Guru Pradosh Vrat Katha : गुरु प्रदोष व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, जीवन में बनी रहेंगी खुशियां!

Guru Pradosh Vrat Katha : प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और कथा सुनने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और समस्त कष्ट दूर होते हैं.

Mar 27, 2025 - 05:43
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Guru Pradosh Vrat Katha : गुरु प्रदोष व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, जीवन में बनी रहेंगी खुशियां!
Guru Pradosh Vrat Katha : गुरु प्रदोष व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, जीवन में बनी रहेंगी खुशियां!

Guru Pradosh Vrat 2025: गुरु प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा और उपासना के लिए रखा जाने वाला एक विशेष व्रत है, जो गुरुवार के दिन आने वाले प्रदोष काल में किया जाता है. प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, लेकिन जब यह व्रत गुरुवार को पड़ता है, तो इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ बृहस्पति ग्रह की भी विशेष पूजा की जाती है. गुरु प्रदोष व्रत के दिन कथा का पाठ और सुनने का विशेष महत्व है. मान्यता के अनुसार, गुरु प्रदोष व्रत के दिन कथा का पाठ करने से घर मे सुख समृद्धि और खुशहाली का वास होता है.

गुरु प्रदोष व्रत कथा | Guru Pradosh Vrat Katha

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में भयंकर युद्ध हुआ. देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला. यह देख वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हुआ और स्वयं युद्ध करने लगा. आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया और देवताओं की सेना आक्रमण शुरू कर दिया. जिससे सभी देवता भयभीत होकर गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे. बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दे दूं.

गुरुदेव बृहस्पति ने कहा कि वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया है. पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था. एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया. वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहास पूर्वक बोला- हे प्रभु! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं. किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे.

चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिव शंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है. मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो. माता पार्वती क्रोधित हो उठी और चित्ररथ से कहा कि अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है.

इसलिए मैं तुझे वह दंड दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा, अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं. जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना.

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है. अतः हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो. देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली. जिसके बाद देवलोक में शान्ति छा गई.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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