अरुणाचल सरकार लागू करे 46 साल पुराना धर्मांतरण विरोधी कानून, ईसाइयों के विरोध पर बोला वनवासी कल्याण आश्रम

सत्येंद्र सिंह ने कहा कि मैं अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम और देश के सभी जनजाति समाज की ओर से अरुणाचल प्रदेश सरकार से मांग करता हूं कि वह अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करते हुए बिना देरी के धर्मांतरण विरोधी नियम अधिसूचित करे और इस कानून का कड़ाई से पालन शुरू करे.

Mar 10, 2025 - 21:03
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अरुणाचल सरकार लागू करे 46 साल पुराना धर्मांतरण विरोधी कानून, ईसाइयों के विरोध पर बोला वनवासी कल्याण आश्रम
अरुणाचल सरकार लागू करे 46 साल पुराना धर्मांतरण विरोधी कानून, ईसाइयों के विरोध पर बोला वनवासी कल्याण आश्रम

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने एक बयान जारी कर मांग की कि अरुणाचल प्रदेश सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1978 के नियमों को तुरंत अधिसूचित करे. उन्होंने कहा कि पिछले कई दिनों से अरुणाचल प्रदेश से वहां के हाईकोर्ट के एक निर्णय और आदेश के खिलाफ चर्च और ईसाइयों के विरोध प्रदर्शनों की खबरें आ रही हैं, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.

सत्येंद्र सिंह ने कहा कि यह राज्य 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बना जो पहले नेफा कहलाता था. वहां की तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 1978 में अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम पारित किया था. पीके थुंगन उस समय वहां के मुख्यमंत्री थे.

उन्होंने बताया कि स्थानीय जनजातियों की धर्म-संस्कृति की रक्षा करने और एक धर्म से दूसरे धर्म में लोभ-लालच, दबाव या धोखाधड़ी से होने वाले धर्मांतरणों को रोकने और सरकारी रिकॉर्ड में ऐसे धर्मांतरणों को रिकॉर्ड करने के लिए यह कानून बनाया गया था. इसके पहले ऐसा ही कानून मध्य प्रदेश और ओडिसा में और बाद में देश के कई अन्य राज्यों ने भी बनाए, इन सब कानुनों को देश की सुप्रीम कोर्ट भी संवैधानिक रूप से सही ठहरा चुका है.

लेकिन दुर्भाग्यवश अरुणाचल प्रदेश में इसके नियम अभी तक नहीं बनाए गए जो कि अधिनियम पारित होने और उसे 25 अक्टूबर 1978 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के कुछ महीनों के अंदर-अंदर ही अधिसूचित कर दिए जाने चाहिए थे. इन नियमों के अभाव में यह कानून पिछले 47 सालों तक लागू नहीं किया जा सका.

स्वतंत्र भारत का शायद यह एक मात्र कानून होगा जो इतने साल तक ठंडे बस्तों में पड़ा रहा. इसका सीधा नुकसान यह हुआ कि 70 के दशक में जिस राज्य में एक प्रतिशत भी आबादी इसाई नहीं थी वह बढ़ कर 2011 की जनगणना के अनुसार 31 प्रतिशत हो गई और आज तो और भी अधिक हो गई होगी. ये आंकड़े ही यह बताने के लिए काफी हैं कि यह कानून किन लोगों के स्वार्थों और केंद्र एवं राज्य की तत्कालीन सरकारों की लापरवाही और विफलता के कारण ही नहीं लागू हुआ होगा.

नियम बनाने का यह आदेश बीजेपी या किसी बाहरी शक्ति के दबाव में नहीं बल्कि 30 सितम्बर 2024 को गुवाहाटी हाईकोर्ट की ईटानगर स्थाई बेंच ने एक जन-हित याचिका पर आदेश दिया था. कार्ट ने कहा था कि राज्य सरकार इस आदेश के 6 महीनों के अन्दर इस कानून को लागू करने के नियम अधिसूचित कर अपनी क़ानूनी जिम्मेवारी पूरी करे.

स्थानीय जनजाति समाज तो नियम बनाने की मांग गत 20-25 सालों से कर रहा है. हाईकोर्ट में यह जन-हित याचिका भी वहीँ के एक जनजाति युवा एडवोकेट ने दाखिल की थी. जैसे-जैसे 6 महीने की यह अवधि निकट आने लगी और जब सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह कोर्ट का आदेश स्वीकार कर नियम अधिसूचित करेगी.

तब से न केवल अरुणाचल के बल्कि निकटवर्ती राज्यों के चर्चों और वहां के इसाई संगठनों-लोगों ने इसका पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया. देश में संविधान की दुहाई देने वाले चर्च, उससे जुड़े संगठनों और लोगों का संविधान को लागू करने वाले राज्य के हाईकोर्ट के आदेश और उसे लागू करने के राज्य सरकार के प्रयासों का विरोध घोर निंदनीय कदम है.

धर्मांतरण ने इन 50 सालों में वहां के सनातन-स्वधर्मी जनजाति समाज की लगभग आधी आबादी, उसकी धर्म-संस्कृति को निगल लिया है, उसका जिम्मेवार कौन है? 15 लाख की आबादी वाले इस छोटे से राज्य में जो 2 बिशप और हजारों चर्च वहां के विश्वासुओं की बेरोकटोक फसल काट रहे हैं, वे ही आज हाईकोर्ट के आदेश और नियम बनाने का विरोध कर और करवा रहे हैं.

देश की तथाकथित स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया एवं प्रगतिशील सेक्युलर ताकतें, राजनीतिक दल इस पर आंखें बंद कर चुप बैठे हैं, अरुणाचल प्रदेश के डोनी-पोलो, रांगफ्रा, अमितमताई, रिंग्याजोमालो की पूजा करने वाले उपासक और बौद्ध धर्म मानने वाला जनजाति समाज भी यह सब देख रहा है.

अरुणाचल प्रदेश की राज्य सरकारें इस मामले में पहले ही घोर लापरवाही कर चुकी हैं. सत्येंद्र सिंह ने कहा कि मैं अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम और देश के सम्पूर्ण जनजाति समाज की ओर से अरुणाचल प्रदेश राज्य सरकार से मांग करता हूं कि वह अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करते हुए अविलम्ब ये नियम अधिसूचित करे और इस कानून का कड़ाई से पालन शुरू करे.

वनवासी कल्याण आश्रम केंद्र सरकार विशेषकर देश के माननीय गृह मंत्री से भी अनुरोध करता है कि वे इसमें अविलम्ब हस्तक्षेप कर स्थिति को और बिगड़ने से रोकें और राज्य सरकार को संवैधानिक विफलता से बचाएं.

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,