैं, जो सच बोलने की हिम्मत रखते हैं। अगर हम ऐसे किरदार बच्चों तक पहुंचा पाएं, तो शायद हम उनकी जिंदगी को बेहतर बना सकें। फिल्म का सबसे मुश्किल हिस्सा आपके लिए कौन-सा था? मेरे लिए सबसे मुश्किल हिस्सा वही क्लाइमेक्स का सीन था। उसमें अगर मैंने जरा भी ज्यादा एक्टिंग करने की कोशिश की होती, तो पकड़ा जाता। उस सीन में मेरा किरदार अपने अंदर की गिल्ट यानी पछतावे को कबूल कर रहा होता है। इसलिए मुझे लगता है कि एक एक्टर के तौर पर मेरे लिए यह सबसे कठिन सीन था। जब ऐसे सीन करते हैं, तो अकसर हमें अपनी असली जिंदगी की कोई याद आ जाती है। उस समय पूरी जिंदगी जैसे दो सेकंड में रिवाइंड हो जाती है। तब कुछ ऐसा याद आता है, जो वाकई में हमारे साथ हुआ हो और जब हम रियल लाइफ से जोड़कर कोई सीन करते हैं, तो उसमें सच्चाई अपने आप आ जाती है। शुक्र है, मेरी जिंदगी में बहुत सारे अनुभव हुए हैं. एक छोटे से गांव से चलकर बड़े-बड़े शहरों तक पहुंचा, हजारों लोगों से मिला, कई घटनाएं देखीं। जब मैं कोई सीन करता हूं, तो मेरे दिमाग में कोई फिल्म नहीं आती, बल्कि मेरी असली जिंदगी के लोग और पल याद आते हैं। शायद इसी वजह से वो सीन और भी सच्चा लगने लगता है। क्या ऐसी कहानियां भी पर्दे पर आनी चाहिए, जिनमें आम लेकिन बेहद समर्पित लोगों की जिंदगी को दिखाया जाए? कस्टम डिपार्टमेंट पर अब तक कोई फिल्म नहीं बनी थी, लेकिन अब यह पहली फिल्म है जो कस्टम अफसर पर आधारित है। फिल्म के माध्यम से हम कोस्टाओ फर्नांडीस जैसे ऑफिसर को धन्यवाद कहना चाहते हैं। उन्होंने हमेशा अपनी ड्यूटी को पहले रखा, जो बहुत ही सराहनीय है। आमतौर पर बायोपिक मशहूर हस्तियों पर बनती हैं, लेकिन इस फिल्म में हम एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बता रहे हैं, जिसे बहुत कम लोग जानते थे। इतनी त्याग वाली नौकरी करने के बावजूद, कस्टम डिपार्टमेंट और गोवा के कुछ लोगों के अलावा उन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते थे, लेकिन आज हमारे लिए भी गर्व का पल है। दरअसल, उनकी पीड़ा, उनकी ईमानदारी, उन्हें कुछ समय के लिए सहन करना पड़ा, लेकिन यह व्यर्थ नहीं जा सकता और आखिरकार सच को उसका फल जरूर मिलता है, लेकिन देर से ही सही, लेकिन मिलता जरूर है। हमारे लिए बहुत खुशी की बात है। इस रोल के लिए बेस्ट कॉम्प्लिमेंट क्या था? कोस्टाओ फर्नांडिस जी की बेटी ने मुझे बहुत अच्छा कॉम्प्लिमेंट दिया। वो बहुत खुश थीं। उनकी बात मुझे इसलिए भी ज्यादा अच्छी लगी क्योंकि कोस्टाओ जी अपने परिवार से काफी समय से अलग रह रहे थे। अब उनकी फैमिली उन पर गर्व महसूस कर रही है। हो सकता है कि इस फिल्म के बाद उनका परिवार फिर से एक हो जाए। अगर ऐसा होता है, तो हमारे लिए इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती। आप फिल्म को लेकर थोड़े चूजी हो गए हैं, ऐसा क्यों? लाइफ के इस पड़ाव पर हूं, जहां थोड़ा सोच-समझ कर चीजें करनी पड़ती हैं। कुछ एक-दो गलतियां हो जाती हैं तो अब मैं चाहता हूं कि थोड़ा कम काम करूं, लेकिन जो काम करूं, वो सोच-समझ कर करूं। ऐसा काम करना चाहता हूं जिसमें मुझे लगे कि हां, इस काम को करने के बाद सही किया है। बस, वही काम करना चाहता हूं।

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