संघ की प्रचार शाखा का दावा, संघ की शाखा में गए थे डा. आंबेडकर

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Jan 3, 2025 - 06:05
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संघ की प्रचार शाखा का दावा, संघ की शाखा में गए थे डा. आंबेडकर

उन्होंने कहा था कि में कुछ मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद संघ को आत्मीयता की भावना से देखता हूं 

महात्मा गांधी ने भी 1934 में वर्धा में आरएसएस शिविर का किया था दौरा

भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार डा. बाबासाहेब आंबेडकर ने 85 साल पहले महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की एक शाखा का दौरा किया था। वहां उन्होंने कहा था कि मैं कुछ मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद संघ को आत्मीयता की भावना से देखता हूं। आरएसएस की प्रचार शाखा विश्व संवाद केंद्र के विदर्भ प्रांत ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा है कि संघ को अपनी अब तक की यात्रा में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इस पर कई आरोप लगाए गए हैं। लेकिन इसने इन सभी आरोपों को गलत साबित करते हुए एक सामाजिक संगठन के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। कहा गया है कि आरएसएस पर विभिन्न कारणों से तीन बार प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन वह हर बार इससे बाहर आने में सफल रहा। आरएसएस पर दलित विरोधी होने के आरोप लगाए गए। डा. आंबेडकर एवं आरएसएस के बारे में  गलत सूचना फैलाई गई थी। लेकिन अब डा. आंबेडकर व संघ के बारे में एक नया दस्तावेज सामने आया है, जो दोनों के बीच संबंधों को उजागर करता है। बयान में दावा किया गया है कि डा. आंबेडकर दो जनवरी, 1940 को सतारा जिले के कराड में आरएसएस की शाखा में गए थे। वहां उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया था। 

डा. आंबेडकर ने कहा था कि हालांकि कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन मैं संघ को आत्मीयता की भावना से देखता हूं। विश्व संवाद केंद्र ने नौ जनवरी, 1940 को पुणे के एक मराठी दैनिक में छपे इस आशय के एक समाचार की तस्वीर भी जारी की है। संघ के विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा लिखित पुस्तक 'डॉ. आंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा' का संदर्भ देते हुए भी संघ और डा. आंबेडकर के बीच संबंधों का जिक्र किया गया है। पुस्तक के आठवें अध्याय की शुरुआत मैं ठेंगड़ी कहते हैं कि डा. आबेडकर को आरएसएस के बारे में पूरी जानकारी थी। उसके स्वयंसेवक उनसे लगातार संपर्क में रहते थे। उनसे चर्चा करते थे। आगे कहाकि संघ पर ब्राह्मणवादी होने का आरोप अब गलत साबित हो चुका है। महात्मा गांधी ने भी 1934 में वर्धा में आरएसएस के शिविर का दौरा किया था, जहां उन्होंने महसूस किया कि संघ में विभिन्न जातियों और धर्मों के स्वयंसेवक थे।

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